Home चुनाव डेस्क बिहार में मोदी और नीतीश को नहीं दिखता है मांझी का परिवारवाद!

बिहार में मोदी और नीतीश को नहीं दिखता है मांझी का परिवारवाद!

Modi and Nitish cannot see Manjhi's nepotism!
Modi and Nitish cannot see Manjhi's nepotism!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के गया जिले के इमामगंज विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में एक दिलचस्प राजनीतिक दृश्य उभर कर सामने आया है। इस बार यह सीट सिर्फ क्षेत्रीय राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन चुकी है। कारण है- केंद्रीय मंत्री और बिहार की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा जीतनराम मांझी का परिवार और उनके परिवारवाद को लेकर उठते सवाल।

इस बार जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा’ (हम) से उनकी बहू  दीपा मांझी चुनावी मैदान में हैं। दीपा मांझी अपने पति संतोष मांझी, जो बिहार सरकार में मंत्री हैं और अपने ससुर जीतनराम मांझी के नाम पर जनता से वोट मांग रही हैं। यह पारिवारिक समीकरण अपने आप में खास है।  लेकिन इसके साथ ही चुनावी चर्चाओं में परिवारवाद के सवाल को भी हवा दे रहा है। विशेष रूप से तब, जब जीतनराम मांझी की समधन ज्योति देवी भी हम पार्टी की ही विधायक हैं।

परिवारवाद का मुद्दाः बिहार की राजनीति में परिवारवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। लालू यादव और उनके परिवार का उदाहरण बिहार के राजनीतिक गलियारों में लंबे समय से लिया जाता रहा है। लेकिन अब मांझी परिवार की ओर से यह उदाहरण नई चर्चा को जन्म दे रहा है।

एक बड़ा सवाल यह है कि क्या जीतनराम मांझी का परिवारवाद भी उसी तरह से राजनीतिक नैतिकता को प्रभावित करता है। जैसे अन्य राजनीतिक दलों में देखा जाता है? दिलचस्प बात यह है कि एनडीए, जिसमें मांझी की पार्टी भी शामिल है, परिवारवाद का मुखर विरोध करती रही है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) जैसी पार्टियां बार-बार इस बात को जोर देकर कहती आई हैं कि परिवारवाद से राजनीति में योग्यता का दमन होता है और यह लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है।

एनडीए और परिवारवाद पर दोहरी नीति? परिवारवाद पर सवाल तब और गहराते हैं, जब देखा जाता है कि इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही मांझी परिवार का समर्थन कर रहे हैं। एनडीए का यह समर्थन एक तरह से परिवारवाद पर दोहरी नीति को दर्शाता है। जब बात दूसरी पार्टियों की होती है तो एनडीए परिवारवाद की कड़ी आलोचना करता है। लेकिन जब मामला अपने घटक दलों की खुद भाजपा की हो, तब इस मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं जताई जाती।

यह स्थिति राजनीतिक नैतिकता और सिद्धांतों पर प्रश्न उठाती है। क्या परिवारवाद का विरोध सिर्फ विपक्षी दलों पर लागू होता है या यह सिद्धांत अपनी सुविधा के अनुसार बदला जा सकता है? एनडीए की इस स्थिति ने विपक्ष को भी एक मुद्दा दे दिया है। इससे वे एनडीए के अंदर चल रही परिवारवाद की राजनीति पर निशाना साध रहे हैं।

दीपा मांझी की उम्मीदवारी, एक रणनीति या मजबूरी? दीपा मांझी की उम्मीदवारी को कुछ लोग मांझी परिवार की राजनीतिक पकड़ को बनाए रखने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। हम पार्टी का आधार मुख्य रूप से दलित और महादलित वर्ग में है और इस वर्ग में मांझी परिवार की एक मजबूत पहचान है। इस लिहाज से दीपा मांझी का चुनावी मैदान में उतरना राजनीतिक रूप से एक समझदारी भरा कदम हो सकता है।

लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह कदम राजनीतिक मजबूरी है? बिहार की राजनीति में कद्दावर नेता बनने के बाद जीतनराम मांझी के पास सीमित विकल्प बचे थे। पार्टी को संभालने के लिए किसी परिवारजन को आगे करना शायद एकमात्र उपाय था। क्योंकि कोई अन्य प्रमुख चेहरा उनके परिवार के बाहर से नहीं उभर पाया।

परिवारवाद बनाम योग्यताः परिवारवाद के मुद्दे पर अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि यह योग्य और काबिल नेताओं को राजनीति में आने से रोकता है। दीपा मांझी का राजनीतिक अनुभव बेहद कम है और उनका चुनावी मैदान में उतरना सिर्फ उनके परिवार के राजनीतिक प्रभाव की वजह से ही मुमकिन हुआ है। यह स्थिति कई प्रतिभाशाली और योग्य नेताओं के अवसरों पर सवाल खड़े करती है, जिन्हें महज परिवारिक पृष्ठभूमि की कमी के कारण पर्याप्त मौका नहीं मिल पाता।

वेशक इमामगंज का यह उपचुनाव सिर्फ एक सीट का चुनाव नहीं है, बल्कि बिहार की राजनीति में परिवारवाद के मुद्दे पर एक नया अध्याय जोड़ रहा है। जीतनराम मांझी के परिवार के इस चुनावी मैदान में होने से यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है कि क्या एनडीए के भीतर परिवारवाद पर दोहरी नीति है? और क्या यह परिवारवाद बिहार की राजनीति में योग्यता और नैतिकता को कमजोर कर रहा है?

बहरहाल, इस चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों। लेकिन यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में परिवारवाद एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना रहेगा और इस पर चर्चा और बहसें भविष्य में भी होती रहेंगी।

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