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      पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय वीसी सर सैय्यद का ‘सुल्तान भवन’ होगा जमींदोज

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क)। पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय कुलपति सर सैय्यद  सुल्तान अहमद के सौ साल पुराने ऐतिहासिक इमारत सुल्तान पैलेस अब यादों में रह जाएगा। नीतीश सरकार इस इमारत को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर चुकी है।

      बजाप्ता कैबिनेट में प्रस्ताव के माध्यम से इस भवन पर बुलडोजर चलाने की तैयारी की जा रही है।इसे निजी हाथों में देकर यहां 12 मंजिला होटल खोलने का प्रस्ताव रखा गया है।

      सुल्तान पैलेस को जमींदोज करने के प्रस्ताव पर पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने कड़ा एतराज जताते हुए कहा है कि नीतीश कुमार क्या जाने ऐतिहासिक धरोहरों का महत्व। उन्हें तो सिर्फ सता चाहिए।

      पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने मीडिया से बातचीत में कहा कि नीतीश कुमार टेंडर माफियाओं के इशारे पर काम कर रहें हैं। बिहार में माफिया राज है।

      श्री दास ने कहा कि उन्हें होटल निर्माण से कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि किसी महापुरुष की निशानी को खत्म कर देना सही नहीं है। सर सैय्यद सुल्तान अहमद सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थें,वे महापुरुष थें।

      उन्होंने ठीक सौ साल पहले 1922 में इस महल का निर्माण करवाया था।वे पहले भारतीय थे, जो पटना विश्वविद्यालय के कुलपति रहें उससे पहले सभी वीसी अंग्रेज हुआ करतें थे।

      पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास ने बताया कि सर सैय्यद सुल्तान अहमद ऐसे शख्स थें जिन्होंने जिन्ना का अनुरोध ठुकरा दिया था। जिसमें उन्होंने पाकिस्तान का कैबिनेट मंत्री का आफर मिला था।

      श्री दास ने बताया कि वे वकीलों से सुल्तान पैलेस को बचाने के लिए बातचीत कर रहें हैं।जल्द ही एक जनहित याचिका पटना हाईकोर्ट में दाखिल की जाएगी। उन्होंने बुद्धिजीवियों,समाज के सभी वर्गो, मीडिया का आह्वान किया कि सुल्तान पैलेस को बचाने के लिए मुहिम छेड़े।

      उन्होंने कहा कि इससे पहले भी नीतीश सरकार पिछले साल खुदाबख्श लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़ने पर आमादा थी। लेकिन उनकी मुहिम के बाद सरकार ने कदम वापस किया।

      क्या है सर सैय्यद सुल्तान अहमद और  सुल्तान पैलेस का इतिहास:  पटना के वीरचंद पटेल पथ जिसे पहले गार्डिनर रोड कहा जाता था उससे गुजरते हुए बरबस ही आंखें एक खुबसूरत इमारत पर टिक जाती थी। लोगों की नजरें नहीं हटती थी।

      1922 में बनी सुल्तान पैलेस इंडो-सेरासेनिक शैली में बनाई गई थी।इसके निर्माता थें सर सैय्यद सुल्तान अहमद थें।यह इमारत अब परिवहन भवन कहलाती है।

      सर सैय्यद सुल्तान अहमद ने 1922 में पटना में एक आलीशान इमारत का निर्माण करवाया था जिसे सुल्तान पैलेस के रूप में जाना जाता था। सुल्तान पैलेस औपनिवेशिक दिनों की सबसे खुबसूरत इमारतों में शामिल रहा है। जिसमें पूरब और पश्चिम का अद्भुत सम्मिश्रण है।

      जिस समय यह इमारत बन रही थी ,उन दिनों हिंदुस्तान के अभिजात्य वर्ग और रईसों में गोथिक शैली को लेकर खास आकर्षण था। किंतु इसके निर्माता सर सैय्यद सुल्तान अहमद ने अपने देश की परंपरा का निर्वहन करते हुए इसके निर्माण में मुगल- राजपूत शैली को खास तवज्जो दी।

      वैसे तो यह इमारत इंडो-सेरासेनिक शैली का बेहतरीन नमूना है किंतु यह मुगल राजपूत शैली से काफी मिलता है।जिस पर एंग्लो-फ्रेंच शैली की भी छाप दिखती है।इसके सजावटी कॉलम, डाइनिंग हॉल की साज-सज्जा और सीलिंग में इसकी स्पष्ट छाप दिखती है।

      सर सैय्यद सुल्तान अहमद 1948 में वापस पटना लौटें, फिर से वकालत शुरू की लेकिन पहले की तरह सफल नहीं हुए।अपने बढ़तें खर्च की वजह से उन्हें सुल्तान पैलेस छोड़ना पड़ा।वे वापस अपने पुश्तैनी गांव पाली चले गए।

      महान शख्सियत सर सैय्यद सुल्तान अहमद का जन्म 24दिसबंर,1880 को जहानाबाद के पाली गांव में हुआ था। 1897 में गया जिला स्कूल से पढ़ाई के बाद पटना कालेज में दाखिला लिया।दो वर्ष की पढ़ाई के बाद वे इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड से वे 1905में एक सफल बैरिस्टर के रूप लौटें।

      उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। सर सैय्यद अहमद को बिहार सरकार का उप विधि परामर्शी नियुक्त किया गया ताकि वे कलकत्ता में वकालत करते हुए बिहार सरकार का काम कर सकें।1916में उन्होंने सहायक वकील के तौर पर पटना हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। अगले वर्ष ही वे सरकारी वकील बन गये।

      1923 से लेकर 1930 तक वे पटना विश्वविद्यालय के कुलपति रहें। उनके समय में ही विश्वविद्यालय में साइंस कालेज, मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज संपूर्ण रूप से बन सका।

      वे 1930-31में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए।1937 में मुहम्मद युनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार में उन्हें एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया लेकिन कांग्रेस के विरोध के कारण शामिल नहीं हो सके।

      सर सैय्यद सुल्तान अहमद को हेग के इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के लिए भी चुना गया था, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के शुरू हो जाने के कारण वें वहां नहीं जा सकें। कहा जाता है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ उनके रिश्ते काफी अच्छे थें।

      1941 में सर सैय्यद सुल्तान अहमद मेंबर इन चार्ज लॉ बनाएं गए। इस अवधि में कई महत्वपूर्ण बिल पारित किए गए।हिंदू इंटेस्टेट सक्सेशन बिल, हिंदू अंतर्जातीय विवाह बिल इन्हीं दिनों पारित हुए।

      उनके ही प्रयासों का परिणाम रहा कि हिंदू परित्यक्ता महिला को आवास और गुजारा भत्ता दिये जाने को लेकर संशोधन किया गया।

      1943 में सर सैय्यद इनफार्मेशन एंड ब्राडकास्टिंग के सदस्य बनाये गये। आखिर में वे चैम्बर ऑफ प्रिंसेस के सलाहकार बनें।देश की आजादी के बाद मुहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान कैबिनेट मंत्री बनने का आफर दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। 1948 में वे वापस पटना लौटें। 27 फरवरी,1963 को उनका निधन उनके पैतृक गांव पाली में हो गया।

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