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    Friday, April 26, 2024
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      वर्ष 2005 में खुद सीएम नीतीश कुमार ने सर्कुलर जारी कर शुरु किया था थोक तबादलों का ‘खेल’

      एक्सपर्ट मडिया न्यूज डेस्क। बिहार में सरकारी महकमों के लिए थोक भाव में तबादले कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार जून महीने में हुए तबादलों पर घमासान मच गया है। क्योंकि इस माह में होने वाले तबादले मंत्री स्तर से किए जा सकते हैं और ऐसे  बड़े पैमाने के तबादले पर कोई सवाल-जबाव नहीं किया जाता रहा है।

      In the year 2005 CM Nitish Kumar himself had started the game of wholesale transfers by issuing a circularवर्ष 2005 से पहले बिहार में तबादलों को कोई महीना नहीं होता था। विभाग जब चाहे तब अफसर और कर्मियों का ट्रांसफर कर सकती थी।

      वर्ष 2005 में जब पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने तो उन्होंने तबादलों को लेकर एक सर्कुलर जारी किया।

      उस सर्कुलर के बाद यह नियम बन गया कि रूटीन ट्रांसफर सिर्फ साल में एक बार जून महीने में होंगे। सरकार की तरफ से यह व्यवस्था तबादला अराजकता को खत्म करने के लिए की गई थी।

      इस नियम की वजह से नए पदस्थापन के बाद किसी भी कर्मी और पदाधिकारी को एक साल से पहले नई पोस्टिंग नहीं दी जा सकती थी। अगर एक साल से पहले ट्रांसफर-पोस्टिंग की जाती है तो इसके लिए विभाग को सरकार के सामने इसका वाजिब कारण बताना पड़ता है और इसे इमरजेंसी ट्रांसफर-पोस्टिंग की श्रेणी में रखना पड़ता है ।

      जून माह में ट्रांसफर-पोस्टिंग काफी अहम होता है। इस महीने में लगभग सभी विभाग ट्रांसफर-पोस्टिंग की लिस्ट जारी करते हैं। हजारों की संख्या में होनेवाले इस ट्रांसफर-पोस्टिंग को विभाग के स्तर से तैयार किया जाता है और वहीं एक तरह से अंतिम मुहर भी लग जाती है।

      इतनी बड़ी संख्या में होनेवाले तबादलों की गहराई से जांच नहीं की जा सकती। मुख्य सचिव स्तर पर जब ये फाईले जाती हैं तो उन पर औपचारिक रूप से मुहर लगा दी जाती है।

      इससे विभाग को यह फायदा होता है कि वे मनचाहे तरीके से अधिकारियों की पोस्टिंग कर सकते हैं। तबादलों की इस बाढ़ में दागी से लेकर काम नहीं करनेवाले अफसर भी पैरवी की बदौलत अपनी नैया पार करा लेते हैं।

      जून में होनेवाले ट्रांसफर-पोस्टिंग में पैसे लेकर पोस्टिंग दी जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। हालांकि इस आरोप को लगाने वाली पार्टी कोई एक नहीं। सत्ता परिवर्तन के हिसाब से इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टियां भी बदलती रही हैं। हमेशा से इस तरह के आरोप विपक्ष में रहने वाली पार्टी ही लगाती है।

      राजद और जदयू की साझा सरकार में भाजपा ने मंत्रियों पर पैसे लेकर पोस्टिंग देने के आरोप लगाए थे। अब कांग्रेस और राजद जैसी विपक्षी पार्टियां इस मामले को समय-समय पर उठाती रही है।

      लेकिन यह पहली बार हुआ है कि सत्ता पक्ष के लोग ही ट्रांसफर-पोस्टिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं। भाजपा के ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने अपने मंत्रियों पर पैसे लेकर ट्रांसफर करने के आरोप लगाए हैं।

      इसके पहले जदयू से आनेवाले समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी तो उनसे भी एक कदम आगे बढ़ते दिख रहे हैं। मदन सहनी ट्रांसफर नहीं कर पाने पर इतने गुस्से में आ गए हैं कि उन्होंने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी है, क्योंकि सरकार के सर्कुलर के अनुरुप प्रधान सचिव ने उनकी एक न सुनी और मनमानी की।

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