“बिहार के सीएम नीतीश कुमार को आइएएस लॉबी हैंडिल कर रहा है। यह स्थिति तब से पैदा हुई है, जबसे एक रिटार्यड आइएएस उनका करीबी राजनेता बना है। कहा तो यहां तक जाता है कि यह महात्वाकांक्षी दुलारा ही सरकार चला रहा है। गाहे बेगाहे सब साबित भी होता रहा है। सुशासन-जीरो टॉलरेंस अब फंतासी की बात है। यहां पारदर्शिता बिल्कुल लुप्त हो गई है…
✍️ मुकेश भारतीय / एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क
वेशक बीते एक सप्ताह के अंदर प्रदेश में ऐसी कई घटनाएं हुई है, जिसमें नीतीश सरकार की छवि काफी विद्रुप नजर आती है। बात चाहे अररिया के अफसर द्वारा एक होमगार्ड जवान के साथ की गई गुंडई हो, भाजपा विधायक द्वारा कोटा से अपने बेटा-बेटी को लाने के मामले में एसडीओ की निलंबन की हो या फिर दो सांसदो के मामले में मुजफ्फरपुर डीएम की कारस्तानी। उसमें सब कुछ स्पष्ट है।
ऐसे में बिहार प्रशासनिक सेवा संघ ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। लेकिन शायद वह भूल रही है कि उसके अफसर भी जिस व्यवस्था में काम कर रहे हैं, उसमें हर स्तर पर यही होता रहा है। कहां कितनी पारदर्शिता बरती जाती है। उनसे भी छुपा नहीं है। शासन कमजोर की तराजू पर मजबूत का ही पलड़ा भारी रखता है।
हिसुआ (नवादा) के भारतीय जनता पार्टी विधायक अनिल सिंह द्वारा लॉकडाउन में कोटा से अपनी बेटी को लाने का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि पूर्णिया सासंद संतोष कुशवाहा तथा अररिया के सासंद प्रदीप सिंह के दिल्ली से बिहार आने का मामला गरमा गया है।
खबर है कि पूर्णिया के जनता दल यूनाइटेड सांसद संतोष कुशवाहा सात अप्रैल को दिल्ली से सड़क मार्ग से पूर्णिया पहुंचे। इसके बाद संसदीय क्षेत्र के कई कार्यक्रमों में भी शामिल रहे। लॉकडाउन के दौरान किस आपात स्थिति में वे दिल्ली पुलिस द्वारा निर्गत पास लेकर आए, इसकी जानकारी अभी नहीं मिल सकी है। इसी तरह अररिया के बीजेपी सांसद प्रदीप कुमार भी दिल्ली से घर पहुंचे।
हालांकि पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार के अनुसार सांसद के दिल्ली से आने के बाद उनकी स्वास्थ्य जांच की गई थी। कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं पाए जाने के कारण उनका कोरोना टेस्ट नहीं कराया गया था। सासंद की मानें तो वे जहां थे, वहां उनकी जांच हुई। वहां से आने के बाद घर पर ही हैं।
उधरा अररिया के भाजपा सांसद प्रदीप कुमार का कहना है कि उनकी मां बीमार हैं। उनके जिले में स्कैनर व मास्क की कमी थी। इस कारण उन्हें आना पड़ा। वे 11 अप्रैल दिल्ली से पास लेकर आए और तब से घर में ही हैं।
पूर्णिया और अररिया के सांसदों के अपने-अपने क्षेत्रों में पहुंचने तथा लोगों के बीच जाने के आरोप लगाकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है । लेकिन सरकार को विपक्ष के बाणों की प्रवाह ही कब रही है।
कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्र कहते हैं कि सरकार एक तरफ छात्रों को लाने से इन्कार करती है तो दूसरी तरफ ये सांसद लॉकडाउन में घूम रहे हैं। बिहार में आम व खास के लिए दो कानून चलाया जा रहा है।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता मृत्युंजय तिवारी का भी दो टूक कहना है कि सत्ताधारी दलों के नेता लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है।
इसके पहले बीजेपी विधायक अनिल सिंह कोटा से बेटी को वापस ले आए थे। इस मामले में उन्हें पास जारी करने वाले एसडीओ को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन दो सांसदों के मामले में सीएम नीतीश कुमार और उनकी सरकार के नुमाइदे चुप्पी साधे हैं।
हिसुआ विधायक को कोटा के लिए पास जारी करने को लेकर नवादा एसडीओ को सस्पेंड करने की कार्रवाई के बाद बाद बिहार सरकार के जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल खड़े होने लाजमि है।
विपक्षी दलों की बात छोड़िए, बिहार प्रशासनिक सेवा संघ सरकार के इस निर्णय के विरोध में खड़ा हो गया है। बासा ने इस कार्रवाई पर गहरी नाराजगी जताई और कहा है एसडीओ को बलि का बकरा बनाया गया है।
कहत हैं कि हिसुआ विधायक अनिल सिंह ने कोटा जाने को लेकर पास जारी करने के लिए सबसे पहले डीएम से मिले थे। तब डीएम ने इस संबंध मे सदर एसडीओ को अधिकृत बताते हुए उनसे मिलने को कहा था।
बासा का कहना है कि नवादा डीएम की सहमति से हीं एसडीओ ने विधायक का पास जारी किया है तो फिर सिर्फ एसडीओ पर हीं क्यों कार्रवाई की गई। पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सबके सामने आ सके।
बासा का मानना है कि नवादा के सदर एसडीओ अनू कुमार के साथ अन्याय हुआ है। फिर भी सरकार को लगता है कि उन्होंने परमिट जारी कर गलत किया है तो फिर इस तरह के काम करने वाले डीएम पर क्यों नहीं कार्रवाई हो रही?
संघ ने कहा है कि बिहार के अन्य ज़िलों में भी कोटा के लिए अनेकों परमिट निर्गत किया गया है। लिहाजा जिन ज़िला पदाधिकारी द्वारा निर्गत अंतर्राज्यीय परमिट को भी संज्ञान में ले तथा उनके विरुद्ध भी कारवाई की जाए।
बता दें कि मुजफ्फरपुर के डीएम ने भी 11 अप्रैल को लॉकडाउन के दौरान कोटा से बच्ची को लाने के लिए एक पूर्व पार्षद को पास जारी किया था। इस खुलासे के बाद सरकार बैकफूट पर आ गई है।
नवादा सदर एसडीओ के मामले में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अधिकारी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। बासा की मांग है कि एक तरह के आरोप में जब एसडीओ को सजा मिल सकती है तो फिर डीएम को क्यों नहीं?
उधर राजद के वरिष्ठ नेत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी ने इन मामलों को लेकर सीएम नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला है।
उन्होंने ट्वीटर पर लिखा है कि बिहार सरकार के निर्णयों में असमानता है। जब नवादा के एसडीएम को निलंबित किया गया है तो मुज़फ़्फ़रपुर के डीएम पर कारवाई क्यों नहीं हुई? निलंबित तो नवादा डीएम को करना चाहिए, जिन्होंने आदेश दिया। आख़िर वरीय अधिकारियों ने गलती की है तो बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के साथ भेदभाव क्यों?
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा है कि नियमों का उल्लंघन करने वाले भाजपा एमएलए पर कोई कारवाई नहीं, बल्कि उसके ग़रीब ड्राइवर को सज़ा। बुज़ुर्ग चौकीदार को दंड देने वाले कृषि अधिकारी के कुकृत्य पर लीपापोती। लेकिन छोटे कर्मचारियों को सज़ा। सरकार का इतना पक्षपाती रवैया क्यों? बड़े अफ़सरों को बचाओ, छोटे कर्मचारियों को फँसाओ।