पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क ब्यूरो)। मीडिया में सुर्खियों में बने रहने वाले पूर्व आईजी अमिताभ कुमार दास ने बिहार सरकार को पत्र लिखकर दरभंगा एयरपोर्ट का नाम दलितों के नायक राजा सल्हेश के नाम पर रखें जाने की मांग की है।
उन्होंने बिहार सरकार के मुख्य सचिव के नाम लिखें पत्र में मांग की है कि दरभंगा उनका गृह जिला है। यहां कुछ महीने पूर्व हवाई अड्डे का निर्माण हुआ है। जहां से उड़ानें भरी भी जा रही है। इस हवाई अड्डे का नाम मिथिला वासी राजा सल्हेश के नाम पर रखा जाएं।
उन्होंने मुख्य सचिव को लिखें पत्र में उल्लेख किया है कि पटना की राजधानी वाटिका (इको पार्क) में पहले से ही घोड़े पर सवार राजा सल्हेश की विशाल मूर्ति स्थापित है।
उन्होंने मुख्य सचिव से आग्रह किया कि वे इस आशय का प्रस्ताव नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भेज देंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि इस मामले में सरकार दलित विरोधी रुख नहीं अपनाएगी।
पूर्व आईजी अमिताभ कुमार दास के इस पहल को लेकर मिथिला वासियों ने आभार प्रकट करते हुए कहा है कि यह बहुत उत्कृष्ट विचार है और पहल है। अगर सरकार ऐसा करती हैं तो संपूर्ण मिथिला के लिए गौरव की बात होंगी। नयी पीढ़ी के लोगों को राजा सल्हेश के बारे में जानने का मौका मिलेगा।
कौन हैं राजा सल्हेशः राजा सल्हेश को मधुबनी जनपदों में सर्वजातीय श्रद्धा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त है। राजा सल्हेश का जन्म मधुबनी जिले से सटे नेपाल के महिसौथा में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमदेव और माँ का नाम शुभ गौरी थी। उनका विवाह विराट नगर के राजा श्री हलेश्वर की बेटी सत्यवती से हुआ था।
श्री सल्हेश पूर्व में जयवर्द्धन के नाम से जाने जाते थें पर बाद में सर्वसम्मति से राजतिलक के समय इनका नाम श्री जयवर्द्धन से शैलेश पड़ गया। कालान्तर में शैलेश सल्हेश हो गए।
श्री भंडारी तरेगनागढ़ के राजा थे, जिन्हें चार बेटियां थीं। बेटियों ने मालिन सम्प्रदाय को स्वीकार कर लिया था और आजीवन अविवाहित रहने का व्रत ले रखा था।
कुसमा, जो सबसे छोटी थी, शिव उपासक एवं सिद्ध योगिनी होने के साथ-साथ राष्ट्रहितकारिणी भी थी। एक पथ के पथिक होने के कारण सल्हेश को चारों बहनों से प्रेम हो गया।
सल्हेश दो भाई थे और उनकी एक बहन बनसपती थी। वे चीन और भूटान के आक्रमण से मिथिला की बार-बार रक्षा करते रहे। इनके प्रतिद्वंद्वी वीर चौहरमल थे, जो बहुत बड़े महर्षि योद्धा थे।
उस समय मिथिला के मूलवासियों में भी शुद्र राजा हुआ करते थे और अपनी अलौकिक कृति एवं पौरुष के कारण दिव्य व्यक्तित्व को प्राप्त कर पूजनीय बन जाया करते थे। राजा सल्हेश उसी कोटि के मिथिलावासी थे, जो अपने पराक्रम, शौर्य और विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण तत्कालीन मिथिला के राजा बने एवं अपने कार्यकाल में अनेक कल्याणकार्य किये।
वे अपने कर्म के बल पर देवत्व प्राप्त कर देवताओं की श्रेणी में आ गए और आजतक श्रद्धा,निष्ठां से घर -घर जन-जन में उनकी पूजा होती है।
कैसे होती है उनकी पूजा: मधुबनी जनपद के गाँवों में सल्हेश पूजा के समय इनके भगत अथवा भगता अर्द्धनग्न बदन पर लाल रंग की जंघिया गर्दन में माला, एक हाथ में अक्षत और दुसरे हाथ में बेंत रखते हुए भाव-विभोर हो जाते है।
झाल-मृदंग पर भाव-गीत गाते हुए लोग सल्हेश के अध्यात्म में पारलौकिकता का अनुभव करते हैं। गह्वर के सामने मिटटी का ई टाइप का पिंड बनाया जाता है। इसके बगल में बेदी बनायीं जाती है।
वहां अधुल, कनैल के फुल सरर, अगरवत्ती, चीनी का लड्डू ,खीर, पान, सुपारी, गांजा, खैनी, पीनी, जनेऊ, अरवा चावल, झांप, फल, प्रसाद आदि सामग्री रखी जाती है। सभी ग्रामीण साफ़-सुथरे वस्त्र में निष्ठां से डाली लगाते हैं।
भगत के ऊपर बारी-बारी से सल्हेश एवं उनके पार्षदों के भाव आते हैं। गोहारि होता है। प्रसाद अक्षत लेकर मंगल कामना के साथ लोग अपने-अपने घर जाते हैं। भगत को खीर का भोजन कराया जाता है।