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    Friday, April 26, 2024
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      पद्मश्री लोक गायक भिखारी ठाकुर की 46 वीं पुण्यतिथि मनी

       ” भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर अपने नाटकों एवं अभिनय के माध्यम से समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों पर जिस तरह से कड़ा प्रहार किया, उससे सामाजिक क्रांति को काफी बल मिला”

       ए के सविता  की रिपोर्ट

      सोमवार को स्थानीय डाकबंगला मोड़ स्थित नालंदा नाट्य संघ, बिहार शरीफ में पद्मश्री ख्यातिलब्ध महान लोक कवि, लोकगायक भिखारी ठाकुर की 46 वीं पुण्यतिथि मनायी गयी। जिसकी अध्यक्षता नालंदा नाट्य संघ के अध्यक्ष रामसागर राम ने किया। इस मौके पर उपस्थित लोगों ने उनके तैल चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया।

      इस अवसर पर बिहार अराजपत्रित प्रारम्भिक शिक्षक संघ के राज्य परिषद सदस्य शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर अपने नाटकों एवं अभिनय के माध्यम से समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों पर जिस तरह से कड़ा प्रहार किया, उससे सामाजिक क्रांति को काफी बल मिला।

      उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर बिहार ही नहीं बल्कि देश के सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। उन्होंने लेखन,नाटक व गायन के माध्यम से जनजागरुकता का कार्य किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए सामाजिक कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामाजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी। आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहाँ-तहाँ भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है, उनका संगीत भी जीवन के छोटे-छोटे प्रसंगों से उपजता है और यह संगीत अपने प्रवाह में श्रोता और दर्शक को बहाकर नहीं ले जाता, बल्कि उसे सजग बनाता है। उनकी प्रसिद्द व अमर कुछ रचनाएँ जो मैंने छात्र जीवन में पढ़ी और जिनको मैंने आत्मसात किया उनमें से प्रमुख रूप से है -बिदेशिया, गबर घिचोर, गंगा स्नान,बिधवा-बिलाप और बेटी बेचवा। उन दिनों देश में बेटी बेचने की प्रथा सबसे दुखद प्रथा थी। मुफलिसी का जीवन जी रहे माता पिता अपनी नाबालिग लड़कियों की शादी मोटी रकम लेकर किसी अधेड़ या बूढ़े व्यक्ति से कर देते थे। अपने लोक नाटक “बेटी बेचवा” में उन्होंने उन लड़कियों का दुःख बयान किया है,जिनके पिता पैसा लेकर बूढ़े से शादी कर दिए थे। भिखारी ठाकुर का लिखा ये अमर गीत जब मंच पर गाया जाता था तो ये दर्दभरा गीत सुनकर लड़कियों और ओरतों की रुलाई बंद नहीं होती थी। पूरा माहौल गमगीन हो जाता था।बहुत से माता पिता इस गीत को सुनकर जागरूक हुए और बेटी बेचने की शर्मनाक प्रथा कुछ कम हुई।

      नालन्दा नाट्य संघ के अध्यक्ष रामसागर राम ने भिखारी ठाकुर का  लिखा हुआ “बेटी बेचवा” लोक नाटक का दर्दभरा गीत लोगों के बीच साँझा किया….

      “रुपया गिनाई लिहला,पगहा धराई दिहला,

      चिरिया के छेरिया बनवलअ हो बाबूजी

      साफ कर के अंगना गली,छिपा लोटा जूठी थाली,

      बनके रहलीं माई के टहलनी हो बाबूजी,

      वर खोजे चली गइला,माला ले के घरे अईला,

      दादा लेखा खोजला दुलहवा हो बाबूजी

      रुपया गिनाई लिहला,पगहा धराई दिहला,

      चिरिया के छेरिया बनवलअ हो बाबूजी

      अगुआ अभागा रहे,बड़ा रे मुंहलागा रहे.

      पूड़ी खा के छुरिया चलवलस हो बाबूजी,

      अइसन देखवलस दुःख,सपना भइल सुख

      सोनवा में डललस सुहगवा हो बाबूजी”

      इस मौके पर श्रद्धांजलि देने वालों में पृथ्वीनाथ, नीरज कुमार, श्रीराम कुमार, नवीन कुमार, संजय कुमार डिस्को, रजनेश दास, अनिल कुमार, पप्पू पेंटर, विनय कुमार आलोक, डा. विजय किशोर, जितेन्द्र शर्मा, विशुनदेव कुमार,  आदि शामिल थे।

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