हालांकि इस मामले की सूचना मिलते ही नालंदा जिलाधिकारी सह निर्वाची पदाधिकारी योगेन्द्र सिंह ने जल्द कार्रवाई करने की बात कही है…..
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। भारतीय निर्वाचन आयोग और उसके मातहत कार्यकारी पदाधिकारियों आदर्श आदेश की धज्जियां व्यवस्था में पहुंच-पैरवी के बल पदासीन जिम्मेवार लोग अधिक उड़ाते दिखते हैं। वे चुनावी नेताओं और उनके दलालों को ही अपना आका मान लेते हैं।
जरा कल्पना कीजिए कि एक विवादित छवि का राजनीतिक कार्यकर्ता सरकारी चुनावी आयोजनों में सरकारी वाहन से विचरण करे और दूसरी तरफ अपनी उसी धौंस के बल मतदाताओं के बीच किसी उम्मीदवार विशेष के लिए समर्थन मांगे तो आदर्श चुनाव आचार संहिता के क्या मायने रह जाते हैं।
मामला सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से जुड़ा है। यहां आम धारणा बन गई है कि एक खास ‘सरकारी जाति’ का राज चलता है। थाना, प्रखंड, अंचल, अनुमंडल स्तर के बाबू भी इसी मस्ती में डूबे रहते हैं। उनकी कार्रवाईयों में भी इसकी झलक साफ दिखती है।
बीते कल राजगीर में प्रशासन की ओर से मतदाता जागरुकता अभियान के तहत एक तांगा रैली का आयोजन किया गया। इस रैली में सबसे गंभीर तत्थ यह उभरकर सामने आए कि राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि का चिन्हित व दोषी एक अतिक्रमणकारी थानाध्यक्ष की वाहन ही नहीं, उसकी सीट पर बैठ कर रैली नियंत्रित कर रहा है।
यह अतिक्रमणकारी राजगीर थाना कांड संख्या- 85/2018 का मुख्य अभियुक्त है। जोकि प्रमंडलीय आयुक्त के निर्देश पर जांचोपरांत दर्ज कराई गई है। मलमास मेला सैरात भूमि पर अपना अवैध होटल बनाने के इस मामले तात्कालीन अंचलाधिकारी, राजस्वकर्मी, एवं भूमि सुधार उप समाहर्त्ता को भी नामजद सह अभियुक्त बनाया गया है। तात्कालीन जांच कमिटि में उक्त चारो अभियुक्त दोषी पाए गए। तत्पश्चात सबों के खिलाफ गैरजमानती प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए गए। यह प्राथमिकी राजगीर भूमि उप समाहर्ता द्वारा दर्ज कराई गई है।
बहरहाल, लागू चुनाव आचार संहिता के बीच थाना की वाहन में पुलिस बल के साथ एक प्रशासनिक कार्यक्रम में उसकी उपस्थिति एक हलचल पैदा कर दी है। साथ ही यह एक बड़ा सबाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई राजगीर पुलिस-प्रशासन के लोग अपना सब कुछ दांव पर रख ऐसे लोगों के तलवे चाटती है, जिनकी छवि असमाजिक होती है?
आखिर सूचना के बाद भी खुले तौर पर संदिग्ध भूमिका में सामने आए थानाध्यक्ष और इसे नजरंदाज करने वाले इंसपेक्टर, डीएसपी, एसडीओ जैसे सक्षम अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होना भी खुद में एक बड़ा सवाल है। ऐसे में कोई निष्पक्ष चुनाव की कल्पना कैसे कर सकता है, जहां का आलम इस तरह का हो।