हालांकि इस मामले की सूचना मिलते ही नालंदा जिलाधिकारी सह निर्वाची पदाधिकारी योगेन्द्र सिंह ने जल्द कार्रवाई करने की बात कही है…..
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। भारतीय निर्वाचन आयोग और उसके मातहत कार्यकारी पदाधिकारियों आदर्श आदेश की धज्जियां व्यवस्था में पहुंच-पैरवी के बल पदासीन जिम्मेवार लोग अधिक उड़ाते दिखते हैं। वे चुनावी नेताओं और उनके दलालों को ही अपना आका मान लेते हैं।
मामला सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से जुड़ा है। यहां आम धारणा बन गई है कि एक खास ‘सरकारी जाति’ का राज चलता है। थाना, प्रखंड, अंचल, अनुमंडल स्तर के बाबू भी इसी मस्ती में डूबे रहते हैं। उनकी कार्रवाईयों में भी इसकी झलक साफ दिखती है।
बीते कल राजगीर में प्रशासन की ओर से मतदाता जागरुकता अभियान के तहत एक तांगा रैली का आयोजन किया गया। इस रैली में सबसे गंभीर तत्थ यह उभरकर सामने आए कि राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि का चिन्हित व दोषी एक अतिक्रमणकारी थानाध्यक्ष की वाहन ही नहीं, उसकी सीट पर बैठ कर रैली नियंत्रित कर रहा है।
बहरहाल, लागू चुनाव आचार संहिता के बीच थाना की वाहन में पुलिस बल के साथ एक प्रशासनिक कार्यक्रम में उसकी उपस्थिति एक हलचल पैदा कर दी है। साथ ही यह एक बड़ा सबाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई राजगीर पुलिस-प्रशासन के लोग अपना सब कुछ दांव पर रख ऐसे लोगों के तलवे चाटती है, जिनकी छवि असमाजिक होती है?
आखिर सूचना के बाद भी खुले तौर पर संदिग्ध भूमिका में सामने आए थानाध्यक्ष और इसे नजरंदाज करने वाले इंसपेक्टर, डीएसपी, एसडीओ जैसे सक्षम अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होना भी खुद में एक बड़ा सवाल है। ऐसे में कोई निष्पक्ष चुनाव की कल्पना कैसे कर सकता है, जहां का आलम इस तरह का हो।