पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा सभी विश्वविद्यालयों के बैंक अकाउंट को फ्रीज कर दिये जाने संबंधी आदेश को चुनौती देने वाली नौ विश्वविद्यालयों की ओर से दायर रिट याचिकाओं पर हाइकोर्ट बड़ी सुनवाई की है। उन सभी याचिकाओं पर जस्टिस अंजनी कुमार शरण की एकलपीठ के लंबी सुनवाई के बाद सभी पक्षों के बीच आपसी सहमति से बात बनी।
अब विश्वविद्यालयों के वीसी ने शिक्षा विभाग के साथ बैठक करने में अपनी सहमति दे दी। उनका कहना था कि बैठक सौहार्द्रपूर्ण माहौल में होनी चाहिए। किसी के साथ बदसलूकी नहीं होनी चाहिए। इसे लेकर शिक्षा विभाग की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने आश्वस्त किया कि पूरी बैठक की वीडियो रिकॉर्डिंग की जायेगी। कोई भी अधिकारी किसी के साथ बदसलूकी नहीं करेंगे, लेकिन विश्वविद्यालयों के वीसी और अन्य अधिकारी भी इसमें पूरा सहयोग करेंगे।
विश्वविद्यालयों की ओर से अधिवक्ता विंध्याचल राय सहित सिद्धार्थ प्रसाद, राणा विक्रम सिंह, रितेश कुमार, अशहर मुस्तफा व राजेश चौधरी ने बहस की। वहीं, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने अपना पक्ष रखा।
वहीं चांसलर की ओर से वरीय अधिवक्ता डॉ केएन सिंह और राजीव रंजन कुमार पांडेय ने हाई कोर्ट से कहा कि प्रदेश के छात्रों के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए सभी को आपसी मतभेद मिटा कर बैठक में भाग लेना चाहिए। उनके ही सुझाव के बाद कोर्ट ने बैठक में भाग लेने की बात कही। जिस पर सभी पक्षों ने अपनी सहमति जतायी और कोर्ट ने सरकार के खर्च पर बैठक की तारीख, समय और स्थान तय किया तथा अगली सुनवाई की तारीख 17 मई को तय की।
एक मई को हुई थी आंशिक सुनवाई:
बता दें कि इससे पहले, इस मामले पर एक मई को हुई आंशिक सुनवाई में कोर्ट ने बिहार सरकार और कुलाधिपति सह राज्यपाल की ओर से कोर्ट में उपस्थित अधिवक्ताओं को सुनने के बाद कहा था कि दोनों पक्ष आपस में मिल बैठकर इस मामले का निदान कर लें।
हाई कोर्ट में विश्वविद्यालयों की दलीलः
- शिक्षा विभाग की ओर से विवि के परीक्षा संचालन पर चर्चा के लिए बैठक बुलायी गयी। बैठक में भाग नहीं लेने पर विभाग ने विवि के सभी खातों के संचालन पर रोक लगा दिया।
- विश्वविद्यालय कानून के तहत शिक्षा विभाग वीसी को बैठक में भाग लेने के लिए नहीं बुला सकता।
- अधिवक्ता विंध्याचल राय ने कहा कि वरीयताक्रम में चांसलर सबसे ऊपर होते हैं, उसके बाद वीसी, फिर प्रोवीसी। उसके बाद विभाग के सचिव का नंबर आता हैं। ऐसे में विभाग के सचिव और निदेशक बैठक में भाग लेने के लिए वीसी को नहीं बुला सकते। 2009 के चांसलर के एक आदेश के अनुसार विवि के अधिकारी चांसलर के अनुमति से ही मुख्यालय छोड़ सकते हैं।
- बैठक में वीसी के साथ बदसलूकी की जाती है, जिसके कारण सभी वीसी ने बैठक में जाने से मना कर दिया। हाल के दिनों में एक बैठक स्थानीय होटल में बुलायी गयी थी। इस बैठक में वीसी आये लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से कोई नहीं आया।
- आरडीडीइ वीसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा रहे हैं। शिक्षा विभाग एक माह में तीन-तीन सत्र का परीक्षा लेने का दवाब बना रहा है।
- कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है, फिर भी बेवजह दवाब बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालय के खाता के संचालन पर रोक लगाने का अधिकार भी नहीं है।
हाई कोर्ट में राज्य सरकार की दलीलः
- महाधिवक्ता पीके शाही ने हाई कोर्ट को बताया कि जितना पैसा विश्वविद्यालयो को दिया जा रहा हैं, उन पैसों को छात्रों को दे दिया जाये तो वे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर लेंगे।
- राज्य सरकार पांच हजार करोड़ विवि को देती है, फिर भी शिक्षा का स्तर अन्य राज्यों के तुलना में काफी खराब है। छात्रों का पलायन जारी है। विभाग ने थोड़ी कड़ाई की तो सभी विवि बिचलित हो गये। छात्रों का भविष्य अंधकारमय हैं।
- कोई भी विश्वविद्यालय समय पर परीक्षा नहीं ले रहा है । परीक्षा समय पर लेने के लिए बैठक बुलायी गयी, तो वीसी नहीं पहुंचे।
- विश्वविद्यालय आखिर किस कानून के तहत पीएल खाता में पैसा रखते हैं।
दोनों पक्षों की दलील पर हाई कोर्ट का फैसलाः
हाई कोर्ट ने केके पाठक द्वारा राज्य के विश्वविद्यालय के बैंक खातों को फ्रीज किये जाने संबंधी आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया है। साथ ही कोर्ट ने शिक्षा विभाग के मुख्य अपर सचिव केके पाठक को 6 मई को सभी विश्वविद्यालय के वीसी और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ पटना मौर्या होटल में सुबह 11 से बैठक बुलाने का निर्देश दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि बैठक में कोई अध्यक्ष नहीं होगा। यह बैठक सौहार्दपूर्ण वातावरण में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होनी चाहिए।