Home देश जदयू बचेगा या राजद? या आकार लेगा कोई नया दल?

जदयू बचेगा या राजद? या आकार लेगा कोई नया दल?

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एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। 2024 में होने वाले आम चुनावों को लेकर बिहार में जमकर रस्साकशी होती दिख रही है। जिस तरह की कवायद होती दिख रही है, उसे देखकर सियासी जानकार यही अनुमान लगाते दिख रहे हैं कि 2024 के आम चुनावों से पहले 2023 में ही राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाईटेड एक दूसरे में विलय होकर नए दल का निर्माण भी कर सकते हैं। हो सकता है कि 2024 के आम चुनावों में दोनों ही दल तीन और लालटेन के बजाए किसी नए चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरें।

बिहार में नौकरशाह भी सियासी ड्रामे पर पूरी नजर बनाए दिख रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को चोट लगी है और वे कार की अगली सीट पर नहीं बैठ पा रहे हैं, क्योंकि वहां सीट बेल्ट लगाना होता है।  नौकरशाह मीडिया को बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री को हल्की चोट लगी है, पर नीतिश कुमार स्वयं ही अपना कुर्ता उठाकर चोटों का मुआयना पत्रकारों को कराते नजर आ रहे हैं।

बिहार के सियासी बियावान में जिस तरह की बयार बहती दिख रही है उसके मुताबिक बिहार के नौकरशाहों को भरोसा हो गया है कि जल्द ही नीतिश कुमार अपनी कुर्सी को तश्तरी में रखकर तेजस्वी को परोस देंगे। इसी गणित के हिसाब से बिहार के नौकरशाह अपने अपने अगले कदम तय करने में जुट चुके हैं। बिहार में नौकरशाह अब नीतिश कुमार की चिंता करते नजर नहीं आते हैं।

हाल ही में 10 अक्टूबर को देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के सम्मेलन में लालू प्रसाद यादव को पार्टी का अध्यक्ष बारहवीं बार चुना गया है। इसी दौरान पार्टी में संविधान संशोधन का प्रस्ताव रखा गया, जो बिना किसी विरोध के ही पारित हो गया। इस संशोधन की ज्यादा चर्चा नहीं हो पाई

दरअसल, इस संशोधन प्रस्ताव में राष्ट्रीय जनता दल का नाम बदलने, चुनाव चिन्ह परिवर्तित करने आदि का अधिकार लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव को सौंप दिया गया है। इसके अलावा बड़े मुद्दों पर जिला स्तरीय नेताओ को बयानबाजी करने से पूरी तरह इंकार कर दिया गया है।

दिल्ली की सियासी फिजा में भी यह बात तेजी से उभर रही है कि राजद और जदयू का आपस में विलय होने वाला है। दोनों मिलकर नए दल का गठन कर नया चुनाव चिन्ह लेकर आम चुनावों में किस्मत आजमाएंगे। इसी बीच नीतिश कुमार ने जनता दल यूनाईटेड के संगठनात्मक चुनावों की रणभेरी बजा दी है।

आने वाले दिनों में दिसंबर माह में राजद का एक अधिवेशन नई दिल्ली में प्रस्तावित है। इधर, राजद के सारे अधिकार तेजस्वी यादव की मुट्ठी में होंगे तो दूसरी ओर जनता दल यूनाईटेड में संगठनात्मक चुनावों के उपरांत अगर सारे अधिकार नीतिश कुमार के हाथों में आ जाते हैं तब इन बातों को बल मिलने लगेगा कि जदयू और राजद का आपस में विलय हो जाएगा।

देखा जाए तो नीतिश कुमार के सामने अभी धर्म संकट जस का तस ही खड़ा हुआ है। नीतिश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ लड़ाई लड़कर ही अपना और अपनी पार्टी का वजूद बनाया है। हाल ही में उनकी लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के साथ हो रही गलबहियों के बाद उनकी छवि काफी हद तक प्रभावित हुए बिना नहीं रही है। वैसे भी नीतिश कुमार के सामने जनता दल यूनाईटेड के वजूद को बचाने की चुनौति भी मुंह बाए खड़ी ही है।

बिहार के सियासी जानकारों के बीच चल रही चर्चाओं को अगर सच माना जाए तो नीतिश कुमार पर बहुत दबाव है कि वे जदयू का राजद में विलय कर दें। इसी बीच सियासी बियावान में ये चर्चाएं भी तेजी से चलने लगी हैं कि नीतिश कुमार ने भी लालू प्रसाद यादव के सामने यह शर्त रख दी है कि वे भी राजद का नाम और चुनाव चिन्ह दोनों ही छोड़ दें तब आगे बात की जा सकती है।

लालू प्रसाद यादव के करीबी सूत्रों ने बताया कि लालू प्रसाद यादव ने अपनी तय रणनीति के हिसाब से नीतिश कुमार को पीएम मैटेरियल बताकर उनके मन में प्रधानमंत्री बनने की लालसा तो पैदा कर ही दी है। अब वे चाहते हैं कि नीतिश कुमार अपना राजपाट लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव को सौंपकर दिल्ली की सियासत में दिलचस्पी लेना आररंभ कर दें।

कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव की बातों को नीतिश कुमार के द्वारा मानते हुए पहले तो सैद्धांतिक सहमति दे दी थी, किन्तु अब वे यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि जदयू का वजूद समाप्त हो अथवा रहे। यही कारण है कि नीतिश कुमार फिलहाल निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं, और उनके द्वारा संगठनात्मक चुनावों की घोषणा की जाकर कुछ समय इसके लिए ले लिया गया है।

जदयू के चुनाव कार्यक्रम के अनुसार 13 नवंबर से संगठन के चुनावों का आगाज होगा। नवंबर में ही जदयू का प्रदेश अध्यक्ष चुन लिया जाएगा, उसके बाद दिसंबर माह में जद यू को राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिल जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया के उपरांत दिल्ली में 10 और 11 दिसंबर को जनता दल का खुला अधिवेशन होगा।

इसके अलावा लालू प्रसाद यादव यह बात बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के हाथों में नीतिश कुमार की कमजोर नब्जें लग चुकी हैं। प्रशांत किशोर को लालू यादव के द्वारा अभी रिजर्व में ही रखा गया है। अनेक बार मीडिया के द्वारा प्रशांत किशोर पर प्रश्न करते ही नीतिश कुमार की न केवल भाव भंगिमाएं बदल जाती हैं, वरन वे पत्रकारों के सामने हाथ जोड़कर भी खड़े हो जाते हैं। कुल मिलाकर आने वाला वक्त ही बताएगा कि यह काठ की हाण्डी आग पर चढ़ पाएगी अथवा नहीं!

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