पुपरी SDPO और बगहा अस्पताल उपाधीक्षक को गिरफ्तार करने का आदेश
अदालत ने पहले ही 2018 में तीनों प्रमुख गवाहों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया था, लेकिन इसके बावजूद वे कोर्ट में पेश नहीं हुए। इससे नाराज होकर कोर्ट ने अब उनकी गिरफ्तारी का आदेश देते हुए बगहा एसपी को निर्देशित किया है कि वे तीनों को गिरफ्तार कर कोर्ट में प्रस्तुत करें...

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार की न्यायिक व्यवस्था में एक बार फिर सख्ती का उदाहरण सामने आया है। बगहा सिविल कोर्ट के जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र ने हत्या के एक पुराने मामले में समय पर गवाही नहीं देने पर पुलिस और चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने पुपरी के वर्तमान अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (SDPO) अतनु दत्ता, बगहा अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक डॉ. एके तिवारी और एक अन्य पुलिस पदाधिकारी अमरेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी का आदेश जारी किया है।
2011 में बगहा के डब्लू राम उर्फ डेबा की हत्या कर दी गई थी। मृतक की पत्नी मुमताज देवी ने चुन्नू डोम समेत अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मामले की जांच तत्कालीन पुलिस पदाधिकारी अतनु दत्ता और अमरेश कुमार सिंह ने की थी, जबकि शव का पोस्टमार्टम डॉ. एके तिवारी ने किया था। केस में कुल नौ गवाह हैं, लेकिन अब तक केवल तीन की ही गवाही हो सकी है।
अदालत ने पहले ही 2018 में तीनों प्रमुख गवाहों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया था, लेकिन इसके बावजूद वे कोर्ट में पेश नहीं हुए। इससे नाराज होकर कोर्ट ने अब उनकी गिरफ्तारी का आदेश देते हुए बगहा एसपी को निर्देशित किया है कि वे तीनों को गिरफ्तार कर कोर्ट में प्रस्तुत करें।
कोर्ट ने यह भी पूछा है कि पिछले तीन वर्षों में गैर-जमानती वारंट की तामील रिपोर्ट क्यों प्रस्तुत नहीं की गई। न्यायालय ने बगहा एसपी से स्पष्ट कारण मांगा है कि किस परिस्थिति में आदेश का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष को बार-बार समय देने के बावजूद यदि गवाह अदालत में नहीं आएंगे तो यह न्याय प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने गवाहों की लगातार अनुपस्थिति पर आपत्ति जताई और अभियोजन साक्ष्य के अवसर को समाप्त करने की मांग की। हालांकि, अभियोजन अधिकारी जितेन्द्र भारती ने एक अंतिम अवसर देने की अपील की, जिस पर अदालत ने सुनवाई करते हुए उक्त सख्त कदम उठाया।
यह मामला न्यायपालिका की उस गंभीरता को दर्शाता है, जिसमें सरकारी पदों पर आसीन अधिकारी भी यदि अदालत के आदेशों की अवहेलना करें तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है। कोर्ट का यह निर्णय न केवल कानून व्यवस्था के पालन का संदेश देता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि न्याय में देरी करने वालों के लिए अब कोई रियायत नहीं है।