Gond murder case: डॉक्टर और दो पुलिस अफसर को अरेस्ट कर 16 जून तक कोर्ट में पेश करें बगहा एसपी
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि 16 जून तक तीनों आरोपी गवाहों की गिरफ्तारी नहीं होती, तो इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट और बिहार डीजीपी को भेज दी जाएगी। यह चेतावनी बिहार के प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर संकेत है कि न्याय में देरी अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी...

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बगहा अनुमंडलीय अस्पताल के डॉक्टर और दो पुलिस अधिकारियों की लापरवाही अब उन्हें भारी पड़ सकती है। बगहा जिला जज-चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की कोर्ट ने बुधवार को राजकुमार गोंड हत्याकांड (Gond murder case) की सुनवाई के दौरान तीनों को तत्काल गिरफ्तार कर 16 जून को अदालत में पेश करने का निर्देश बगहा एसपी को दिया है। यह आदेश कोर्ट द्वारा पहले से निर्गत गैर जमानती वारंट (NBW) की सात वर्षों से अनदेखी के कारण आया है।
यह मामला ठकराहां थाना क्षेत्र के जिगनही गांव में 18 वर्ष पूर्व हुए एक हत्या से जुड़ा है। मृतक राजकुमार गोंड की हत्या के मामले में उसके पिता लालजी गोंड द्वारा 06 फरवरी 2007 को नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। केस में कुल 17 गवाह हैं, जिनमें से 13 की गवाही पूरी हो चुकी है। शेष अनुसंधानकर्ता, डॉक्टर और सूचक की गवाही अब तक नहीं हो पाई है।
कोर्ट ने पाया कि 13 अगस्त 2018 को गैर जमानती वारंट जारी होने के बावजूद भी डॉक्टर आरपी सिंह (प्रभारी, अनुमंडलीय अस्पताल बगहा), पूर्व थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह (भिंतहा ओपी) और आइओ लखीचंद साह न तो कोर्ट में उपस्थित हुए और न ही अपनी गवाही दी। इस मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा बार-बार निर्देश देने के बाद भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई।
कोर्ट ने बगहा एसपी से स्पष्टीकरण मांगा है कि जब नन वेवेबुल वारंट (NBW) सात साल पहले जारी किया गया था और 28 नवंबर 2023 को तामिला रिपोर्ट मांगी गई थी तो अब तक किन परिस्थितियों में पुलिस ने इस आदेश की तामिला नहीं कराई?
अभियोजन पदाधिकारी मन्नू राव ने कोर्ट को बताया कि संबंधित पुलिस अधिकारी अब अन्य स्थानों पर स्थानांतरित हो चुके हैं, और यही उनकी अनुपस्थिति का कारण है। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने माना कि यह अभियोजन और पुलिस की गंभीर लापरवाही है, जो न्याय में देरी और विफलता का कारण बन सकती है।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कोर्ट से अपील की कि अभियोजन द्वारा 17 अप्रैल 2013 के बाद से कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसलिए अब अभियोजन का अवसर समाप्त कर दिया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह पूरी प्रक्रिया पटना हाईकोर्ट द्वारा पुराने मामलों के त्वरित निपटारे के आदेश की सीधी अनदेखी है। पुलिस और अभियोजन की यह ढिलाई न्याय प्रणाली की गरिमा को ठेस पहुंचा रही है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि 16 जून तक तीनों आरोपी गवाहों की गिरफ्तारी नहीं होती, तो इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट और बिहार डीजीपी को भेज दी जाएगी। यह चेतावनी बिहार के प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर संकेत है कि न्याय में देरी अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी।