“सरकार-प्रशासन को चाहिए कि पान उत्पादक किसानों के बीच अविलंब राहत कार्य चलाए। उनकी सहायता करे। ताकि कोई भूख से न मरें। कोई पान उत्पादक किसान आत्महत्या करने को मजबूर न हो जाएं…”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा जिले के इसलामपुर प्रखंड क्षेत्र मगही पान उत्पादक किसानों का प्रमुख केन्द्र माना जाता है। मुंह की औषधीय लाली हो या पूजा की सजी थाली, मगही पान की अपनी अलग ही शान है।
लेकिन इस साल एक पर एक आई आपदा ने किसानों की कमर ही नहीं तोड़ी है, अपितु उन्हें बिल्कुल चकनाचूर कर दिया है। कड़कती ठंढ, कोरोना लॉकडाउन के बाद बीते दिन आई आंधी-पानी। पान उत्पादकों की खाली पेट में आग लगा दी है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
कहते हैं कि प्रखंड के कोचरा, मदारगंज, वौरीसराय, वौरीडाह, डौरा, इमादपुर, अर्जुन सेरथुआ सराय समेत करीब एक दर्जन गांवों में किसानों द्वारा पुरातन काल से मगही पान की खेती करते आ रहे हैं। यह कार्य चौरसिया समाज के लिए पुस्तैनी धंधा माना है।
हालांकि चौरसिया समाज का एक बड़ा तबका सरकारी उदासीनता से अपना पुस्तैनी धंधा छोड़ पेट की ज्वाला शांत करने के लिए बाहर पलायन कर चुके हैं। और जो किसान इस कार्य में लगे है, उनकी हालत दिन व दिन काफी दयनीय होती जा रही है।
मगही पान कृषक कल्याण संस्थान के अध्यझ लझ्मी चंद चौरसिया के अलावे पान कृषक जानकी प्रसाद, श्रवण कुमार, अशोक चौरसिया, अमीत कुमार चौरसिया, कृष्ण, संजय आदि ने बताया कि कभी लखनऊ के नबाव इस मगही पान को पसंद करते थे और मुंहमांगा कीमत देते थे।
बनारस, दिल्ली, गया, पटना के अलावे अन्य राज्यों मे यह पान उंचे दामों पर बिकता था। उसी से पान उत्पादक किसानों के परिवार का भरण पोषण के अलावे बच्चो की पढाई लिखाई, शादी विवाह, महाजन का कर्ज आदि में उपयोग किया जाता है।
लेकिन इस वर्ष पान उत्पादक किसानों को अलग ही प्राकृतिक की दंश झेलना पड़ रहा है। पहले ठंड और वारिश के समय पान का नुकसान हुआ। लेकिन किसान हार नहीं माने और कमरतोड़ मेहनत कर फसल को उपजाया। ताकि जो बचा है, उसी पान को बाहर बेचकर सारा कर्ज चुका सकें।
लेकिन उसके बाद कोरोना वायरस लॉकडाउन ने उनकी हालत काफी खराब कर दी। किसानों ने जैसे हीं बाहर बेचने के लिए पान का पता लाकर घर में सजाया और बाहर जाने की तैयारी मे जुटे कि अचानक हुए लॉकडाउन कारण आवागमन ठप पड़ गया तथा घर में सजा-धजा पान पता दागदार होकर सड़ने लगे।
इधर रही सही कसर बीते दिन आई तेज आंधी पानी ने पूरी कर दी। उनके खेतों में लगे पान की खेती भी नष्ट हो गए हैं। उनके परिवारों के खाने लाले पड़ गए हैं। कई परिवार तो भूखे सोने को विवश हैं।