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    Saturday, April 27, 2024
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      आ गया फैसला, नहीं बची नीतीश की साख

      जोकीहाट-अररिया  सीएम नीतीश कुमार का गढ़ नालंदा नहीं है।  यहां नीतिश ने वैसे लोगों को विधानसभा और लोकसभा का टिकट देकर चुनाव जीता दिया, जो अपने पंचायत में वार्ड और मुखिया का चुनाव स्वयं  नहीं जीत सकते।“

      पटना (जयप्रकाश नवीन)। अररिया लोकसभा उपचुनाव के बाद अररिया के ही जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में एनडीए को डबल झटका लगा है। जोकीहाट में तो जदयू ने अपनी सीट ही गवां दी। एनडीए जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव जीतने के दावे कर रहे थे।  लेकर हुआ उल्टा। जिसकी प्रत्याशा थी, वहीं हुआ।

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      राजद ने लगभग 43 हजार से ज्यादा मतों के एक  बड़े अंतर से जदयू को पटखनी ही नहीं दी बल्कि उससे सीट छीन भी ली। 2005 से यह सीट जदयू के पास ही था।

      अररिया के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में जदयू की हार का मतलब सिर्फ जदयू की हार नहीं सीधा सवाल सीएम नीतीश कुमार की साख से जुड़ा हुआ है। भले ही यह एक उपचुनाव का मामला हो लेकिन इसके परिणाम के कई सियासी मायने है ।

      अररिया भी “सीमांचल के गांधी” माने जानें वाले मो  तस्लीमुद्दीन का अभेध गढ़ है। भले ही वे आज जीवित नहीं हैं, लेकिन अररिया के जनता के दिलों में वें बसते हैं।

      अगर ऐसा नहीं होता तो अररिया लोकसभा उपचुनाव फिर जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव पर उनके परिवार का कब्जा नहीं होता। अररिया की राजनीति की दशा-दिशा राजनीतिक दल तय नहीं करते हैं, बल्कि जिधर मो तस्लीमुद्दीन फैमिली के उम्मीदवार होते हैं वहीं राजनीतिक दल चुनाव जीतता है।शायद इस मिथक को नीतीश भूल गए थे।

      अररिया लोकसभा उपचुनाव के बाद जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव  के मतदान के बाद सीएम नीतीश कुमार को झटका लगने की उम्मीद की जा रही थी, आखिर वही हुआ। अररिया लोकसभा उपचुनाव के बाद एनडीए को डबल झटका लगा है।राजद ने जदयू को एक बड़े अंतर से पटखनी देते हुए जदयू से सीट छीन ली है।

      जदयू के हाथ से सिर्फ  जोकीहाट सीट ही नहीं निकली है बल्कि मुसलमानों में सीएम के प्रति जो विश्वास और भरोसा था वह भी हाथ से निकलता जा रहा है। भले ही यह एक मात्र उपचुनाव है लेकिन इसके परिणाम के कई सियासी मायने है।

      पिछले लोकसभा उपचुनाव में पहली बार बिना राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के चुनाव मैदान में उतरी राजद ने उनके पुत्र तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जीत भी हासिल की और देश के एक कद्दावर नेता सीएम नीतीश कुमार की मि. क्लीन की छवि का भी बखूबी सामना किया। अररिया विधानसभा उपचुनाव के बाद राजद की जीत एक बड़ी जीत मानी जाएगी ।

      एक तरफ 40 साल से देश की राजनीति में सक्रिय, कई बार केंद्रीय मंत्री और पिछले 13 साल से सीएम नीतीश कुमार के सामने महज पाँच साल पहले राजनीति में आए तेजस्वी यादव महागठबंधन टूटने के बाद से ही उन पर हमलावर है।

      प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव ने इस उपचुनाव के बाद साबित कर दिया है कि राजनीति में उनका कद बौना नहीं है। इस जीत ने श्री यादव को सीएम नीतीश कुमार के समकक्ष ला खड़ा कर दिया है। इस जीत से उनका कद निश्चित तौर पर और बढ़ा है।

      जोकीहाट एक मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र है, जहाँ आज भी मुसलमानों की हमदर्दी राजद से जुड़ी हुई है, ऐसा भी नहीं है। मुसलमान मतदाताओं में  नीतीश कुमार को लेकर कोई नाराजगी नही रही है।

      लेकिन महागठबंधन तोड़कर एनडीए से हाथ मिलाने के बाद मुस्लिम मतदाताओं में इसको लेकर नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी तो देखी जा रही है।

      अररिया के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में राजद के प्रत्याशी शहनवाज आलम ने जदयू के मुर्शीद आलम को लगभग 43 हजार मतों से हराकर जदयू से यह सीट छीन ली है।

      इससे पहले इसी सीट पर इनके भाई सरफराज आलम जदयू से विधायक थे। लेकिन अपने पिता के निधन के बाद जदयू से इस्तीफा देकर राजद की टिकट पर अररिया लोकसभा उपचुनाव लड़ा और जीत भी गए। तब से यह सीट खाली थी।

      इस जीत के बाद लोकसभा और विधानसभा की सीट एक ही परिवार के बीच रह गई है। जोकीहाट उपचुनाव में जीत के बाद राजद खेमे में होली जैसा दृश्य दिख रहा है । इस जीत से स्वयं प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव काफी गद गद होंगे।

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      राजद के विजयी प्रत्याशी शहनवाज आलम

      विजयी उम्मीदवार शहनवाज आलम ने इसे तेजस्वी यादव की जीत और सीएम नीतीश कुमार के अहंकार की हार बताया। वही वरिष्ठ राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि जोकीहाट की जीत तेजस्वी को स्थापित करने वाला है। एनडीए को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है।

      वही पूर्व सीएम जीतनराम मांझी और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने तेजस्वी को बधाई देते हुए कहा कि यह महागठबंधन की जीत है।आने वाले समय में इस परिणाम के कई मायने होंगे।

      जोकीहाट मुस्लिम बहुल इलाका है और निश्चित तौर से इस सीट पर राजद की बड़ी जीत और मुस्लिमों में इसका एक संदेश जाएगा। यह स्थिति आगामी चुनावों में नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। वहीं दूसरी तरफ सीएम जनता के मनोविज्ञान को समझने में पूरी तरह फेल हो गए।

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