संदर्भ सु’शांतः ऐसी आत्महत्या को स्वीकार नहीं कर रहा अनुभव !

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आत्महत्या। मैंने बतौर अभिनेत्री विद्या वालन की हिन्दी फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ कुछ दिन पूर्व पूर्ण कोरोना लॉकडाउन के दौरान देखी…

इसमें उनका यह संवाद कि “जिन्दगी जब मायूस होती है, तभी मह्सूस होती है, ऐसे ऐसे सवाल सामने आ जाते है, जिनका जबाव किताब के किसी पन्ने मे नही होती, जैसे दरवाजा खोलते ही माँ ने गले से क्यो नही लगा लिया”।

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आलेखकः श्री मानवेन्द्र मिश्र, नालंदा जिला किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी सह अपर सत्र न्यायधीश हैं….

और वह अन्त में कहती है कि “जब हमेशा ताली सुनने वाले कानों में गाली की आवाज भी सुनने को नहीं मिले तो ये सन्नाटा इंसान को खत्म कर देती है”।

वेशक, रंग मंच की दुनिया की यह हकीकत को बताती चंद पंक्ति थी, लेकिन बात अगर कुछ वर्ष पूर्व विदर्भ के किसानों की आत्महत्या, कालाहांडी क्षेत्रों मे हुई आत्महत्या की है तो उन घटना  के अधयन करेंगे तो पायेंगे कि वहाँ परिस्थिति दुसरी थी।

महाजन के कर्ज के बोझ तले दबे किसानों के उपर हर बार फ़सलों के नुकसान, वहाँ के किसानों को मौत से कई गुना कठिन जिन्दगी जीना लग रहा था। उन्हें आगे भी आशा की कोई किरण नही दिख रही थी।

इसी तरह जब परीक्षा परिणाम इस देश मे आते है तो अपने तथा अपने अभिभावक के उम्मीदों के अनुरुप परिणाम नही आने पर अपने जिन्दगी के सफर को अन्त करना ही अपनी सफलता मानते है।Sushant Singh Rajput 1 1

व्यापार में हानि,प्यार मे असफलता, किसी घटना के लिये स्वंय को जिम्मेदार मानते हुये आत्मग्लानी के वजह से अथवा पारिवारिक क्लेश मे भी लोग ऐसा कदम उठा लेते है,

किन्तु वर्तमान घटना को बाह्य दृष्टिकोण देखने से यह लगता है कि एक उभरता हुआ अभिनेता जिसकी एक फिल्म ने 100 करोड़ की कमाई भी की थी। जिसने अपने छात्र जीवन में भी मेधावी कुशाग्र ज्ञान को साबित किया हो, जिसने छोटे पर्दे पर भी अपने संघर्षो की कहानी एक सफल मानव के रुप मे लिखी हो, एक ऐसा युवा जिसे नाम शोहरत विरासत में नही मिली थी।

बिहार की मिट्टी ने उसे अपनी पहचान साबित करने कि क्षमता दी थी, आखिर वो कौन सी समस्या थी, जिसका समाधान आत्महत्या था, थोड़ा विचार करना होगा। इस बिन्दु पर। क्योंकि सुशांत संघर्षो से अपनी मुकाम हासिल किया था, ऐसे व्यक्ति अपना अस्तित्व खुद नष्ट कर ले, मेरा अनुभव इसे स्वीकार नहीं करता।

SUSHANT RAJPOOT 2 1ये आत्महत्या भले दिख रही हो, मगर इसके अन्दर कुछ रहस्य दबे रह गये। क्योंकि अब सच्चाई सामने नहीं आ सकती। अब जो भी आयेगी टीआरपी युक्त कहानी, खैर इस बिन्दु को यही छोरते हुये हमे यह सोचना होगा                       

क्या हमारे साथ होने वाली बुरी से बुरी चीज़ और गहरी हताशा भी हमारे अस्तित्व पर होने वाला ऐसा प्रहार है, जिसे हमारा हृदय बदलकर उसका रूपांतरण कर देने की क्षमता रखता है।

जब चीज़ें सच में ही कठिन और लगभग असह्य हो जाये तो क्या आत्महत्या उसका विकल्प कभी भी हो सकता है आप कितनी बार भी मुझसे पूछियेगा मैं कहूंगा नहीं।

मैने ऐसे ऐसे बाल अपराधी में नई जिन्दगी को संचार करते हुये खुद को पाया, जो अनेक बार अपने हाथ का नश काट कर जीवन नष्ट करने की असफल प्रयास कर चुके थे।

जीवन की सबसे निराली बात यही तो है कि यहां हर कठिनाई अपने भीतर एक नया अनुक्रम और एक नई व्यवस्था खोज निकालने का मौक़ा है। जीवन-ऊर्जा की सबसे बड़ी बात यही है कि वह बुराई में भी ना केवल अच्छाई खोज लेती है, बल्कि उसे अच्छा बना भी देती है। अगर हम मनुष्यों को यह उपाय नहीं मालूम होता तो हम बुराई से बच नहीं सकते थे।

 हमें अपने आसपास ऐसे लोगो के साथ सहानुभूति सम्वेदना अत्यधिक रखनी होगी। क्योंकि किसी एक लम्हें में हममें से कोई भी बुरा हो सकता है। किंतु असल बात यह है कि वहां रुकना नहीं है, उसे जीकर उससे गुज़र जाना है।SUSHANT RAJPOOT 2

किसी भी मनुष्य को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बुरा है, बुराई से ज़रा-सा आगे बढ़ने भर से वह बुरा नहीं रह जाता। बुराई से ज़्यादा अस्थिर और क्षणभंगुर कुछ भी नहीं।

मैनें अभी तक नकारत्मक समाचार पर कोई पोस्ट नहीं लिखा था, किन्तु मुझे लगा वर्तमान परिदृश्य मे यह प्रसंग समीचीन है। क्योंकि अभी इस वैश्विक महामारी के वजह से बहुत से लोगो का रोजगार चला गया है, बहुत से व्यापारी लोगों का कारोबार बंद हो गया है, श्रमिक, मजदूर सब की स्थिति अभी दयनीय है।

सो ऐसी अन्य घटनायें अपने आस पास घटित न हो, हम सबकी सामुहिक जिम्मेदारी है कि हम सब एक दुसरे का मनोबल बनाये रखें। ये दौर मुश्किल जरुर है। मगर बीत जायेगा।