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पुलिस थाना में CO-CI पर FIR, रांची DC के गृह विभाग को पत्र पर उठे सवाल

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। रांची जिले में भूमि घोटालों और राजस्व विभाग की अनियमितताओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामला चुटिया थाने में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें अरगोड़ा के तीन पूर्व सर्किल ऑफिसर (सीओ), दो सर्किल इंस्पेक्टर (सीआई) और राजस्व कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। लेकिन इस एफआईआर ने न केवल आरोपियों को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि रांची के डिप्टी कमिश्नर (डीसी) मंजूनाथ भजंत्री के एक पत्र ने पूरे मामले को एक नई बहस का रूप दे दिया है।

डीसी ने गृह विभाग को लिखे पत्र में एफआईआर की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे राजस्व अधिकारी और कर्मचारी सहमे हुए हैं। क्या राजस्व मामलों में अपराधिक कृत्य होने पर पुलिस में शिकायत दर्ज कराना गलत है? और अगर ऐसा है, तो डीसी खुद क्यों नहीं हस्तक्षेप कर रहे? ये सवाल अब राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में गूंज रहे हैं।

25 जुलाई को चुटिया थाने में एक विवादित जमीन के फर्जीवाड़े से जुड़ी एफआईआर दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अरगोड़ा क्षेत्र में राजस्व अधिकारियों ने मिलीभगत से जमीन के दस्तावेजों में हेरफेर किया, जिससे बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ। एफआईआर में नामजद आरोपियों में – पूर्व सीओ रवींद्र कुमार, अरविंद कुमार ओझा और सुमन कुमार सौरभ, सीआई कमलकांत वर्मा और अनिल कुमार गुप्ता, राजस्व कर्मचारी सुनील मिंज और मनोरथ भगत शामिल हैं।

ये सभी आरोपी कथित तौर पर जमीन के फर्जी दस्तावेज तैयार करने, अवैध हस्तांतरण और अन्य अनियमितताओं में शामिल बताए जा रहे हैं। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, जिसमें धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश जैसी धाराएं शामिल हैं।

इसी मामले को लेकर रांची डीसी मंजूनाथ भजंत्री ने इस एफआईआर के बाद गृह विभाग को एक पत्र लिखा, जो अब सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों और कानूनविदों तक चर्चा का विषय बन चुका है। पत्र में डीसी ने कहा है कि राजस्व से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी चाहिए थी।

उन्होंने जोर देकर लिखा कि ऐसी कार्रवाइयों से जिले के सभी राजस्व अधिकारी और कर्मचारी भयभीत हैं, जिससे विभागीय कामकाज प्रभावित हो रहा है। डीसी ने यह भी उल्लेख किया कि राजस्व आदेशों के खिलाफ अपील का प्रावधान है, लेकिन शिकायतकर्ता ने अपील दर्ज करने के बजाय सीधे पुलिस में एफआईआर करा दी।

यह पत्र क्यों विवादास्पद है? विशेषज्ञों का कहना है कि डीसी खुद जिला दंडाधिकारी (डीएम) हैं, जिनके पास पुलिस और प्रशासन पर सीधा नियंत्रण है। अगर एफआईआर गलत या नियम-विरुद्ध थी तो वे खुद चुटिया थाने को निर्देश देकर इसे रद्द या संशोधित करवा सकते थे। फिर गृह विभाग को पत्र लिखने की क्या जरूरत पड़ी? कुछ लोग इसे ‘ऊपरी दबाव’ या ‘विभागीय एकजुटता’ का उदाहरण मान रहे हैं, जहां अधिकारी अपने साथियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, विपक्षी पार्टियां इसे ‘भ्रष्टाचार को संरक्षण’ का मामला बता रही हैं।

यह पहला मौका नहीं है, जब रांची के राजस्व विभाग में अनियमितताएं सुर्खियां बनी हैं। जिले के अधिकांश अंचल कार्यालयों में व्यापक गड़बड़ियां चल रही हैं, जहां राजस्व कर्मचारियों से लेकर सीओ तक की मिलीभगत बिना कोई बड़ा खेल संभव नहीं। पूर्व रांची डीसी छवि रंजन का मामला तो सबके जेहन में ताजा है। वे भूमि घोटाले में शामिल होने के आरोप में फिलहाल जेल में सजा काट रहे हैं। जांच एजेंसियों ने पाया कि उनके कार्यकाल में करोड़ों रुपये की सरकारी जमीनें फर्जी दस्तावेजों से निजी हाथों में चली गईं।

ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि क्या राजस्व मामलों को सिर्फ अपील तक सीमित रखना चाहिए, या अपराधिक तत्व होने पर पुलिस कार्रवाई जरूरी है? कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्व अधिनियम में अपील का प्रावधान प्रशासनिक गलतियों के लिए है, लेकिन अगर जालसाजी या धोखाधड़ी जैसे अपराध साबित होते हैं तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।

एक वरिष्ठ वकील ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि डीसी का पत्र दिखाता है कि सिस्टम में सुधार की बजाय अधिकारी एक-दूसरे को बचाने में लगे हैं। यह आम आदमी के लिए न्याय की राह में बाधा है।

अब देखना है कि डीसी के पत्र के बाद गृह विभाग क्या कार्रवाई करेगा। अगर विभाग एफआईआर को वैध मानता है तो आरोपियों पर मुकदमा चलेगा। वहीं अगर डीसी की बात मानी गई तो यह राजस्व विभाग में अनियमितताओं पर लगाम लगाने के प्रयासों को झटका दे सकता है।

ऐसे मामलों से जमीन मालिकों का विश्वास टूट रहा है। एक प्रभावित किसान ने बताया कि हमारी जमीनें फर्जी दस्तावेजों से छिन रही हैं और अधिकारी आपस में ही बहस कर रहे हैं। न्याय कब मिलेगा?

बहरहाल यह मामला न केवल रांची, बल्कि पूरे झारखंड में राजस्व सुधारों की जरूरत को उजागर करता है। क्या सरकार इस बहस को अवसर बनाकर सख्त कदम उठाएगी, या यह भी फाइलों में दब जाएगा?

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