“प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास सफाई की उतम व्यवस्था नहीं रहने के कारण सैलानियों के उपहास का शिकार होता है। विश्व बैंक की टीम को यह जानकर बहुत निराशा हुई कि दुनिया में विशेष पहचान रखने वाला नालंदा में विकास के लिए अबतक कुछ नहीं किया गया है।”
नालंदा (राम विलास)। विश्व विश्रुत (विख्यात) नालंदा में सैलानियों को वैश्विक सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात तो दूर सामान्य सुविधाएं भी मयस्कर नहीं हो रही है। दुनिया में जितनी उचीं इसकी पहचान है, उससे अधिक उपेक्षा हो रही है।
यह विकास से कोसों दूर है। आजादी के सात दशक बाद भी नालंदा में पर्यटकीय सुविधाएं वहाल करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से कुछ भी पहल नहीं किया गया है। यदि किया गया होगा तो धरातल पर दीख नहीं रहा है।
एशिया समेत पुरी दुनिया के सैलानी भ्रमण के लिए नालंदा आते हैं। लेकिन यहां विश्राम के लिए एक होटल-मोटल, सार्वजनिक शौचालय तक नही है। यहां बड़ा पार्क की बात तो दूर छोटा पार्क तक नसीब नहीं है।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास सफाई की उतम व्यवस्था नहीं रहने के कारण सैलानियों के उपहास का शिकार होता है। नालंदा में देखने या भ्रमण के लिए केवल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय, पुरातत्व संग्रहालय और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल है।
सरकार की इतनी उपेक्षा के बाबजूद यूनेस्को ने नालंदा विश्वविद्यालय के इस भग्नावशेष को विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।
विश्व बैंक की तीन सदस्यीय दल ने नालंदा में विकास की संभावनाओं को लेकर अध्ययन व सर्वेक्षण किया। भ्रमण के दौरान विश्व बैंक की टीम को यह जानकर बहुत निराशा हुई कि दुनिया में विशेष पहचान रखने वाला नालंदा में विकास के लिए अबतक कुछ नहीं किया गया है।
मालूम हो कि विश्व बैंक बौद्ध सर्किट में समेकित पर्यटेन विकास के लिए केन्द्र सरकार को वित संपोषित करता है।
जेनीसीस के निदेषक और विश्व बैंक के कंसल्टेंसी अर्थशास्त्री रवि बंकर ने कहा कि नालंदा पर्यटन विकास की असीम संभावनाओं से भरा है।
उनका मानना है कि होटल-मोटल और सार्वजनिक शौचालय तो जरुरी है ही, इसके अलावे अंतर्राष्टरीय प्रस्तुतीकरण / व्याख्यान केन्द्र, इंटरनेषनल इंटरप्रटेशन सेन्टर की भी आवश्यक है।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार के पुर्न संरचना की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि धरोहर के आसपास के फुटपाथ दुकानदारों के लिए अलग से सुव्यवस्थित वेंडर जोन का निर्माण होना चाहिए।
नालंदा परंपरा को पुर्नजीवित करने की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चीन ने नालंदा विश्वविद्यालय बना लिया है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय ‘नालंदा परंपरा विभाग‘ खोलकर पढ़ाई कर रहा है।
उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि जिस नालंदा परंपरा को षिकागो में पढ़ाया जा रहा है। वह अपनी धरती पर ही उपेक्षित है। नालंदा में कम से कम एक-दो दिन भ्रमण की व्यवस्था होनी चाहिए।
उनके अनुसार वर्तमान में नालंदा भ्रमण के लिए 40 मिनट काफी है। विश्व बैक की टीम ने ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल का भी दीदार किया।
नव नालंदा महाविहार डीम्ड विवि के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डा. श्रीकांत सिंह ने चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल के बारे में विस्तार से बताया। यह जानकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई।