“पीड़ित पिता ने नालंदा एसपी कुमार आशीष के समक्ष गुहार लगाई। एसपी ने मामले की गंभीरता परखते हुये बिहार थाना को तत्काल मामला दर्ज करने के निर्देश दिये। उसके बाद बिहार थाना में शिकायत आवेदन तो ले लिया गया लेकिन, उसे कोई पावती पत्र या एफआईआर दर्ज कर उसकी कॉपी नहीं दी।”
न्यूज डेस्क/ इस्लामपुर। नालंदा जिले के एसपी कुमार आशीष की मंशा पर कोई सबाल नहीं उठाया जा सकता। निःसंदेह उनकी गतिविधियां अपराध मुक्त और आम जन से जुड़ने की दिशा में अब तक की गई पहल काबिले तारीफ रही है।
लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि उनके हर प्रयासों को पलीता लगाने में मातहत थाना प्रभारी या थाना में बैठे अन्य जिम्मेवार लोग अपनी माहिरता नहीं छोड़ रहे हैं।
ताजा उदाहरण जिले के इस्लामपुर और बिहार थाना से जुड़ी है। इस्लामपुर थाना के सुहावनपुर सुढ़ी गांव निवासी इंद्रदेव प्रसाद का 14 वर्षीय पुत्र नीतिश कुमार पिछले 25 जून यानि एक माह से गायब है। वह अपनी बहन प्रीति कुमारी के साथ बिहार शरीफ नगर में किराये की मकान में रह कर कॉलेजिएट हाई स्कूल में 9 वर्ग में पढ़ाई कर रहा था।
अचानक एक दिन नीतिश अपनी बहन से घर जाकर दो-तीन दिन में बाहर आ जायेगा। लेकिन जब वह घर नहीं पहुंचा तो उसके परिजन इधर-उधर नाते रिश्तेदारों के यहां हरसंभव खोजबीन की। मगर लापता नीतिश को कोई पता नहीं चला।
इसके बाद वह मामले की शिकायत को लेकर वह इस्लामपुर थाना गया। वहां के थाना प्रभारी ने बिहार शरीफ के बिहार थाना क्षेत्र का मामला बताया। पीड़ित पिता जब अपनी पीड़ा लेकर बिहार थाना पहुंचा तो वहां बैठे हाकिमों ने इस उपदेश के साथ डांट कर भगा दिया कि जिस थाना क्षेत्र में गांव पड़ता है, वहां जाओ।
इसके बाद पीड़ित पिता ने नालंदा एसपी कुमार आशीष के समक्ष गुहार लगाई। एसपी ने मामले की गंभीरता परखते हुये बिहार थाना को तत्काल मामला दर्ज करने के निर्देश दिये। उसके बाद बिहार थाना में शिकायत आवेदन तो ले लिया गया लेकिन, उसे कोई पावती पत्र या एफआईआर दर्ज कर उसकी कॉपी नहीं दी।
इस बाबत जब नालंदा के एसपी से बात की तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि थाना प्रभारी थाना में नहीं होगें। शिकायतकर्ता को इंतजार करने को कहा गया होगा। एफआईआर दर्ज होने बाद उसकी एक प्रति आवेदक को निःशुल्क देना ही है।
एसपी से बात होने के बाद जब आवेदक बात की गई तो उसने बताया कि उसने अपना आवेदन थाना प्रभारी को ही दिया था। जिसने डपटते हुये कहा कि मुंशी को देकर यहां से जाओ। रिसिविंग मांगने पर भी नहीं दिया गया।
बहरहाल यह ताजा मामला तो उदाहरण मात्र हैं। जिले में प्रायः हर थाना स्तर पर यही नजारा कायम है। इससे निपटे बिना आम जन के मन में पुलिस का विश्वास बढ़ाना बहुत मुश्किल है।