देखिए वीडियोः अब एक महादलित महिला सिपाही ने क्या लगाया है आरोप….
प्रारक्ष डीएसपी ने महिला सिपाही से कहा- “बचना है तो तुम मेरी बिस्तर गर्म करो”सीएम नीतीश के गृह जिले के इस प्रारक्ष डीएसपी अजीत लाल का वाकई कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता ?
“नालंदा जिला पुलिस के जिम्मेवार अफसर यह भूल गए हैं कि गंदगी को जितना ढका जाता है, उसकी सड़ांध उतना ही कुप्रभाव डालती है…”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। पिछले कई दिनों से बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा की मीडिया में एक महादलित पुलिस कांस्टेबल के विभागीय आरोप सुर्खियां बना हुआ है और समूचा महकमा उस आरोप पर जांच कार्रवाई करने के बजाय उसे दबाने पर तुली हुई है।
इस मामले में नालंदा एसपी सुधीर कुमार पोरिका की भी भूमिका काफी संदिग्ध है। ऐसी कल्पना एक आईपीएस के नेतृत्व में कदापि नहीं की जा सकती, जैसा कि स्पष्ट तौर पर कुखेल हो रहा है।
बिहार शरीफ पुलिस लाइन में कार्यरत महिला सिपाही-1635 नीरा कुमारी का सीधा आरोप है कि डीएसपी प्रारक्ष अजीत लाल ने उसे इसलिए सस्पेंड कर दिया कि वे कमरे में ‘खुश’ करने की मांग को अस्वीकार कर दिया। जबकि वह एसपी की अनुमति के बाद छुट्टी पर गई थी।
यही नहीं, जहां एसपी ने शिकायत के बावजूद डीएसपी प्रारक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टे उसके पति तक पर फर्जी एफआईआर दर्ज कर दिया।
उधर पीड़ित महिला सिपाही जब एसटीएससी थाना में शिकायत दर्ज कराने पहुंची तो वहां के थानाध्यक्ष ने यह कहकर लौटा दिया कि एसपी साहब बोलेगें तो ही शिकायत की कॉपी लेंगे। एसपी ने शिकायत लेने से मना किया है।
इस संबंध में एसटीएसी थानाध्यक्ष आलोक रंजन का कहना है कि यह विभागीय मामला है। बिना वरीय पदाधिकारी के आदेश के हम शिकायत नहीं ले सकते। पीड़िता को कहा गया था कि वरीय पदाधिकारी से आदेश लेकर आइए। उनसे लिखवा कर लाइए।
जब थानाध्यक्ष से पूछा गया कि क्या पुलिस विभाग में इस तरह के प्रावधान है? खासकर ऐसा कोई नियम है कि किसी महिला वह भी महादलित की शिकायत बिना वरीय पदाधिकारी के आदेश के दर्ज नहीं हो सकते? तो इस पर थानाध्यक्ष का कहना था कि वे कुछ नहीं जानते। जो भी जानना है वरीय पुलिस पदाधिकारी से जानिए।
बहरहाल इस मामले में बहुत पेंच है। पुलिस विभाग के भीतर एक महादलित समाज की नारी के साथ जो कुछ भी हो रहा है, वह काफी शर्मनाक है।
यदि डीएसपी अजीत लाल जैसा पुलिस प्रारक्ष यह दंभ भरता है कि वह जो चाहे कर सकता है और उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो उसमें कहीं न कहीं जिम्मेवार विभागीय आला लोगों का ही खुला हाथ प्रतीत हो रहा है।
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