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    Saturday, November 23, 2024
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      नालंदा के स्कूल में मध्यान भोजन के दौरान मिला उबला मेढक, छात्रों ने किया हंगामा

      nalanda schoolनालंदा/चंडी (संवाददाता)। चंडी प्रखंड में  छात्रों के सेहत और जिंदगी से हो रहा है खिलवाड़। कभी भी चंडी बन सकता है सारण का दूसरा गंडावन। पहले मध्य विद्यालय बढौना में छिपकली मिलने की घटना का ज्यादा समय भी नही हुआ था कि बुधवार को चंडी प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय जलालपुर में मीड डे मील में मेढक मिलने से छात्रों और शिक्षकों में अफरा तफरी मच गई। हालांकि आधा से ज्यादा बच्चे भोजन कर चुके थे लेकिन गनीमत रही कि कोई बड़ा हादसा नही हुआnalanda education cruption

      बताया जाता है कि रामघाट स्थित एकता फाउंडेशन नामक संस्था छात्रों को भोजन मुहैया कराती है। बुधवार को स्कूल में दो केन खिचड़ी आया था। एक केन खिचड़ी छात्रों के बीच में वितरित कर दी गई थी।जबकि दूसरे केन की आधा खिचड़ी बची हुई थी तभी स्कूल की रसोईया फूलकुमारी देवी की नजर मरे हुए मेढक पर पड़ी ।

      उसने आनन -फानन में अन्य बच्चों को भोजन करने से मना की। खिचड़ी में मेढक मिलने की घटना से छात्रों और शिक्षकों में अफरा तफरी मच गई। खबर सुनकर कुछ अभिभावक भी स्कूल आ धमके और हंगामा करने लगे। रसोईया फूलकुमारी ने बताया की उसने भोजन को पहले चखा भी था।

      इधर स्कूल के छात्रों आरती कुमारी, सुशीला, रवि कुमार तथा ज्योति कुमारी ने बताया कि भोजन काफी घटिया होता है। चावल भी काफी सड़ा हुआ रहता है।भोजन में कही से कोई गुणवत्ता रहती ही नहीं है। स्कूल के भोजन में मेढक मिलने के बाद से अभिभावक अपने बच्चों के सेहत और जिंदगी को लेकर चिंता में हैं।

      गौरतलब रहे कि दो माह पूर्व भी बढौना मध्य विद्यालय में भी मीड डे मील में मरी हुई छिपकली मिली थी।nalanda education cruption1

      यह विडंबना है कि जिस मिड डे मिल योजना का लक्ष्य स्कूली बच्चों को उचित पोषण देकर उनमें शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा करना है, वह अब उनकी सेहत और जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। शायद ही कोई सप्ताह गुजरता हो जब मिड डे मील में कीड़े मिलने की खबर अखबारों की सुर्खियां न बनती हों। लेकिन आश्चर्य है कि इसके बावजूद भी मिड डे मिल की स्वच्छता और गुणवत्ता को लेकर सतर्कता नहीं बरती जा रही है।

      योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण बच्चों को मानक के हिसाब से भोजन नहीं मिल रहा है। वजह साफ है, मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने वाली संस्थाएं, प्रशासन और स्कूल प्रबंधन सभी की मिलीभगत है और सभी पैसों की बंदरबांट कर रहे हैं।

      लेकिन सच्चाई यह भी है कि यह योजना भ्रष्टाचार  में तब्दील होता जा रहा है और उसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। मिड डे मील उनकी सेहत और जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। उचित होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें मध्यांह भोजन योजना की निगरानी के लिए कारगर तंत्र की स्थापना करें और सुनिश्चित करें कि तय मानकों के हिसाब से बच्चों को गुणवत्ता परक भोजन प्राप्त हो। स्कूल प्रबंधन और भोजन उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं को भी समझना होगा कि बच्चे राष्ट्र की पूंजी हैं और उनकी जिंदगी से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।

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