“बिहार में सरकारी व्यवस्था की संवेदनाएं मर चुकी है। नीतीश सरकार में तो हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ का चहुंओर मंजर है। पटना पीएससीएच में महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद जो आलम दिखा है, अत्यंत शर्मनाक है……………..”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। खबर है कि महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें गुरुवार को पीएमसीएच लाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।
इसके बाद इस विभूति के पार्थिव शरीर को अस्पताल परिसर में बाहर ब्लड बैंक के पास रखवा दिया गया। वहां शोकाकुल स्वजनों की मदद को ले पीएमसीएच प्रशासन लापरवाह बना रहा।
अस्पताल प्रबंधन ने शव ले जाने के लिए एंबुलेंस या शव वाहन तक मुहैया नहीं कराया। पार्थिव शरीर उनके पैतृक आवास पहुंचाने के लिए अस्पताल में मौजूद दलाल छह हजार रुपये की मांग कर रहे थे।
वशिष्ठ बाबू का शव घंटों वहीं पड़ा रहा। उनके निधन की खबर मिलते ही मीडिया पहुंची। मीडिया के माध्यम से जब अस्पताल प्रबंधन की संवेदनहीनता उजागर की गई तो उसके साथ जिला प्रशासन भी हरकत में आया। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप पर स्वजनों को एंबुलेंस मुहैया कराई गई।
पीएमसीएच प्रशासन ने पहले तो कहा कि वशिष्ठ नारायण सिंह को मृत अवस्था में अस्पताल लाया गया था। लेकिन, जब उनके परिजनों ने अस्पताल द्वारा जारी मृत्यु प्रमाणपत्र दिखाया तो अस्पताल प्रशासन ने चुप्पी साध ली।
बता दें कि तकरीबन 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे थे। मौत से कुछ दिनों पहले तक भी किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त रहीं।
कहा जाता है कि अमरीका से वह अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वह पढ़ते रहते थे। बाकी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती थी।