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बिहार चुनावः NDA की ‘मांझी’ मैजिक या मज़ाक? जानम समझा करो

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क/मुकेश भारतीय। बिहार की सियासी नदी में इस बार फिर से जीतन राम मांझी की लहरें हिलोरें मार रही हैं। उनकी पार्टी ‘हम’ (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने छह सीटों का भारी-भरकम तोहफा दिया है और मांझी जी ने इस तोहफे को अपने परिवार के आंगन में ही सजा लिया। सूबे में चर्चा है कि खुद को पीएम मोदी का भक्त कहते नहीं अघाने वाले मांझी इस बार अपने सियासी ड्रामे में नया तड़का लगाने को तैयार हैं। लेकिन यह तड़का इतना तीखा है कि NDA की नाव डगमगाने लगे तो आश्चर्य नहीं।

जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी के छह उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है और इस लिस्ट को देखकर लगता है, जैसे उन्होंने अपने घर की रजिस्ट्री ही चुनाव आयोग को सौंप दी हो। इस सूची में उनके बेटे, बेटी, बहू, समधन और भतीजे तक शामिल हैं। अब इसे क्या कहें? लोकतंत्र की मधुर तान या सियासी ससुराल का राग?

खुद केन्द्र की मोदी सरकार में मंत्री बने मांझी ने बराचट्टी से उनकी समधन ज्योति देवी को टिकट है। इमामगंज से बहू दीपा मांझी जो उनके बेटे और बिहार सरकार में मंत्री संतोष सुमन की पत्नी हैं। संतोष सुमन भी चुनाव लड़ रहे हैं। टिकारी से अनिल कुमार और  अतरी से उनके भतीजे रोमित कुमार को जंग में उतारा है। वहीं प्रफुल्ल मांझी को सिकंदरा का सिकंदर बनाने चले हे।

अब सवाल यह है कि क्या मांझी जी ने बिहार की जनता को टिकट बांटने से पहले अपने परिवार का रजिस्टर खोल लिया था? या फिर NDA ने मांझी को इतना प्यार दिया कि उन्होंने सोचा कि चलो सारी सीटें घर में ही रख लें, बाहर देने से क्या फायदा?

हालांकि बिहार की सियासत में मांझी का यह ‘परिवारवाद’ कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब बात विरोधी दलों की आती है तो NDA की चाय उबलने लगती है। ‘शकुनी के सम्राट’ और ‘चिराग के जीजा’ जैसे तंज तो खूब कसे जाते हैं, लेकिन जब मांझी जी अपने परिवार को टिकटों का हार पहनाते हैं तो NDA की सियासी चुप्पी देखते ही बनती है।

शायद भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) को लगता है कि मांझी की नाव में सवार होकर ही बिहार की सियासी धारा पार की जा सकती है। मगर सवाल यह है कि यह नाव कितनी मजबूत है? कहीं ऐसा न हो कि मांझी जी के परिवार का वजन ही नाव को डुबो दे!

मांझी जी खुद को पीएम मोदी का भक्त कहते हैं और शायद यही वजह है कि NDA ने उन्हें छह सीटों का भारी-भरकम हिस्सा दे दिया। लेकिन क्या यह भक्ति बिहार की जनता के लिए है या फिर अपने परिवार के लिए? यह सवाल बिहार की गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक गूंज रहा है। ट्विटर पर एक यूजर ने लिखा है कि मांझी जी की पार्टी का नाम ‘हम’ है और इसका मतलब ‘हमारा परिवार’ है!

विपक्षी दल इस मौके को हाथ से जाने नहीं दे रहे। परिवारवाद के आरोपों की दंश झेल रहे राष्ट्रीय जनता दल RJD और कांग्रेस जैसे दल मांझी के इस ‘परिवारवाद’ पर तंज कस रहे हैं। एक विपक्षी नेता ने तो यहां तक कह दिया कि NDA की नाव में मांझी जी ने अपने पूरे खानदान को बिठा लिया है। अब जनता देखेगी कि यह नाव डूबती है या पार लगती है।

लेकिन जनता क्या सोच रही है? बिहार की जनता को लगता है कि यह सियासी ड्रामा अब पुराना हो चुका है। एक चायवाले ने तो हंसते हुए कहा कि मांझी जी की पार्टी का नाम ‘हम’ है, लेकिन टिकट ‘हमारा खानदान’ को मिला है।

अब NDA ने मांझी को छह सीटें देकर क्या सियासी मास्टरस्ट्रोक खेला है या फिर यह उनकी मजबूरी है? बात यह नहीं है कि  मांझी की पार्टी कितनी छोटी है और बिहार के दलित वोटरों में उनकी कितनी पकड़ है? वजह है कि BJP और JDU ने मांझी के इस ‘परिवारवाद’ पर आंखें मूंद लीं। लेकिन क्या यह रणनीति काम करेगी? या फिर मांझी का यह सियासी मज़ाक NDA के लिए भारी पड़ जाएगा?

बहरहाल बिहार की सियासत में मांझी का यह ‘परिवारवाद’ एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है। उनकी पार्टी ‘हम’ भले ही छोटी हो, लेकिन उनके सियासी दांव-पेच बड़े हैं। अब देखना यह है कि NDA की नाव मांझी के इस ‘खानदानी’ सहारे से पार लगती है या फिर बिहार की जनता इस मज़ाक को वोट की ताकत से डूबो देती है। फिलहाल तो मांझी जी अपनी समधन, बहू, बेटा और भतीजा के साथ चुनावी मैदान में खिलखिला रहे हैं और बिहार की जनता यह तमाशा बड़े चाव से देख रही है।

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