सरायकेला (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। टुसू परब यानी आदिवासियों की परंपरा…यानि माटी की महक.. यानी झूमर.., मुर्गा पड़ा मेला और पारंपरिक नृत्य संगीत! यही है आदिवासियों की पहचान… और इसी के लिए जाना जाता है आदिवासी समुदाय।
कारण कि इनका हर पर्व प्रकृति से जुड़ा होता है, हर पर्व में मिट्टी की सोंधी- सोंधी महक आती है। लेकिन धीरे धीरे अब इस की महक फीकी पड़ती जा रही है…। धीरे- धीरे परंपराओं का स्थान पाश्चात्य और अश्लीलता लेने लगा है।
जी हां ऐसा ही कुछ नजारा सरायकेला-खरसावां जिला के आदित्यपुर स्थित फुटबॉल मैदान में आयोजित टुसू मेले में देखा गया, जहां जमकर अश्लीलता परोसी गई। वह भी भाजपा के तमाम बड़े कद्दावर नेताओं के मौजूदगी में।
इतना ही नहीं इस मेले में दूरदराज के लोग भी आए थे वो भी परिवार के साथ। हालांकि बाद में अश्लीलता जब परवान चढ़ने लगा तब कुर्मी सेना के अध्यक्ष को बुरा लगा और उन्होंने नृत्यांगना को स्टेज से उतार दिया।
लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि, क्या अब आदिवासियों में भी परंपराओं के नाम पर नंगा नाच का दौर शुरू हो चुका है? क्या परंपराओं की बात करने वाले आदिवासी जनप्रतिनिधि और समाज के गणमान्य अब इसे नैतिक समर्थन देने लगे हैं!
अगर नहीं तो फिर ऐसा क्यों? और अगर हां, तो फिर उस माटी की महक का क्या होगा जिसके कण- कण में यहां की लोक लज्जा आस्था और परंपराएं जुड़ी हुई है।