“वर्तमान परिदृश्य में नवरात्रा पूजन में कुमारी कन्या का पूजन करना एवं भोजन कराना कितना प्रासंगिक रह गया है। क्या इस समाज को केवल नवरात्रि में ही कुमारी कन्या या स्त्री के महत्व का पता चल पाता है………………”
वर्तमान सामाजिक परिस्थिति को देखकर कभी-कभी वो बचपन वो नासमझी का दौर ही ठीक लगता है, जब नवरात्रि दुर्गा मां के पूजन में मेला घूमने महावीरी झंडा देखने का आनन्द आता था।
कहां गया उस कथन की प्रासंगिकता जो यह कहता है कि *यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता*। क्या हो गया इस देश को। जो हर एक अवसरों पर सरस्वती, दुर्गा, लक्ष्मी मां का पूजन करते आ रहे हैं तो इन देवी स्वरूप व बच्चियों के साथ हो रहे यौन शोषण पर समाज मौन क्यों हैं।
बलात्कार…न यह शब्द नया है न यह कृत्य नया है बस हर बार बस पीड़िता नई होती है और पशुता लाँघने वाला मनुष्य नया होता है। हां लेकिन हर बार बलात्कार शब्द लिखते हुए कलम कांप उठती है।
मनुष्य के रूप में पशु बना व्यभिचारी तो हो सकता है कुछ सजा काटने के बाद समाज में कालांतर में स्वीकृत हो जाए, किंतु उस बच्ची स्त्री का क्या? जिसे पूरे जिंदगी इस कलंक के सहारे जीना है। वह भी मात्र इसलिए कि उसे भोग्या मानकर चंद्र दरिंदों ने अपना हवस का शिकार बनाया है।
आज यदि हम बलात्कार के आरोपों का वर्गीकरण करें तो इसमें केवल असामाजिक तत्व ही नहीं है, बल्कि तथाकथित संत मौलवी नेता लगभग सभी वर्गों से लोग हैं। इसलिए यह कह देना की यह अशिक्षित लोगों द्वारा, या अपराधी द्वारा किया जाता है। सही नहीं है।
यह एक सभ्यता मुल्क समस्या है। यह हमारी समाज के कोढ़ ग्रस्त हो जाने जैसा है। अमेरिकी लेखक रोबिन मार्ग ने 1974 में *थ्योरी एंड प्रैक्टिस पोर्नोग्राफी* में लिखा था कि पोर्नोग्राफी सिद्धांत की तरह काम करता है, जिससे व्यवहारिक रूप से बलात्कार के रूप में अंजाम दिया जाता है।
*फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन* ने आपराधिक आंकड़ों के विश्लेषण में पाया कि यौन हिंसा के 80% मामलों में वहां पोर्न की मौजूदगी थी।
यह सही है कि दुनिया की कोई सरकार पोर्न साहित्य और सिनेमा को बैन करने में पूर्णतः आधुनिक युग में सफल नहीं हो सकती। फिर भी एक प्रभावी कारी नियंत्रण स्थापित की जा सकती है।
प्रायः बलात्कार एकान्त में किया जाने वाला अपराध है। इसमें पीड़िता के अलावे अन्य किसी प्रत्यक्षदर्शियों का साक्ष्य मिलना मुश्किल है। अभी हाल के दिनों में नाबालिग के साथ गैंग रेप की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
यह ग्राफ दर्शाता है कि हमारे समाज को अभी सर्जरी की आवश्यकता है। नहीं तो आप पॉक्सो या कोई भी कानून बना लीजिए। इस देश मे निर्भया जैसी घटनायें होती रहेगी।
हमे समाज के अंदर अन्तः करण को शुद्ध करना पड़ेगा। तभी हम सही में पुरुष कहलाने के लायक नही। जिस समाज मे स्त्री सुरक्षित नहीं, उस समाज के पुरुष अपने को मर्द कहने का दम्भ नहीं भर सकते।