“ राज्य में सताधारी एनडीए के दोनों दलों के बीच बढ़ती खटास ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। भले ही आसन्न विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नही है,ऐसे में दोनों सत्ताधारी दलों के बीच ड्रामा की झलक मिल ही जाती है….”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क (जयप्रकाश नवीन)। कहते हैं कि बिहार में जब भी राजनीति की खिचड़ी पकती है तो वह काफी अजीमो शान से पकती है। इन दिनों राज्य की राजनीति में कुछ ऐसी ही खिचड़ी पक रही है। जिसकी खुशबू रह-रहकर राजनीतिक गलियारे में फैल रही है। कुछ इस खिचड़ी का सेवन करना चाहते हैं तो कोई परहेज बरतना चाहते हैं।
पिछले एक माह में बिहार की राजनीति में कई ऐसे प्रकरण (घटनाक्रम) हुए हैं, जिससे लगता है कि एनडीए गठबंधन अब टूटा, तब टूटा।
माना जा रहा है कि सत्ताधारी भाजपा और जदयू दोनों दलों के बीच दरार तब आई, जब मोदी पार्ट टू में सीएम नीतीश की पार्टी को एक मंत्री पद का ऑफर मिला था। जबकि सीएम नीतीश कुमार दो या तीन मंत्री पद की मांग कर रहे थे।
इस घटनाक्रम के बाद सीएम नीतीश ने भी बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार तो किया, लेकिन भाजपा को एक भी मंत्री पद नहीं मिला।तब से भाजपा लगातार हमलावर है।
उसके बाद मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार को लेकर अपनी सरकार की किरकिरी को देखते हुए जदयू के अंदर ही भाजपा कोटे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के इस्तीफे की मांग ने हलचल पैदा कर दी थी। तब राजद नेता शिवानंद तिवारी ने सीएम नीतीश का बचाव करते हुए कहा था कि उन्हें बेवजह टार्गेट किया जा रहा है।
पिछले दिनों भी बिहार की राजनीति में तब हलचल मच गई, जब बीजेपी से जुड़े संगठनों की कुंडली खंगालने संबंधित पत्र जब मीडिया में लीक हो गया। तब यहाँ की राजनीतिक में घमासान मच गया।
तब भी सवाल उठा था कि कभी भाजपा के साथ रहते हुए आरएसएस के नेताओं की जयंती में शामिल होने वाले नीतीश कुमार का आरएसएस के प्रति नजरिया क्यों बदलता जा रहा है?
भले ही इस मामले में सीएम को सफाई देनी पड़ी हो, लेकिन भाजपा ने अपना मोर्चा खोल रखा है। भाजपा के कई नेता डिप्टी सीएम सुशील मोदी से इस्तीफा देने की मांग कर चुके हैं।
हाल के दिनों में जिस तरह से जेडीयू और बीजेपी के नेताओं ने एक-दूसरे के नेताओं पर जुबानी हमले किए हैं, ये भी दोनों ही पार्टियों के बीच चल रही अंदरूनी खींचतान को दर्शाती है।
बीजेपी की ओर से जहां केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और एमएलसी सच्चिदानंद राय जैसे नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा है, वहीं जेडीयू की ओर से पवन वर्मा और संजय सिंह मुहतोड जबाब देने के लिए तैयार खड़े हैं ।
जदयू नेता पवन वर्मा ने भी बीजेपी पर हमला बोलते हुए बीजेपी से आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की चुनौती दे डाली थी।
जदयू लगातार इशारे कर रही है कि बीजेपी से मतभेद वाले मुद्दे यथा: एनआरसी, 35 ए तथा धारा 370 पर सरकार का समर्थन नहीं करेंगी। भले ही दोस्ती रहे या टूट जाए।
रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने दरभंगा दौरे के दौरान राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी से उनके आवास पर आधे घंटे की मुलाकात ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि ये बिहार की राजनीति में सियासी हलचल के संकेत हैं।
हालाँकि जदयू और भाजपा दोनों ने किसी भी उलटफेर से इंकार किया है। वही डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने भी इस मामले पर विराम लगाते हुए कहा है कि भाजपा जदयू दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़ेगें और सीएम का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे।
डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के बयान के बाद शायद दोनों दलों के बीच की सियासी बयानबाजी और अनबन का पटाक्षेप की उम्मीद लगती है।
लेकिन सीएम को बहुत क़रीब से जानने वाले यह भी मानते हैं कि नैतिकता की दुहाई और उसूलों की बात करते-करते फ़ौरन पलट जाने और कुशासन में भी सुशासन का प्रचार करा लेने की कला में निपुण नीतीश कुमार का कोई भरोसा नहीं।
फिलहाल बिहार में भाजपा और जदयू की दोस्ती का मतलब प्यार भी तुम्ही से, इंकार भी तुम्ही से।