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    Wednesday, May 1, 2024
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      झारखंड में अब बिहारियों को आरक्षण नहीं :रांची हाई कोर्ट

      वह व्यक्ति झारखंड में आरक्षण का दावा नहीं कर सकता, जो बिहार और अन्य किसी राज्य में आरक्षण का हकदार है। उसकी जाति झारखंड में आरक्षण के दायरे में अधिसूचित नहीं है। लाभ के लिए जाति प्रमाणपत्र झारखंड को होना चाहिए। यहां जाति प्रमाण पत्र उसका ही बनता है जो स्थानीय है।  पूर्व रघुवर सरकार ने डोमिसाईल का कट ऑफ डेट 1985 बताया है…”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। बिहार के स्थायी निवासियों को झारखंड की सरकारी नौकरी में किसी भी प्रकार के आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। झारखंड हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। हालांकि, एक जज इससे असहमत हैं।

      हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

      सबसे पहले जस्टिस एचसी मिश्र ने आदेश पढ़कर सुनाया। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से ही झारखंड क्षेत्र में रह रहा है, इसलिए उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और प्रार्थियों को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया।ranchi high court

      इसके बाद जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने अपना आदेश पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीर सिंह के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक राज्य का निवासी दूसरे राज्य में आरक्षण का हकदार नहीं होगा। यही आदेश जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति का भी था।

      इसके बाद दोनों जजों ने प्रार्थियों की अपील को खारिज करते हुए सरकार के पक्ष को सही माना। इसके बाद अब बिहार के ओबीसी बी-1, ओबीसी बी-2, एससी-एसटी श्रेणी के किसी भी व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

      अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सहित किसी भी राज्य के व्यक्ति को झारखंड में सरकारी नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

      दरअसल, झारखंड में सिपाही की बहाली हुई थी। इस दौरान बिहार के स्थायी निवासियों ने आरक्षण का लाभ लिया था। बाद में मामला उजागर होने पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2018 में पंकज कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। एकलपीठ ने सरकार के फैसले को खारिज करते हुए उन्हें बहाल करने का निर्देश दिया। इसके बाद सरकार ने खंडपीठ में अपील दाखिल की थी।

      वहीं, रंजीत कुमार सहित सात अभ्यर्थियों ने नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं मिलने पर हाई कोर्ट की शरण ली थी। एकलपीठ ने सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी।

      इन्होंने भी खंडपीठ में अपील दाखिल की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए खंडपीठ ने सभी मामलों को एक साथ टैग करते हुए नौ अगस्त 2018 को तीन जजों की बेंच में भेजने की अनुशंसा की थी। इसके बाद लार्जर बेंच में मामले की सुनवाई हुई।

      एक जज ने कहा- एकीकृत बिहार से ही राज्य में रहने की वजह से मिलेगा लाभ, बिहार के ओबीसी बी-1, ओबीसी बी-2, एससी-एसटी श्रेणी के किसी भी व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं।

      पूर्व में सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कोर्ट को बताया था कि एकीकृत बिहार या 15 नवंबर 2000 से राज्य में रहने के बाद भी वैसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, जिनका ओरिजिन (मूल) झारखंड नहीं होगा।

      आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा, जो झारखंड के ओरिजिन होंगे। जहां तक 18 अप्रैल 2016 से लागू स्थानीय नीति का सवाल है, तो जो लोग इसकी परिधि में आते हैं, उन्हें सिर्फ सामान्य कैटगरी में ही विचार किया जा सकता है।

      सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के बीर सिंह बनाम केंद्र सरकार के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि माइग्रेटेड (बाहरी) राज्य से आने वाले लोगों को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

      एकलपीठ ने पूर्व में प्रार्थियों की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनके सभी सर्टिफिकेट बिहार के हैं, ऐसे में उन्हें राज्य में आरक्षण नहीं मिलेगा।

      प्रार्थी ने कहा था कि एकीकृत बिहार, वर्तमान बिहार व झारखंड में उनकी जाति एससी-एसटी व ओबीसी में शामिल है, इसलिए झारखंड में उन्हें एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में आरक्षण मिलना चाहिए।

      वे कई सालों से झारखंड क्षेत्र में रह रहे हैं और सिर्फ इसलिए उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वे बिहार राज्य के स्थायी निवासी हैं। उनकी ओर से अदालत को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में जो अधिकार मिला हुआ है, उसके अनुसार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।

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