“लावारिस मरीजों को खाना खिलाने का जिम्मा रिम्स किचन पर है। लेकिन किचन की ओर से इन्हें खाना न के बराबर दिया जाता है……”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची अवस्थित प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में लावारिस मरीजों की देखभाल करने वाला नहीं है। उनका इलाज तो दूर, इन्हें भोजन तक नसीब नहीं है। वे पेट की भूख मिटाने को जो मिल जाए, उसे ही निवाला बनाने को विवश हो जाते हैं।
बुधवार को भी रिम्स के ऑथरेपेडिक विभाग के कॉरिडोर में मानवीय संवेदना को तार तार करने वाला नजारा देखने को मिला। कॉरिडोर में पड़ी एक लावारिस महिला मरीज दिनभर वहां से गुजरने वालों से खाना मांगती रही।
लेकिन किसी ने उसके पेट की क्षुधा शांत नहीं की। अंतत: उसने पास बैठे कबूतर को पकड़ लिया। करीब आधा घंटा तक मरीज कबूतर के पंख नोचती रही। इसके बाद उसे नोंच-नोंच कर निवाला बना लिया।
रिम्स के निदेशक डॉ. डीके सिंह कहतें हैं, ‘इसके लिए जिम्मेवार सामाजिक संस्थाएं हैं जो लावारिसों को आश्रम या विक्षिप्त को रिनपास ले जाने की बजाय रिम्स में लाकर छोड़ देते हैं। यहां साइकेटिक विभाग नहीं है। रिम्स प्रबंधन मानवीय संवेदना रखते हुए भी ऐसे मरीजों के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। ऐसे मरीज रिम्स में अव्यवस्था फैलाने का काम करते हैं’।
ऑथरे वार्ड के कॉरिडोर में एक ही जगह पर सभी लावारिस मरीज पड़े रहते हैं। न इनकी कोई देखभाल करने वाला होता है और न ही कभी कोई डॉक्टर, नर्स या रिम्स का अन्य कोई कर्मचारी ही इनकी सुध लेता है।
कॉरिडोर से जाने वाले लोगों से ये खाना और भूख कहकर भोजन मांगते हैं। नहीं मिलने पर बिलखते भी हैं। लेकिन रिम्स प्रबंधन कभी इनकी तरफ ध्यान नहीं देता।