वर्चुअल रैली बनाम स्मार्ट फोनः क्या हेमंत मानेंगे मरांडी का यह प्रस्ताव?

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दरअसल, भाजपा ने कोरोना काल में रैली का नया तरीका अपनाया है। कुछ दिनों बाद में दुमका और बेरमो में उपचुनाव होनेवाले हैं। इसके लिए वर्चुअल रैली ही चुनावी हथियार बननेवाला है…

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क (नारायण विश्वकर्मा)। झारखंड के गांवों के सरकारी स्कूलों में बुनियादी शिक्षा का बुरा हाल है। कई स्कूलों के अपने भवन नहीं हैं, कई जीर्ण-शीर्ण हैं। स्कूलों में संसाधनों की भारी कमी के बीच भाजपा चाहती है कि इस डिजिटल युग में गांवों के बच्चों के पास भी स्मार्ट फोन होना चाहिए। उन्हें निजी स्कूलों के बच्चों की तरह हाईटेक करना जरूरी है।

भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी नहीं चाहते कि संसाधनों की कमी के कारण सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ाई और तकनीक में काफी पीछे छूट जाएं।

उनकी इच्छा है कि निजी स्कूलों के बच्चे जिस तरह से कोरोना काल में भी समय के साथ अपडेट चल रहे हैं, उसी तरह से वे भी डिजिटल युग के साथ चलें।

bjp marandi hemant jmm gov 1इसी ख्याल से मरांडी ने हेमंत सरकार को प्रस्ताव दिया है कि निजी स्कूलों के बच्चों से मुकाबले के लिए गांव के गरीब बच्चों को स्मार्ट फोन मुहैया कराया जाना चाहिए।

इससे गरीब के बच्चे नये डिजिटल माहौल में आगे बढ़ेंगे। वे ये भी चाहते हैं कि यूट्यूब और वीडियो के जरिये से उसी फोन में उपलब्ध हो। इसके लिए डाटा कंपनियों से बात कर जरूरत भर न्यूनतम डाटा भी उपलब्ध कराना चाहिए।  

शायद झारखंड प्रदेश भाजपा को वर्चुअल रैली कस्बों और गांवों में बेअसर होना सुहा नहीं रहा है। दिक्कत ये है कि गांवों में अधिकतर लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है। इसके कारण गांव-ग्रामीण क्षेत्र के युवक या उनके परिवार वर्चुअल रैली का सही ढंग से लाभ उठाने से वंचित हैं। गांवों में अधिक से अधिक स्मार्ट फोन होंगे तो वर्चुअल रैली प्रभावित नहीं होगी।

मरांडी जब विपक्ष में थे तो अक्सर सरकारी स्कूलों के खस्ताहाल भवनों, स्कूलों में पढ़ाई की लचर व्यवस्था, स्कूलों में कम्प्यूटरों का अभाव, स्कूलों में बिजली-पानी की स्थिति और स्कूलों के मर्जर पर रघुवर सरकार को जमकर कोसा करते थे।

स्कूलों के मर्जर के खिलाफ तो भाजपा सांसदों ने पत्र लिखकर केंद्रीय नेतृत्व को इस पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन उनकी मांग अनसुनी कर दी गई।

संभव था कोरोना काल में अगर वर्चुअल रैली नहीं होती तो मरांडी जी हेमंत सरकार को शायद ही ऐसा प्रस्ताव देते, लेकिन समय का तकाजा है।

हालांकि मरांडी के प्रस्ताव का हेमंत सरकार की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। सत्तापक्ष भाजपा की वर्चुअल रैली पर तंज कस रहा है। मरांडी जी का यह प्रस्ताव वर्चुअल रैली से ही जोड़ कर देखा जा रहा है।

अभी कोरोना काल में हेमंत सरकार का राज्यों से लौटकर आये मजदूरों को रोजगार से जोड़ना मुख्य उद्देश्य है। मनरेगा के जरिये लाखों कामगारों को रोजगार से जोड़ने की मुहिम चल रही है।

जब करोड़ों रुपये वर्चुअल रैली पर खर्च किया जा रहा है तो भाजपा अपने स्तर से गांवों के बच्चों को स्मार्ट फोन उपलब्ध भी करा सकती है।

अपनी पुरानी पार्टी में वापसी से पूर्व रघुवर सरकार की हर नीति पर अपनी बेबाक टिप्पणी करनेवाले मरांडी को अगर 12-13 साल पूर्व के वक्तव्यों की याद दिलायी जाये तो एक पोथी बन जायेगी। वैसे कई लोग सोशल मीडिया पर पुरानी कतरनों के जरिये उन्हें स्मरण करा भी रहे हैं।

आज अगर मरांडी भाजपा में नहीं होते तो, कोरोना काल से जूझ रहे झारखंड के मजदूरों के लिए भाजपा को जी भर कर कोस रहे होते।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तो वर्चुअल जनसंवाद रैली पर कड़ा प्रहार कर चुके हैं। उन्होंने इसे फिजूलखर्ची बताया है। उन्होंने कहा कि वर्चुअल रैली में हो रही विशाल धनराशि से प्रवासी मजदूरों को मुफ्त में घर पहुंचाया जा सकता था। इसका जवाब मरांडी जी को देना चाहिए।

सोरेन का आरोप है केंद्र सरकार एक वेंटिलेटर तक नहीं मिला है। हम अपने सीमित संसाधनों में काम कर रहे हैं। वहीं भाजपा अपनी राजनीति के रंगों में रंगी दिख रही है। 

बहरहाल, मरांडी जी का यह प्रस्ताव राजनीतिक है। उन्हें गांव के बच्चों की नहीं, वर्चुअल रैली को सफल बनाने की चिंता है। वे इसी बहाने यह संदेश देना चाहते हैं कि हम तो सरकारी स्कूल के बच्चों को स्मार्ट बनाना चाहते हैं लेकिन सरकार साथ नहीं दे रही है।