“पीड़ित पिता ने नालंदा के पूर्व एसपी कुमार आशीष के समक्ष गुहार लगाई। एसपी ने मामले को परखते हुये बिहार थाना को तत्काल मामला दर्ज करने के निर्देश दिये और 5 दिनों के भीतर की गई कार्रवाई की रिपोर्टिंग करने का आदेश दिया। उसके एक सप्ताह बाद भी बिहार थाना में शिकायत आवेदन तो ले लिया गया लेकिन, उसे कोई पावती पत्र या एफआईआर दर्ज कर उसकी कॉपी नहीं दी है।स्वंय हाथ-पैर चलाने के बजाय पीड़ित के परिजनों को ही मानसिक रुप से इस कदर प्रताड़ित कर रहा है कि माने उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कर खुद बड़ा गुनाह कर लिया हो।”
न्यूज डेस्क/ इस्लामपुर। नालंदा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ में पदास्थापित थाना प्रभारी का कोई सानी नहीं है। पूर्व एसपी कुमार आशीष के दुलररुआ रहे इस थाना प्रभारी को सामान्य जन प्रावधान तक की जानकारी नहीं है या फिर उनकी मनमानी ही हर प्रावधान है।
इस्लामपुर थाना के सुहावनपुर सुढ़ी गांव निवासी इंद्रदेव प्रसाद का 14 वर्षीय पुत्र नीतिश कुमार पिछले 25 जून यानि एक माह से गायब है। वह अपनी बहन प्रीति कुमारी के साथ बिहार शरीफ नगर में किराये की मकान में रह कर कॉलेजिएट हाई स्कूल में 9 वर्ग में पढ़ाई कर रहा था।
अचानक एक दिन नीतिश बिहारशरीफ डेरा में अपनी बहन से घर जाकर दो-तीन दिन में बापस आ जाने की बात बोल कर निकला, लेकिन जब वह घर नहीं पहुंचा तो उसके परिजन इधर-उधर नाते रिश्तेदारों के यहां हरसंभव खोजबीन की। मगर लापता नीतिश को कोई पता नहीं चला।
इसके बाद वह मामले की शिकायत को लेकर वह इस्लामपुर थाना गया। वहां के थाना प्रभारी ने बिहार शरीफ के बिहार थाना क्षेत्र का मामला बताया। पीड़ित पिता जब अपनी पीड़ा लेकर बिहार थाना पहुंचा तो वहां बैठे हाकिमों ने इस उपदेश के साथ डांट कर भगा दिया कि जिस थाना क्षेत्र में गांव पड़ता है, वहां जाओ।
इसके बाद पीड़ित पिता ने नालंदा के पूर्व एसपी कुमार आशीष के समक्ष गुहार लगाई। एसपी ने मामले की गंभीरता परखते हुये बिहार थाना को तत्काल मामला दर्ज करने के निर्देश दिये। उसके बाद बिहार थाना में शिकायत आवेदन तो ले लिया गया लेकिन, उसे कोई पावती पत्र या एफआईआर दर्ज कर उसकी कॉपी नहीं दी।
इस बाबत तब नालंदा के एसपी से बात की तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि थाना प्रभारी थाना में नहीं होगें। शिकायतकर्ता को इंतजार करने को कहा गया होगा। एफआईआर दर्ज होने बाद उसकी एक प्रति आवेदक को निःशुल्क देना ही है।
तब एसपी से बात होने के बाद जब आवेदक से बात की गई तो उसने बताया कि उसने अपना आवेदन थाना प्रभारी को ही दिया था। जिसने डपटते हुये कहा कि मुंशी को देकर यहां से जाओ। रिसिविंग मांगने पर भी नहीं दिया गया।
फिलहाल, आलम यह है कि पीड़ित आवेदक को समाचार लेखन तक (5 अगस्त,समय-5:30 बजे तक भी एफआईआर की कॉपी या कोई पावती प्रपत्र नहीं दी गई है। जबकि एसपी द्वारा दिये गये निर्देश-आदेश में साफ लिखित है कि पांच दिनों के अंदर इस संबध में रिपोर्टिंग करें, जिसकी मियाद कब की खत्म हो गई है।
आज पीड़ित आवेदक ने बताया कि बार-बार थाना प्रभारी उदय कुमार थाना बुलवाते हैं और उनके द्वारा निर्देशित एस आई मनोरंजन उल्टे वेबकूफी भरे सबाल करता है कि लापता लड़का कहां है। बताओ, उसे बरामद कर लेगें। स्वंय हाथ-पैर चलाने के बजाय पीड़ित के परिजनों को ही मानसिक रुप से इस कदर प्रताड़ित कर रहा है कि माने उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कर खुद बड़ा गुनाह कर लिया हो। आखिर उदय कुमार सरीखे थाना पुलिस के प्रभारियों को इस तरह की वेशर्मी को क्या कहेगें?