विस्थापन की पीड़ा का पर्याय है ओरमांझी का चकला पंचायत
रांची (मुकेश भारतीय)। विकास के खोखले सपने दिखा किसानों की जमीनें हड़प ली गई। वे अपने ही भूमि से बेदखल हो गये। उन्हें कभी कुछ न मिला। आज यहां कभी खुशिहाल रहे लोग दोयम दर्जे की जिंदगी जीने वाले भूखी आबादी नजर आते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं चकला पंचायत के चकला, दड़दाग, सरना टोली, बसुआ टोली आदि गांवों की। इन गांवो की खेती-बारी की अधिकांश जमीनें 60 के दशक में ही कहीं डैम तो कहीं अन्य योजनाओं के लिये अधिग्रहित कर ली। डैम से यहां के लोगों को कितना फायदा हुआ और उन्हें क्या मुआवजा और सुविधाएं मिली, यह किसी से छुपी हुई नहीं हैं। चकला और दड़दाग की 25 एकड़ अति उपजाऊ भूमि तात्कालीन बिहार सरकार ने वर्ष 1956-57 ई. के बीच विकास कार्य के नाम पर अधिग्रहण कर लिया। उस समय इस भूमि को लेकर सरकार की क्या योजनाएं थी, आज तक स्पष्ट नहीं हो सका है लेकिन वर्तमान में यहां जो घेराबंदी कर बोर्ड लगा है, उसके अनुरुप यह भूमि वर्तमान में बीज गुणनन प्रक्षेत्र, ओरमांझी (रांची) के अधीन है।
गांव वालों के अनुसार उन्हें आज तक यह पता नहीं चल सका है कि आखिर उनकी इस 25 एकड़ भूमि क्यूं छीन ली गई। डैम में डूबने के कारण ऐसे भी उनके पास न के बराबर जमीनें बची थी।
दड़दाग निवासी समाजसेवी गंगा विष्णु महतो कहते हैं कि वर्तमान में जो 25 एकड़ अधिकृत किसानों की खेतीबारी की भूमि है, वह शुरु से ही बेकार पड़ी हुई है। इस भूमि की घेराबंदी कर विभाग द्वारा लाखों-करोड़ों का बारा-न्यारा करने के आलावे कभी कुछ नहीं हुआ। इस जमीन को रैयती किसानों को वापस कर देनी चाहिये ताकि वे इस पर खेती बारी कर अपनी स्थिति बेहतर कर सकें।
विस्थापित किसान मो. हलीम असारी बताते हैं कि पहले इस फार्म के नाम पर 1.40 डिसमिल ले ली गई। उसके बाद गेतलसूद डैम में सारी जमीने चली गई। आज हम पूर्णतः भूमिहीन है।
चकला गांव निवासी नंदलाल महतो सुझाव देते हैं कि अगर दशकों से बेकार पड़ी इस जमीन को रैयती किसानों के नाम वापसी में तत्काल कोई संवैधानिक परेशानी है तो उन्हें उस भूमि पर खेती-बारी शुरु करने की अनुमति तो जरुर मिलनी चाहिये। इससे सरकार को खेती से सकल आय की प्राप्ति भी होगी और किसानों की बदहाली भी दूर होगी।
व्यवसायी संघ के अध्यक्ष रामदास साहु कहते हैं कि कथित कृषि फार्म के नाम पर जो जमीन दिख रही है, उस पर कभी कोई जन उपयोगी कार्य होते नहीं देखा। यहां कभी कोई अधिकारी-कर्मचारी नहीं रहा। आज समूचा फार्म परिसर असमाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है। चारों तरफ से भू-माफिया अधिग्रहित किसानों की रैयती जमीन का कब्जा कर रहे हैं और प्रशासन मूक-दर्शक बना बैठा है।