“शिक्षक द्वारा स्कूली बच्चों की कोमल हाथों से धनकटनी करवाना वेशक अमानवीयता की हद है, वह भी मजदूरी में दाल-भात और दो-दो पीस मुर्गा खिलाने का प्रलोभन देकर। शासन-प्रशासन को इस पर तत्काल कड़ी जांच कार्रवाई करनी चाहिये।”
खबर है कि राजधानी रांची शहर से सटे नामकुम प्रखंड में एक गांव है, लदनापीड़ी लतारडीह उलीडीह। वहां एक स्कूल है-ब्लेसिंग एकेडमी। इसमें पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। 100 बच्चों का नामांकन हुआ है। लेकिन 70-80 बच्चे ही स्कूल आते हैं।
स्कूल से थोड़ी दूरी पर सहायक शिक्षक यदुनाथ मुंडा का 25 डिसमिल खेत है, जिसमें धान की फसल तैयार है। शनिवार दोपहर 12 बजे उन्होंने स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों को हंसुआ के साथ खेत में उतार दिया।
बच्चे धूप में पढ़ाई-लिखाई छोड़ धान की फसल काटते रहे। शाम को उन्हें धनकटनी की मजदूरी यानी दाल-भात और दो-दो पीस मुर्गा मिले। जब बच्चे फसल काट रहे थे, तो वहां स्कूल के एक शिक्षक बिरसा मुंडा और यदुनाथ मुंडा की पत्नी आलीशा मुंडा भी मौजूद थीं।
धान की फसल काट रहे बच्चों ने बताया कि शुक्रवार को ही यदुनाथ सर ने घर से हंसुआ लाने को कहा था। बता दिया था कि सबको धान काटना है। बदले में उन्हें दाल-भात-मुर्गा मिलेगा। धान काटने के बाद हम सब लोग सर के घर जाकर खाना खाएंगे।
स्कूल में मौजूद शिक्षिका ज्योति ने कहा कि जिनका खेत है, वहीं धान कटवा रहे हैं। हम क्या करें। हर स्कूल में सीखने के लिए ऐसा कराया जाता है।