आदरणीय नीतीश जी ने कहा कि वो गांधी जी को मानते है। नीतीश जी मेरी आप से करबद्ध प्रार्थना है कम से कम गांधी जी को अपनी अतिनकारात्मक, संकीर्ण, U-Turn और अनैतिक पॉलिटिक्स का हिस्सा मत बनाइये।
आप तो गांधी जी के हत्यारों से मिल गए फिर किस मुँह से आप गांधी जी के अनुयायी होने का झूठा दावा करते है। आपके सामने कितनी बार मंच से मैंने यह बात कही है कि BJP गांधी जी के हत्यारों की पार्टी है, यह गोडसे को मानने वालों की पार्टी है।
नीतीश जी, प्रखर समाजवादी लोहिया जी की यह शिक्षा नहीं थी कि जिस पार्टी की नीति, सिद्धांत और घोषणा पत्र आपके साँझा कार्यक्रम के विरुद्ध हो, गठबंधन सहयोगियों संग मिलकर उन्हें चुनाव में करारी शिकस्त दी हो और बीच में घोटालों में फँसी अपनी गर्दन बचाने के लिए आप उन्हीं के साथ मिलकर सरकार बना लें।
आप गांधी और लोहिया जैसे महापुरुषों की ओट में अपने अनैतिक निर्णय नहीं छुपा सकते।
बिहार की विवेकशील जनता जानती है बिहार का सबसे बड़ा सामाजिक और नैतिक भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह कौन है? पूरा देश आपकी अवसरवादिता से परिचित हो चुका है।
नीतीश जी आपकी ज़ुबान पर कुछ होता है, दिमाग़ में कुछ और ,दिल में कुछ और एवं पेट में कुछ और। बाढ़ राहत और कटाव के नाम पर आपके चेहतो ने क्या-क्या गुल खिलायें है उनके ख़िलाफ़ आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते।
2008 कुशहा त्रासदी में केंद्र सरकार ने चौथे दिन ही सहायता की थी। विश्वबैंक से मिली सहायता कैसे घोटाले की भेंट चढ़ी, कौन नहीं जानता? 2008 की बाढ़ सहायता राशि आपने 2010 के चुनावों से ठीक पहले बाँटी ताकि राजनीतिक फ़ायदा उठा सके।
जदयू को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने पर कैसी नादानी भरी सफ़ाई दे रहे है। जदयू ने लोकसभा चुनाव भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ा फिर पता नहीं किस नैतिक आधार पर मंत्री बनने के लिए ललचाए हुए थे।
जिस पार्टी का मुखिया ही अनैतिकता की सारी हदों को पार कर जनादेश का अपमान करें वैसी पार्टी से आप ऐसी ही लालची उम्मीदों की अपेक्षा कर सकते है।
सनद रहे लोकसभा चुनाव में करारी हार की ज़िम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री ने इस्तीफ़ा दिया था और अब उसी हारीं हुई पार्टी संग सरकार बना ली।
अगर कोई पत्रकार बंधु इनके मनमाफ़िक ख़बर दिखाए तो ठीक है अन्यथा प्रेस कॉन्फ़्रेस में सवाल पूछने पर पहले उस पत्रकार से ही पूछते है आप किस अख़बार से है ताकि उसका विज्ञापन बंद करवा सके। यही इनकी प्रैक्टिस रही है और यही सुशासन करने का तरीक़ा।
लोकसंवाद में इनके बग़ल में सुशील मोदी बैठे थे, जो लोकसंवाद कार्यक्रम को बेकार, फ़ालतू और समय व्यर्थ करने वाला बताते थे। उसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के साथ बैठने में शायद उन्हें आत्मग्लानि महसूस हुई होगी।