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    Wednesday, May 8, 2024
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      जज मानवेंद्र मिश्र ने नालंदा पुलिस की कार्यशैली पर उठाए सवाल, कहा- जीरो

      “बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय सूबे में भले ही विधि व्यवस्था चुस्त करने के दावे कर रहे हो, मगर सीएम के गृह जिले नालंदा में ही पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है……”

      -: नालंदा से दीपक विश्वकर्मा की खास रिपोर्ट :-

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। यह सवाल हमने खड़ा नहीं खड़ा किया बल्कि, बाल किशोर न्यायपरिषद के मुख्य न्यायधीश मानवेन्द्र मिश्र ने खड़ा किया है।

      दरअसल बाल कैदियों के सोशल बैकग्राउंड की रिपोर्ट देने के मामले में नालंदा पुलिस फिसड्डी साबित हुई है। यही नहीं कुछ ऐसे मामले हैं, जिसका निष्पादन 10  वर्षों के अंतराल में नहीं किया गया है।

      जबकि नियमानुसार किशोर न्याय परिषद के मामले 4  या फिर अधिक से अधिक छह माह में निष्पादित करना है। यही नहीं सभी थानाध्यक्ष को बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी का गठन करने का निर्देश दिया गया था। मगर उसका भी गठन  नहीं किया है।

      इस मामले में उनके विरुद्ध उच्च न्यायालय को रिपोर्ट भेजी जा रही है, जिससे उन पर कार्रवाई तय है।

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      इन्हीं मुद्दों  को लेकर बिहार शरीफ के हरदेव भवन के सभागार में किशोर न्याय प्रणाली को प्रभावी बनाने और किशोर न्याय अधिनियम को पूर्ण रूप से जिले में लागू करने के उद्देश्य से जिले के पुलिस पदाधिकारियों और थानाध्यक्षों के बीच कार्यशाला का आयोजन किया गया।

      कार्यशाला में जिले के सभी थाने के थानेदारों को मौजूद रहना था, मगर एक थानेदार को छोड़कर कोई भी मौजूद नहीं थे। 

      इस पर संज्ञान लेते हुए न्याय परिषद के प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र ने उनके विरुद्ध कार्रवाई करने की बात कही। कार्यशाला में एएसपी और डीएसपी शामिल हुए।

      इस पर मानवेंद्र मिश्र ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर बात है। इसकी रिपोर्ट उच्च न्यायालय किशोर न्यायालय को भेजा जाता है। अगर बैठक से लागातार थानाध्यक्ष गायब रहते है। तो उन पर कार्यवाई के लिए रिपोर्ट भेजा जाएगा।

      उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि बाल कैदियों का सोशल बैकग्राउंड काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। चुकि उससे पता चलता है कि बच्चे अपराध की दुनिया में कैसे शामिल हुए या फिर किसी गैंग में तो शामिल नहीं हो गए। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है इस मामले में नालंदा पुलिस जीरो है।

      उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आरोप पत्र पुलिस द्वारा स समय नही भेजे जाने के कारण न केवल न्यायालय का समय बर्बाद होता है, बल्कि उनके परिवार का आर्थिक और मानसिक दोहन होता है।

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