वहीं पीड़ित परिवार के लोग फैसले से संतुष्ट हैं, लेकिन उनका मानना है कि प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद की सजा मिलनी चाहिए। पत्नी चांदनी सिंह ने मीडिया को बताया कि प्रभुनाथ सिंह को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी। हालांकि उम्रकैद की सजा से थोड़ी राहत मिली है। एक विधवा को न्याय मिला है।
बता दें कि 22 साल पहले 3 जुलाई 1995 में मशरख के विधायक अशोक सिंह की हत्या उनके ही सरकारी आवास पर बम मार कर दी गयी थी। तब अशोक सिंह जनता दल के विधायक थे। विधायक अशोक सिंह की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी थी। इतना ही नहीं, अशोक सिंह से मिलने आये अनिल कुमार सिंह भी घटना में मारा गया था। इस मामले में अशोक सिंह की पत्नी चांदनी सिंह ने प्रभुनाथ सिंह के खिलाफ केस दर्ज कराया था।
दिवंगत अशोक सिंह की पत्नी चांदनी देवी प्रभुनाथ सिंह समेत उनके भाई दीनानाथ सिंह को भी आरोपी बनाया गया था। इन्वेस्टिगेशन में प्रभुनाथ सिंह के एक और भाई केदार सिंह समेत रितेश सिंह और सुधीर सिंह का भी नाम सामने आया। इस मामले की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में चल रही थी।
वर्ष 1997 में पटना हाईकोर्ट ने केस को हजारीबाग कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था। कुछ दिनों के लिए इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी हुई। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले की सुनवाई फिर से हजारीबाग कोर्ट में हुई। इसी मामले की सुनवाई करते हुए 18 मई को हजारीबाग कोर्ट ने प्रभुनाथ सिंह समेत अन्य को दोषी करार दिया था और आज मंगलवार को इसमें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी।
खास बात कि प्रभुनाथ सिंह को गिरफ्तार कर छपरा जेल भेजा गया था। छपरा जेल में प्रभुनाथ सिंह के रहते वहां कानून व्यवस्था बिगड़ने लगी थी। इसके चलते उनको हजारीबाग जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। उस समय झारखंड अलग राज्य नहीं बना था। बाद में प्रभुनाथ सिंह को जमानत हो गयी थी। इसके बाद प्रभुनाथ सिंह के आवेदन पर ही हजारीबाग कोर्ट में इस केस का ट्रायल चला और 22 वर्षों के बाद सुनवाई पूरी हुई।
प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक सफ़रः सारण के सीएम के रूप में चर्चित प्रभुनाथ सिंह के राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत जनता दल से हुई थी। इसके बाद वे जदयू के साथ जुड़ गये और लगातार महाराजगंज की राजनीति में सक्रिय रहे। प्रभुनाथ सिंह पहली बार महाराजगंज संसदीय सीट से वर्ष 2004 में जदयू के टिकट पर जीते थे। इससे पहले वे क्षेत्रीय स्तर की राजनीति में जदयू की तरफ से पॉलिटिक्स करते थे। हालांकि, 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राजद के प्रत्याशी उमाशंकर सिंह ने प्रभुनाथ को लगभग 3000 वोटों से पराजित कर दिया था। वर्ष 2012 में वे जदयू से अलग हो गए और राजद में शामिल हो गये। मध्यावधि चुनाव में वे राजद की सीट से महाराजगंज से फिर सांसद बने। हालांकि 2014 में लोकसभा चुनाव में प्रभुनाथ सिंह मोदी लहर में हार गये।
शहाबुद्दीन से होता रहता था प्रभुनाथ सिंह का विवादः राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चा के अनुसार एक समय था जब पूर्व सांसद शहाबुद्दीन से प्रभुनाथ सिंह का टकराव होता रहता था। दोनों एक-दूसरे को दुश्मन के तौर पर देखते थे। बताया जाता है कि इन दोनों के बीच कभी-कभी झड़पें भी हो जाती थीं। हालांकि, दोनों का अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में वर्चस्व कायम रहा है।
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