नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक अहम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद ढहाने के मामले में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 12 लोगों पर आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चलाने का फैसला सुनाया है। साथ ही यह भी कहा कि रायबरेली और लखनऊ में चल रहे दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ लखनऊ की अदालत में की जाए । वहीं इस मामले में राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह को राहत दी गई है।
सन 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज टेक्निकल ग्राउंड पर इनको राहत नहीं दी जा सकती और इनके खिलाफ साजिश का ट्रायल चलना चाहिए।
वहीं लालकृष्ण आडवाणी की ओर से इसका विरोध किया गया। कहा गया कि इस मामले में 183 गवाहों को फिर से बुलाना पड़ेगा जो काफी मुश्किल है। कोर्ट को साजिश के मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश नहीं देने चाहिए।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का ट्रायल चलना चाहिए। सीबीआई ने कहा रायबरेली के कोर्ट में चल रहे मामले का भी लखनऊ की स्पेशल कोर्ट के साथ ज्वाइंट ट्रायल होना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के साजिश की धारा को हटाने के फैसले को रद्द किया जाए।
दरअसल आडवाणी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और बीजेपी, विहिप के अन्य नेताओं पर से आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इससे संबंधित अपीलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के आदेश को खारिज करने का आग्रह किया गया है।
हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के फैसले की पुष्टि करते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) हटा दी थी। पिछले साल सितंबर में सीबीआई ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसकी नीति निर्धारण प्रक्रिया किसी से भी प्रभावित नहीं होती और वरिष्ठ भाजपा नेताओं पर से आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाने की कार्रवाई उसके (एजेंसी के) कहने पर नहीं हुई।
सीबीआई ने एक हलफनामे में कहा था कि सीबीआई की नीति निर्धारण प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र है। सभी फैसले मौजूदा कानून के आलोक में सही तथ्यों के आधार पर किए जाते हैं। किसी शख्स, निकाय या संस्था से सीबीआई की नीति निर्धारण प्रक्रिया के प्रभावित होने या अदालतों में मामला लड़ने के उसके तरीके के प्रभावित होने का कोई सवाल नहीं है।
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