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    Wednesday, January 22, 2025
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      LJP (R) नेता के घर ED की रेड, भाई JDU का बाहुबली, भतीजा BJP MLA

      इस छापेमारी ने बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया है। देखना यह है कि ईडी की जांच से क्या नया खुलासा होता है और हुलास पांडेय के राजनीतिक सफर पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। आय से अधिक संपत्ति के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता हुलास पांडेय के ठिकानों पर छापेमारी की है। पटना और बेंगलुरु में तीन स्थानों पर एक साथ यह छापेमारी की गई। इस कार्रवाई ने बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।

      पटना में ईडी (ED) की टीम सुबह 6:30 बजे दानापुर के गोला रोड स्थित एक्सप्रेशन एक्सोटिका के फ्लैट नंबर 407 पहुंची। इस दौरान टीम ने वहां से बड़े पैमाने पर जमीन के कागजात, नकदी और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए। बंद कमरे में मौजूद लोगों से गहन पूछताछ भी की गई।

      हुलास पांडेय का राजनीतिक और आपराधिक बैकग्राउंड उन्हें एक विवादास्पद शख्सियत बनाता है। वह जनता दल यूनाइटेड (JDU) के पूर्व बाहुबली विधायक सुनील पांडेय के भाई हैं। सुनील पांडे बिहार के कुख्यात बाहुबलियों में से एक माने जाते हैं। हुलास पांडेय के भतीजे प्रशांत पांडेय हाल ही में बीजेपी से तरारी विधानसभा क्षेत्र के विधायक चुने गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि प्रशांत की जीत में हुलास पांडेय ने भी बड़ा योगदान दिया था।

      हुलास पांडेय का नाम बिहार के चर्चित ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड में भी आया था। हालांकि इस मामले में आरा की एमपी-एमएलए अदालत ने सीबीआई की चार्जशीट को खारिज कर दिया। जिससे उन्हें राहत मिली।

      रोहतास जिले के नावाडिह गांव निवासी हुलास पांडेय पर दो दर्जन से अधिक गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश और अवैध हथियार रखने के आरोप शामिल हैं। फरारी के दौरान ही वह आरा-बक्सर स्थानीय प्राधिकार से विधान पार्षद (MLC) चुने गए थे और बाद में जेडीयू में शामिल हो गए।

      2015 के विधानसभा चुनाव में राधाचरण सेठ से हारने के बाद हुलास पांडेय ने जेडीयू छोड़कर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का दामन थाम लिया। उन्हें चिराग पासवान का बेहद करीबी माना जाता है और पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

      हालांकि दिसंबर 2022 में उन्होंने संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से उनका राजनीतिक सफर धीमा पड़ गया था। लेकिन मौजूदा ईडी रेड ने फिर से उन्हें सुर्खियों में ला दिया है।

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