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    Saturday, April 27, 2024
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      CM चम्पाई का हेमंत पार्ट टू राज, धर्मेंद्र उर्फ चंचल बने प्रेस सलाहकार

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। अगर आपको कानूनी सलाह लेनी होगी तो आप किसके पास जाएंगे? निश्चित रूप से आप किसी अच्छे वकील को ढूंढेंगे, जो आपको बेहतर कानूनी सलाह और सहायता उपलब्ध करा सके। इसी तरह सरकारें भी अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को सलाहकार बनाती हैं, ताकि उनकी विशेषज्ञता और अनुभव का लाभ सरकारी नीतियों को बनाने और उनके क्रियान्वयन में किया जा सके और इसलिए सरकारें, कृषि, पेयजल, स्वच्छता, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों के जानकार लोगों को सलाहकार नियुक्त करती हैं। इन सलाहकारों के लिए विशिष्ट योग्यताएं, अनुभव और उपलब्धियां निर्धारित की जाती है, ताकि बेहतर से बेहतर लोगों को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया जा सके।

      ऐसे में झारखंड के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो वे आम तौर पर पत्रकारों को ही प्रेस सलाहकार नियुक्त करते रहे हैं। झारखंड में भी बाबूलाल मरांडी से लेकर अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधुकोड़ा और रघुवर दास ने सीएम रहते पत्रकारों को प्रेस सलाहकार बनाया।

      लेकिन इस परंपरा को हेमंत सोरेन ने सीएम ने तोड़ दिया और उनके कथित जमीन घोटाला में ईडी के हाथों जेल जाने के बाद सीएम बने चंपई सोरेन ने भी हेमंत सोरेन की परंपरा को ही आगे बढ़ाया है, क्योंकि चंपई सोरेन पहले ही कह चुके हैं कि उनकी सरकार हेमंत सरकार पार्ट टू है। तो जाहिर है सिस्टम भी वही रहेगा।

      हेमंत सोरेन ने अभिषेक प्रसाद पिंटू को अपना प्रेस सलाहकार बनाया था। जिनकी प्रेस के बारे में समझ जेएमएम प्रवक्ता के नाते बयान जारी करने तक सीमित थी और चंपई सोरेन ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए अपना प्रेस सलाहकार एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया, जो एक निजी कंपनी का कर्मचारी है।  उसे न मीडिया से कोई लेना देना है, न उसे प्रेस नोट और प्रेस रिलीज के बीच का अंतर पता है।  न खबर और विज्ञापन का फर्क मालूम है।

      अब एक प्राइवेट स्टील फैक्ट्री में काम करने वाले से सीएम प्रेस मीडिया के बारे में कौन सी सलाह लेंगे और जिस व्यक्ति को उनके गृह क्षेत्र सरायकेला आदित्यपुर जमशेदपुर के पत्रकार भी ठीक से नहीं जानते, वह व्यक्ति क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया से कैसे सामंजस्य बैठाएगा? यह सीएम ही बता सकते हैं।

      हालांकि सरायकेला खरसावां जिले के आदित्यपुर मांझी टोला में बेहद साधारण परिवार में जन्मे धर्मेंद्र उर्फ चंचल गोस्वामी सीएम चंपाई सोरेन के साथ बाल्यकाल से ही जुड़े रहे हैं। बचपन से ही चंचल को गाने का शौक था। वे छोटे- छोटे आयोजनों में बतौर कलाकार अपनी प्रस्तुति दिया करते थे। धीरे-धीरे उनकी गायिकी के विधायक चंपाई सोरेन प्रभावित हो गए और धर्मेंद्र को अपने साथ घुमाने लगे।

      बाद में चंपाई सोरेन की भूमिका से उनकी नौकरी उषा मार्टिन में लग गई। फिर चंपई सोरेन जैसे-जैसे सियासी तौर पर स्थापित होते गए, चंचल का प्रभाव भी बढ़ता गया। विधायक से मंत्री बने चंपाई सोरेन ने चंचल गोस्वामी को अपना आप्त सचिव बनाया। फिर राज्य के सीएम बनने के बाद चंपाई सोरेन ने धर्मेंद्र गोस्वामी उर्फ चंचल को अपना प्रेस सलाहकार बनाकर सुर्खियों में ला दिया।

      बता दें कि राज्य के पहले सीएम थे बाबूलाल मरांडी और उनके प्रेस सलाहकार थे दिलीप श्रीवास्तव उर्फ नीलू। रांची के सबसे पुराने आज अखबार के संपादक और दूसरे तमाम मीडिया संस्थानों में संपादक रहे नीलू जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है।

      बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा सीएम बने तो उन्होंने हरेंद्र सिंह को प्रेस सलाहकार रखा। हरेंद्र सिंह पत्रकारिता की दुनिया में कोई बड़े चर्चित नाम नहीं थे, लेकिन वे अखबारों से जुड़े रहे थे। उस समय तक प्रेस सलाहकार का वेतन बहुत मामूली हुआ करता था। बाद में वेतन बढ़ा और अभी तो सचिव का वेतन मानदेय और सुविधाएं प्रेस सलाहकार को मिलती हैं। इसका सारा श्रेय सीएम रघुवर दास को जाता है।

      अर्जुन मुंडा तीन बार सीएम बने तो दो बार उन्होंने हरेंद्र सिंह को बनाया और तीसरे टर्म में अंग्रेजी के पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स टेलीग्राफ तथा पायनियर जैसे अखबारों में ऊंचे पदों पर काम कर चुके सुमन श्रीवास्तव को प्रेस सलाहकार बनाया।

      गुरुजी यानी शिबू सोरेन जो हेमंत सोरेन के पिता हैं, तीन बार सीएम बने। वे काफी कम समय के लिए ही सीएम बने, लेकिन उन्होंने हिमांशु शेखर चौधरी को राष्ट्रीय मीडिया सलाहकार बनाया। फिर अगले टर्म में प्रभात खबर और हिंदुस्तान जैसे अखबारों में काम कर चुके और झारखंड मुक्ति मोर्चा बीट देखने वाले पत्रकार शफीक अंसारी को प्रेस सलाहकार बनाया।

      मधु कोड़ा ने सीएम बनने पर राष्ट्रीय सहारा के झारखंड ब्यूरो चीफ संदीप वर्मा को अपना प्रेस सलाहकार बनाया। रघुवर दास ने तो एक साथ दो पत्रकारों को सलाहकार बनाया। इंडिया टीवी के झारखंड ब्यूरो चीफ रहे योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार और हिंदुस्तान अखबार के ब्यूरो चीफ अजय कुमार को उन्होंने अपना राजनीतिक सलाहकार बनाया। बाद में रघुवर दास ने राजनीतिक सलाहकार का पद खत्म कर दिया। योगेश किसलाय का इस्तीफा हो गया और अजय कुमार प्रेस सलाहकार  पूरे टर्म तक रहे।

      रघुवर दास के बाद हेमंत सोरेन सीएम बने और उन्होंने जो काम किया, उस पर किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया, उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता अभिषेक प्रसाद पिंटू को प्रेस सलाहकार बना दिया और प्रेस सलाहकार बनने के बावजूद अभिषेक प्रसाद प्रवक्ता बने रहे, किसी ने आज तक यह सवाल नहीं उठाया कि जेएमएम का एक पदाधिकारी जो पार्टी का पट्टा लटकाकर राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेता रहा, वह प्रेस सलाहकार के रूप में सचिव के वेतन, मान गाड़ी, दफ्तर और सुविधाओं का उपभोग किस नियमावली के तहत करता रहा?

      जबकि प्रेस सलाहकार का पद सचिव रैंक का है और उसकी सेवा, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अंतर्गत आती है, यानी उस अवधि में वह लोक सेवक होता है, फिर पिंटू कैसे पार्टी में पदाधिकारी भी बने रहे,  जो अभी जेएमएम के केंद्रीय सचिव हैं और हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने तक वह उनके प्रेस सलाहकार थे।

      और अब सीएम बनने के बाद चंपाई सोरेन ने धर्मेंद्र गोस्वामी को प्रेस सलाहकार नियुक्त कर दिया है, जो एक निजी स्टील कंपनी में कर्मचारी हैं, जिन्हें बैनर फ्लायर बॉक्स और एंकर का पता नहीं, जिन्हें न्यूज़ एडिटोरियल और आर्टिकल का भेद नहीं मालूम, न्यूज़ कितने तरह का होता है, बीट क्या होती है, रिपोर्टिंग कैसे होती है, कैसे क्राइसिस मैनेजमेंट होता है, कैसे मीडिया रिलेशंस बनाने हैं, मीडिया से कैसे फायदा लेना है, मीडिया कंट्रोल कैसे करना है, सीएम और सरकार को कैसे मीडिया में प्रोजेक्ट करना है।

      इसके अलावा पत्रकारों की क्या समस्याएं होती हैं, उनका सरकार से कैसे निदान कराना है, यह सब किसी निजी कंपनियों में काम करने वाले व्यक्ति या किसी राजनीतिक कार्यकर्ता को कैसे पता हो सकती हैं?

      लगता है कि हेमंत सोरेन और चंपई सोरेन को पत्रकार रास नहीं आते या उन्हें पत्रकारों से डर लगता है या फिर इतने लंबे सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में ये लोग एक या दो भी पत्रकारों से ऐसा संबंध नहीं बना सके, जो समय आने पर उन्हें सलाह दे सके या यह उनसे सलाह ले सके।

      यह अलग बात है कि सीएम के पास इतना अधिकार है कि वह जितने चाहे सलाहकार रख सकता है, लेकिन प्रेस सलाहकार के साथ मीडिया की भावनाएं जुड़ी होती हैं। उसे लगता है कि इस पर उसका अपना कोई होना चाहिए। इसलिए सीएम को गैर पत्रकार को सलाहकार रखना है तो पद का नाम भी प्रेस सलाहकार से बदलकर सिर्फ सलाहकार रख देना चाहिए।

      हेमंत सोरेन के पास तीन सलाहकार थे लेकिन चर्चा में सिर्फ पिंटू थे तो इसका बड़ा कारण उनका प्रेस सलाहकार होना था। प्रेस का पट्टा लगाकर चर्चा में सभी रहना चाहते हैं, लेकिन अब प्रेस वालों को कोई रखना नहीं चाहता।

      क्या यह पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के मुंह पर तमाचा नहीं है कि उन्हें एक ऐसे सलाहकार से डील करना पड़ेगा, जिसे खुद मीडिया से जुड़ी बारीकियों के लिए किसी जान पहचान वाले पत्रकार से ही सलाह लेनी पड़ेगी। अगर सीएम को प्रेस वालों को सलाहकार नहीं बनाना है तो उन्हें प्रेस सलाहकार का पद खत्म कर देना चाहिए। ये प्रेस सलाहकार रखने की जरूरत ही क्या है?

      अब सबाल उठता है कि संविधान में भी कहीं लिखा है कि प्रेस सलाहकार रखना जरूरी है, अपने लोगों को उपकृत करना है, ओब्लाइज करना है तो खाली सलाहकार रखकर भी काम चलाया जा सकता है। क्या गैर मीडिया कर्मियों को मीडिया सलाहकार रखना, जिनको सूचना के बारे में, जिनको न्यूज़ के बारे में, जिनको मीडिया उद्योग के बारे में कोई जानकारी नहीं है, उनको मीडिया सलाहकार बनाने से सरकार को क्या फायदा होगा। क्या यह आम जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी नहीं है।

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