
रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड की राजनीतिक और सामाजिक हलचल में एक नया मोड़ आ गया है। लंबे समय से चली आ रही कुड़मी समुदाय की एसटी (अनुसूचित जनजाति) दर्जा की मांग को लेकर शुरू हुआ जोरदार रेल टेका आंदोलन अचानक केंद्रीय गृह मंत्रालय के आश्वासन के बाद वापस ले लिया गया। यह फैसला न केवल आंदोलनकारियों के लिए राहत का सबब बना है, बल्कि लाखों यात्रियों की परेशानी को भी तत्काल विराम देगा।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह आश्वासन कुड़मी समाज की दशकों पुरानी लड़ाई का स्थायी समाधान बनेगा? आइए, इस घटना की गहराई में उतरें और जानें कि आखिर क्या हुआ, कैसे हुआ और आगे क्या हो सकता है।
झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में फैले कुड़मी समुदाय की यह मांग कोई नई नहीं है। कुड़मी, जो खुद को आदिवासी मानते हैं, लंबे अरसे से एसटी सूची में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी दलील है कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से वे आदिवासी समुदाय का हिस्सा हैं, लेकिन वर्तमान में उन्हें केवल ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) का दर्जा प्राप्त है। यह दर्जा उन्हें आरक्षण के मामले में सीमित लाभ ही देता है, जबकि एसटी दर्जा शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कहीं अधिक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता।
इस मांग को तेज करने के लिए कुड़मी समाज ने 20 सितंबर को अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन की घोषणा की थी। सुबह चार बजे से ही रांची, हटिया, मुरी, टाटीसिलवे समेत झारखंड के 40 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर हजारों समर्थक जुटने लगे। धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई और दिन चढ़ते-चढ़ते रेल पटरियों पर कालीन बिछा दिया गया।
आंदोलनकारी नारे लगाते रहे- एसटी दर्जा दो, अन्यथा रेल रोको! यह दृश्य न केवल प्रभावशाली था, बल्कि चेतावनी भरा भी। समाज के वरीय नेता जयराम महतो जैसे प्रमुख चेहरों ने भी इसका खुला समर्थन किया, इसे आदिवासी पहचान की लड़ाई करार देते हुए।
लेकिन आंदोलन शांतिपूर्ण ही रहा। पुलिस प्रशासन ने भारी सुरक्षा बल तैनात किया, ड्रोन से निगरानी की और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन किया। फिर भी, कुछ जगहों पर समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों के बीच मामूली झड़पें हुईं, जो तनाव को और बढ़ा रही थीं।
आंदोलन का सबसे बड़ा असर आम यात्रियों पर पड़ा। रांची और हटिया स्टेशनों से रवाना होने वाली एक दर्जन से अधिक ट्रेनें रद्द कर दी गईं। वहीं, 20 से ज्यादा ट्रेनें अपने गंतव्य तक पहुंचने से पहले विभिन्न स्टेशनों पर अटक गईं। राज्य भर से लगभग दो लाख यात्री प्रभावित हुए, जिनमें छात्र, मजदूर और व्यापारी शामिल थे।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 14 ट्रेनें पूरी तरह रद्द हो गई। इनमें वंदे भारत एक्सप्रेस (पटना-रांची, हावड़ा-रांची), इंटरसिटी (रांची-हावड़ा) और अन्य प्रमुख ट्रेनें शामिल हैं।
20 से अधिक ट्रेनें आंशिक रूप से प्रभावित हुई। आसनसोल-रांची, टाटानगर-बरकाकाना जैसी रूटों पर घंटों का ठहराव हुआ। लगभग 28,000 यात्री गंतव्य से वंचित रहे। रांची और हटिया पहुंचने वाले 47,000 से अधिक यात्री विभिन्न स्टेशनों पर फंसे रहे।
मालगाड़ियां भी प्रभावित हुई। धनबाद, बोकारो और राउरकेला से आने-जाने वाली 20 से अधिक मालगाड़ियां मुरी, कीता, सिल्ली, टाटीसिलवे, बोकारो और राय में अटकीं रही। इससे कोयला, स्टील और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति चेन बाधित हुई, जिसका आर्थिक नुकसान करोड़ों में अनुमानित है।
प्रभावित स्टेशनों की सूची लंबी रही। मुरी, टाटीसिलवे, मेसरा, बरकाकाना, जगेश्वर विहार, चरही, पारसनाथ, चंद्रपुरा, प्रधानखंटा, जामताड़ा, गोड्डा, हेसालौंग, सिनी, सोनुआ और गालूडीह। इन जगहों पर आंदोलनकारियों ने ट्रैक जाम कर दिया, जिससे कई रूटों पर ट्रेनें घंटों रुकी रहीं।
हालांकि रेलवे प्रशासन ने संकट को संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रांची रेल मंडल ने यात्रियों की सुविधा के लिए तुरंत वैकल्पिक परिवहन की व्यवस्था की। डीसीएम शुचि सिंह के अनुसार रांची से हावड़ा और टाटानगर के लिए 8 बसें उपलब्ध कराई गईं, जबकि सिल्ली से बोकारो और धनबाद के लिए 22 बसें चलाई गईं। इससे हजारों फंसे यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में मदद मिली।
डीआरएम करुणानिधि सिंह ने बताया कि आंदोलन समाप्त होने के बाद रविवार से हम अधिक से अधिक ट्रेनें चलाने का प्रयास करेंगे। हालांकि रैक की कमी के कारण कुछ ट्रेनें रद्द रहेंगी। यात्रियों से अपील है कि रेलवे की वेबसाइट या ऐप से अपडेट चेक करें। पुलिस मुख्यालय के प्रवक्ता आईजी अभियान माइकल राज ने स्पष्ट किया कि आंदोलन के दौरान कोई निरोधात्मक गिरफ्तारी नहीं की गई, जो शांतिपूर्ण प्रदर्शन की जीत है।
आंदोलन की तीव्रता से चिंतित केंद्र सरकार ने तुरंत कदम उठाया। आदिवासी कुड़मी समाज के वरीय उपाध्यक्ष छोटेलाल महतो ने बताया कि गृह मंत्रालय ने हमारी मांगों पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। बहुत जल्द समाज के प्रतिनिधियों के साथ मंत्रालय स्तर पर वार्ता होगी। इस भरोसे पर हमने फिलहाल आंदोलन वापस ले लिया है। यह आश्वासन न केवल एसटी दर्जा पर केंद्रित है, बल्कि कुड़माली भाषा को मान्यता देने जैसी अन्य मांगों को भी शामिल करता है।
हालांकि, विपक्षी आदिवासी संगठनों ने इस मांग का विरोध किया है। उन्होंने कुड़मियों को परंपरागत रूप से गैर-आदिवासी बताते हुए चेतावनी दी कि एसटी सूची में बदलाव से मौजूदा आदिवासियों के हक प्रभावित होंगे। एक संगठन नेता ने कहा कि कुड़मी, कुर्मी और महतो एक ही हैं। वे कभी आदिवासी नहीं थे। यह विवाद झारखंड की राजनीति को और गरमा सकता है, खासकर आगामी चुनावों के मद्देनजर।
बहरहाल, कुड़मी आंदोलन का वापस लिया जाना एक सकारात्मक कदम है, जो लोकतंत्र में संवाद की ताकत को रेखांकित करता है। लेकिन सवाल वही है कि क्या यह आश्वासन कागजी रहेगा या वास्तविक बदलाव लाएगा? समाज को अब वार्ता की मेज पर मजबूत तर्कों के साथ जाना होगा। फिलहाल रेलवे ट्रैक खाली हो गए हैं, लेकिन कुड़मी समाज की लड़ाई अभी अधर में लटकी हुई है।