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सरकारी जमीन पर वाटर मार्क प्रोजेक्ट का अवैध कब्जा, दबाई गई जांच रिपोर्ट

सरायकेला (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड के सरायकेला जिले में गम्हरिया अंचल के आनंदपुर मौजा में एक निर्माणाधीन ‘वाटर मार्क’ नामक प्रोजेक्ट ने सरकारी जमीन और तालाब को निगलने की कोशिश की है, जो अब विवादों की आग में घिर चुका है। इस हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट पर अवैध कब्जे के आरोपों ने स्थानीय प्रशासन की पोल खोल दी है।

तत्कालीन एसडीओ की जांच रिपोर्ट में खुलासा होने के बावजूद कार्रवाई न होने से सवालों का तूफान उठ रहा है।  क्या भू-माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी संपत्ति लूट ली जा रही है? इस मामले में तबादलों की आड़ में जांच दबा दी गई और बिल्डरों ने बेखौफ होकर निर्माण जारी रखा।

मामला तब सुर्खियों में आया जब तत्कालीन एसडीओ पारुल सिंह ने प्रोजेक्ट की जांच की। उनकी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि बिल्डरों ने सरकारी अनाबाद बिहार जमीन, बांध और अनाबाद सर्वसाधारण जमीन के करीब 1.92 एकड़ क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। लेकिन पारुल सिंह के तबादले के बाद यह रिपोर्ट फाइलों में दफन हो गई।

सूत्रों के मुताबिक जांच में पाया गया कि प्रोजेक्ट के गेट पर ही खाता संख्या 104 के प्लॉट संख्या 29 पी में 0.44 डिसमिल और प्लॉट संख्या 64 पी में 1.37 डिसमिल, कुल 1.81 डिसमिल सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि चाहरदीवारी के अंदर खाता संख्या 104 के प्लॉट संख्या 64 पी में 10 डिसमिल, 63 पी में 58 डिसमिल, खाता संख्या 103 के प्लॉट संख्या 43 पी में 1.18 एकड़ और खाता संख्या 44/674 में 0.02 एकड़, कुल 1.88 एकड़ जमीन बिल्डरों के कब्जे में चली गई।

यहां न केवल जमीन, बल्कि सरकारी रास्तों पर भी हाथ साफ किया गया। जांच रिपोर्ट बताती है कि खाता संख्या 104 के प्लॉट संख्या 27 पी में 2 डिसमिल और 28 पी में 1 डिसमिल, कुल 3 डिसमिल रास्ते की जमीन को अवैध रूप से घेर लिया गया। तत्कालीन सीओ मनोज कुमार ने तो इस प्रोजेक्ट की घेराबंदी पर सख्त रोक लगा दी थी, लेकिन उनके तबादले के बाद बिल्डरों ने न सिर्फ दीवारें खड़ी कर लीं, बल्कि पूरे धूमधाम से प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग भी कर डाली। ग्राहकों को लुभाने के लिए लग्जरी अपार्टमेंट्स, स्विमिंग पूल और ग्रीन स्पेस जैसे बड़े-बड़े वादे किए गए। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या ये ग्राहक भविष्य में कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगे?

यह मामला सिर्फ एक प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं है। यह गम्हरिया अंचल में भू-माफिया की बढ़ती दबंगई की मिसाल है। पहले भी यहां सरकारी और वन विभाग की जमीनों पर अवैध कब्जे के आरोप लगते रहे हैं और आरोपियों में अंचल प्रशासन की मिलीभगत की बातें आम हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि  रोक लगने के बावजूद बिल्डरों ने सरकारी जमीन पर कैसे काम जारी रखा? किसने उन्हें संरक्षण दिया? और सबसे महत्वपूर्ण, नगर निगम ने विवादित जमीन पर नक्शा कैसे पास कर दिया? ये सारे सवाल जांच के दायरे में आते हैं, लेकिन अनुमंडल कार्यालय की चुप्पी से लगता है कि मामला दबाने की कोशिश हो रही है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से न केवल सरकारी संपत्ति का नुकसान हो रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी खतरा है। तालाब और बांध के कब्जे से पानी की समस्या बढ़ सकती है और आसपास के किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है। एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमने कई बार शिकायत की, लेकिन अधिकारी सुनते ही नहीं। लगता है पैसे की ताकत के आगे सब बेबस हैं।

अब सबकी नजरें जिला कलेक्टर (डीसी) पर टिकी हैं। क्या वे इस मामले की समीक्षा करेंगे और दोषियों पर कार्रवाई करेंगे, या फिर यह भी रफा-दफा हो जाएगा? एक्सपर्ट मीडिया न्यूज इस मामले पर नजर रखे हुए है और आगे की अपडेट्स जल्द लाएगा। अगर आपके पास कोई जानकारी है तो हमें संपर्क करें। याद रखें, सरकारी जमीन जनता की अमानत है और इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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