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      उपलब्धियों से भरा है नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बैद्यनाथ लाभ का कार्यकाल

      “प्रो. वैद्यनाथ लाभ के कुलपतित्व में नव नालंदा महाविहार ने अकादमिक, सांस्कृतिक व प्रशासनिक गुणवत्ता के साथ अभिवृद्धि की है। विश्वविद्यालय को नये स्तर पर शैक्षिक समृद्धि व प्रसिद्धि मिली है…

      नालंदा (दीपक विश्वकर्मा)। प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ देश के जाने-माने भारत-विद्या शास्त्र के मर्मज्ञ हैं।  साथ ही  बौद्ध विद्या-शास्त्र के देश और विदेश के विरल विद्वान हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बौद्ध अध्ययन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।

      Vice Chancellor of Nav Nalanda Mahavihar Sam Vishwavidyalaya is full of achievements. tenure of Baidyanath beneficence 2वे जम्मू विश्वविद्यालय के बौद्धअध्ययन विभाग के प्रोफ़ेसर, अध्यक्ष तथा संकायाध्यक्ष तथा साँची विश्वविद्यालय के डीन, एकेडेमिक्स रह चुके हैं। वे इस समय नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के आप कुलपति हैं। उन्हें अनेक सम्मानों से समलंकृत  किया जा चुका है ।

      प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने नव नालंदा महाविहार के कुलपति  के रूप में जो कार्य किये जो अनेकायामी हैं तथा स्मरण के योग्य हैं। उनके समय में नव नालन्दा महाविहार को आई.एस.ओ. प्रमाणन मिला जो बहुत बड़ी उपलब्धि है। इससे इस संस्थान का उत्साह बहुत बढ़ा है।

      प्रो. लाभ ने अपने कार्यकाल में नव नालन्दा महाविहार के ह्वेनसांग सांस्कृतिक परिसर में भगवान् बुद्ध की 8 फीट की मूर्ति लगवाई। ह्वेनसांग के अस्थि- कलश को रखा जायेगा,  इसके लिये संग्रहालय बनवाया जा रहा है। यहाँ थीम पार्क को विकसित किया जा रहा। विपस्सना केंद्र, जो कोरोना काल में बंद हो गया था, को आरंभ कराया। इसमें आयोजित 10 दिनों के शिविर में देश-विदेश से लोग विपस्सना के लिए आते हैं। ध्यान के माध्यम से 10 दिन का शिविर होता है। उसमें शान्ति प्राप्त करते हैं।

      नव नालंदा महाविहार के पाठ्यक्रम में नवीनता लाई गई। च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम भी शुरू करवा दिया गया। सभी शिक्षक और अधिक उत्तरदायी, अधिक संवेदनशील हों,  शोध का स्तर बढ़िया हो , उसके लिए प्री-सेमीनार, या वाइवा,  प्रेजेंटेशन,  नामांकन के लिए परीक्षा आदि सभी में कुलपति महोदय स्वयं बैठते हैं।

      इन सब चीजों का यह परिणाम दिखाई देने लगा कि नव नालंदा महाविहार में न केवल विदेशी, स्थानीय अपितु आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों- केरल, बंगाल,  पांडिचेरी आदि से विद्यार्थी आ रहे हैं।  महाराष्ट्र और गुजरात तथा अन्य राज्यों से विद्यार्थी आ रहे हैं।

      प्रो. लाभ ने शिक्षा व संरचना पर काफी ध्यान देने का यत्न किया, जिससे यहा गुणवत्ता निश्चित रूप से बढ़ी। यहां अनेक सांस्कृतिक पवित्र यात्राएँ आयोजित गईं। मोगलान यात्रा आदि जेठियन शांति यात्रा तो विश्वविख्यात है ही।

      पिछ्ले वर्षों में हिंदी पखवाड़े के जो सुंदर आयोजन किये गये, उनमें वृक्षारोपण  भी किये गये। इन कारणों से कैम्पस का वातावरण आज हरा-भरा है।

      इस बात की सभी लोग प्रशंसा करते हैं। नव नालंदा महाविहार के निजी मार्ग का उपयोग मूलत: महाविहार  के प्रयोजन से हो, दूसरों का दखल न हो, इसके लिए मंत्री महोदय को पत्र लिखा, यत्न किया। अब भी इसके लिए  प्रयास जारी है।

      प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने शोध और विद्या के स्तर  को नव नालन्दा महाविहार  में अपूर्व गति से, नए तरीके से उन्नत किया है, उसका सुधार किया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि विद्यार्थी केरल,  गुजरात, देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आ रहे हैं। दूर-दूर से विद्यार्थी ज्ञान की संचेष्टा में आ रहे हैं तो  दायित्व भी व्यापक है।

      प्राचीन काल से ही नालंदा पूरी दुनिया में ज्ञान व  विद्या  की मौलिकता के लिए जाना जाता है ।  कहते हैं कि जो नालंदा  विश्वविद्यालय (प्राचीन श्री नालंदा महाविहार) में कई तरह की विद्या दी जाती थी और उन विद्याओं में  जीवन के शास्त्र होते थे,  जो सैद्धान्तिकता और व्यावहारिकता  की शिक्षा  देते थे।

      प्रो. वैद्यनाथ लाभ के प्रयत्नों  से  प्राचीन  नालंदा महाविहार का नया वैचारिक  रूप सामने आया है। नव नालंदा महाविहार सम  विश्वविद्यालय की  नए रूप में  प्रसिद्धि हुई है, प्रतिष्ठा बढ़ी है। देश-विदेश से  विद्यार्थी नए  सिरे से आ रहे है।

      खुशी की बात है कि इस वर्ष लगभग 60 नेट व जेआरएफ  विद्यार्थियों ने नव नालंदा महाविहार में पीएच.डी. शोध में प्रवेश के लिये आवेदन किया है। विश्वविद्यालय की पत्रिका- ‘श्री नालंदा’ का प्रकाशन प्रो.  वैद्यनाथ लाभ के मार्गदर्शन में ही हुआ। साथ ही, पालि-हिन्दी शब्द कोश के कुछ खण्ड  तथा अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ।

      नव नालंदा महाविहार के पुस्तकालय में 60-70 हजार विशिष्ट पुस्तकें हैं। विभिन्न विषयों पर यहाँ अत्यंत दुर्लभ पांडुलिपियाँ हैं। ये तिब्बती में हैं, थाई में हैं, बर्मीज़ में हैं, सिंहली आदि में हैं। इन सब पर आधारित अनेक तरह के शोधकार्य किए  जा रहे हैं! यहाँ अत्यंत दुर्लभ पुस्तकें हैं, ज्ञान का भण्डार है। यहाँ  अध्ययन  करके शोधार्थी- ज्ञानार्थी शोध के ज़रिए ज्ञान के ऊँचे शिखर तक जा रहे हैं। प्रो. लाभ ने पाण्डुलिपि संरक्षण में भी गहन प्रयास किया। अनेक पाण्डुलिपियों पर कार्य चल रहा है।

      नालंदा महाविहार के सन्दर्भ में जब हम देखते हैं तो यहाँ आज भी श्रीलंका , म्यामार , कम्बोडिया , थाईलैंड , वियतनाम आदि अनेक देशों के विद्यार्थी पढ़ने आते तथा बी.ए.,  एम.ए. और पीएच.डी. कर कर रहे  हैं। नव नालंदा महाविहार को नई अर्जित भूमि का जहाँ तक प्रश्न है उसके विषय में

      प्रो. लाभ के अनुसार कई योजनाएँ हैं। जिनमें 100 कमरों का छात्रावास, एक फैकल्टी बिल्डिंग, खेल का मैदान तथा  कई तरह की अन्य सुविधाएँ आदि। छत्रावासों को नये तरह से व्यवस्थापूर्वक संचालित किया जा रहा। कई तरह के इंडोर  व आउटडोर खेलों को बढ़ावा दिया जा रहा। इससे विद्यार्थियों को खेल के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने की संभावनाएँ खुली हैं।

      इस प्रकार  देखें तो यह सम विश्वविद्यालय भौतिक रूप से समृद्धि के साथ, भविष्य में अपना और भी गहन  शैक्षिक-सांस्कृतिक महत्त्व ग्रहण कर रहा है।

      नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय में प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने खास तौर से  एकेडमिक्स में  दखल दिया, साथ ही, प्रशासन में भी ज़रूरी सृजनात्मक  दखल दिया। शिक्षा और प्रशिक्षण के साथ-साथ प्रशासन में दखल देकर शैक्षिक संस्कृति के वातावरण को बेहतर बनाया है।

      विश्वविद्यालय में शिक्षक व गैर शिक्षकों की नियुक्तियों से कार्य की नई संस्कृति ने जन्म लिया है। इनके कार्यकाल में नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों की संख्या में  गुणवत्तापूर्ण वृद्धि होती गई और  बेहतर प्रशासन के साथ-साथ अपेक्षित रूप से बेहतर कार्यक्रम होने लगे।  बेहतर शोध के प्रसंग आने लगे।  अच्छे विषयों पर रिसर्च होने लगे। शोध के क्षेत्र में  वास्तविक यत्न होने लगे तो इन सभी स्थितियों का सकारात्मक विकास हुआ है।  कहा जा सकता है कि श्रम और विजन के साथ कार्य किया।

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