एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा में राजनैतिक रूप से भी यहाँ हमेशा कुर्मियों का ही बोलबाला रहा। यह कुर्मिस्तान ऊपर से बहुत ही शांत एवं एक सूत्र में बँधा सा लगता है, मगर आजादी के समय से ही यहाँ उपजातियों का आपसी संघर्ष सर्वविदित है।
आजादी के बाद नालन्दा लोकसभा में कैलाशपति सिन्हा, सिद्धेश्वर प्रसाद, वीरेंद्र प्रसाद, रामस्वरूप प्रसाद, नीतीश कुमार, कौशलेंद्र कुमार जैसे कुर्मी नेताओ ने शिरकत की। वहीं लालसिंह त्यागी, देवगन प्रसाद सिंह, इंद्रदेव चौधरी, डॉ रामराज सिंह, श्यामसुंदर प्रसाद, नीतीश कुमार, श्रवण कुमार, सतीश कुमार, राजीव रंजन, अनील सिंह आदि ने विधानसभा में जगह बनाई।
ज्ञात हो कि नालन्दा ज़िले में कुर्मी की कई उपजातियाँ रहती हैं, जिनकी उत्पत्ति एवं सामाजिक संस्कार भी काफी अलग हैं। ऐसा माना जाता है कि अवधिया कुर्मी अवध से आये, कोचैसा कुर्मी कच्छ से तो अयोध्या कुर्मी अयोध्या से।
वैसे ही अन्य उपजातियों के मूल की अलग अलग कहानियाँ हैं। धानुक उपजाति को अवधिया कुर्मी ही नहीं मानते हैं। अवधिया अपने आप को राजपूत की तरह देखते हैं। उसी तरह प्रत्येक उपजाति अपने आप को श्रेष्ठ मानती है।
जहाँ तक कुर्मी के उपजातियों के संख्या का सवाल है, विभिन्न अनुमानों के आधार पर नालन्दा लोकसभा क्षेत्र के नये परिसीमन के बाद कोचैसा की संख्या ज़िले में सबसे अधिक है।
बात यहीं तक नहीं रहती है, उपजातियों में भी कुछ उप-उप जातियां हैं। जैसे कोचैसा में कृष्णपक्षी, घमैला में बरगइयाँ, खसखसिया आदि।
अब नीचे के चार्ट को देखें तो स्थिति स्पष्ट होगीः
उपजाति संख्या (अनुमानित)
कोचैसा कुर्मी 2.5 लाख
कोचैसा कृष्ण पक्षी 25 हजार (श्रवण कु मंत्री)
घमइला कुर्मी 2.25 लाख (वर्तमान सांसद)
बरगइयाँ कुर्मी 25 हजार
अवधिया कुर्मी 25 हजार (नीतीश कुमार)
शमशमार कुर्मी 30 हजार (आर सी पी सिंह)
धानुक कुर्मी 45 हजार
अयोध्या कुर्मी 5 हजार
आज नालन्दा के कुर्मी खासकर कोचैसा, जदयू और उसके नेता सीएम नीतीश कुमार से काफी नाखुश दिख रहे हैं। नालन्दा में कोचैसा कुर्मी की सबसे ज्यादा आबादी है, फिर भी आजादी के बाद से आज तक कोई भी कोचैसा नेता यहाँ सांसद नहीं बन पाया है।
सांसद बनने की तो छोड़िये, अबतक इन्हें किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार तक नहीं बनाया है। पिछली बार लोक सभा चुनाव में पहली बार ई. प्रणव प्रकाश आम आदमी पार्टी से खड़े हुये थे।
मगर आम आदमी पार्टी को भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त नहीं था। उस समय वह दिल्ली की पार्टी थी। उनकी शिक्षित और साफ सुथरी छवि लोगों को बहुत पसंद आयी। अमेरिका में शिक्षा दीक्षा एवं ऊँचे पद को त्यागकर, किसी नेता का आमलोगों के बीच सरलता से मिलना-जुलना नालन्दा के लिये नया था।
हालाँकि उनकी राजनीति कभी जाति आधारित नहीं रही, मगर बहुत कम समय में ही कोचैसा कुर्मी एक बड़ी संख्या में उनके साथ लामबंध हो गये। ई. प्रणव प्रकाश के बढ़ते समर्थन को देखकर, नीतीश कुमार को खुद मैदान में उतरना पड़ा।
हर जगह उन्होंने हाथ जोड़कर विनती की और कहा कि बस एक मौका दें, अगली बार जरूर देखेंगे। इधर आम आदमी पार्टी का बिहार में कोई वजूद ही नहीं था। एकतरह से वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव के अंतिम सप्ताह में ई. प्रणव प्रकाश पर जानलेवा हमला हुआ। वो एक अस्पताल के आई सी यू में भर्ती हुये।
अब इनके समर्थकों ने जीत की आस छोड़ दी और बदले की भावना से जदयू के विपक्ष में वोट डालने का निर्णय लिया। 2014 के इस लोकसभा चुनाव में कोचैसा उपजाति के लोग काफी उद्वेलित दिखे।
एक बड़ी संख्या में कोचसा कुर्मियों ने जदयू को हराने के लिये एनडीए की तरफ से खड़ें लोजपा उम्मीदवार डॉ सत्यानंद शर्मा को वोट दे दिया। उस चुनाव में जदयू के उम्मीदवार बमुश्किल 9627 वोटों से ही जीत पाये। इस घटना ने नीतीश कुमार के बाढ़ 2004 के लोकसभा चुनाव की याद दिला दी।
उस चुनाव में भी एक बड़ी संख्या में कोचैसा कुर्मियों ने नीतीश जी के प्रतिद्वंद्वी विजय कृष्ण के पक्ष में वोट कर दिया था। उस चुनाव में नीतीश कुमार की 37688 वोटों से हार हुयी थी।
यही हाल कोचैसा कुर्मी के उम्मीदवार छोटे मुखिया और जदयू के वर्तमान मंत्री श्रवण कुमार के साथ 2015 के नालन्दा विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। श्रवण कुमार कुर्मी के कृष्णपक्षी उपजाति से आते हैं।
इस चुनाव में छोटे मुखिया की जीत निश्चित लग रही थी। छोटे मुखिया वोटों की अंतिम गिनती के बाद महज दो हजार मतों से पराजित हुये। इस चुनाव में नालन्दा विधानसभा के बहुसंख्यक कोचैसा कुर्मी जदयू को नकारते दिखे।
चुनाव के बाद छोटे मुखिया ने चुनावी धांधली के विरुद्ध अपने विपक्षी उम्मीदवार श्रवण कुमार पर उच्चतम न्यायालय में केस दायर कर रखा है। इस बाबत कोर्ट के संज्ञान लेने से नालन्दा की राजनीति में एक बड़े उथलपुथल से इनकार नहीं किया जा सकता है।
राज्य सरकार में घमैला कुर्मी उपजाति का कोई भी मंत्री नहीं हैं। इसका उन्हें अत्यधिक मलाल है। लंबे अरसे से श्रवण कुमार ने नालन्दा कोटे से मंत्री पद ले रखा है। ज़िले के घमैला कुर्मी खफा हैं कि उनके मजबूत नेताओं को नीतीश कुमार द्वारा दरकिनार कर दिया जाता है।
नीतीश काल में घमैला उपजाति के कई कद्दावर नेता हुये, मगर कभी भी उन्हें राज्य में मंत्री पद नहीं दिया गया। 1994 में पटना के गांधी मैदान में आयोजित विशाल कुर्मी चेतना रैली के आयोजन में भी घमैला उपजाति के सतीश कुमार का प्रमुख हाथ था। सतीश कुमार की छवि एक जुझारू नेता की थी।
इस रैली के लिये उन्होंने दिन रात एक कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि इसी रैली की सफलता के कारण ही नीतीशजी को मुख्यमंत्री का पद मिला। विधानसभा में सतीशजी को भी जीत मिली, मगर कभी भी उन्हें मंत्री पद देने की कोशिश नहीं हुयी।
घमैला कुर्मियों अन्य कई वरिष्ठ नेताओं को भी जदयू द्वारा उचित सम्मान नहीं मिला। वो नीतीश कुमार पर आरोप लगाते हैं कि घमैला लोगों का चुनाव के समय उपयोग कर दरकिनार कर दिया जाता है।
ज्ञात हो कि नीतीश कुमार अवधिया कुर्मी वर्ग से आते हैं, जिनकी संख्या नालन्दा में सिर्फ 25 हजार के करीब है। इस बात का दूसरी उपजातियों में ज्यादा मलाल है। उनलोगों ने उन्हें सर आंखों पर बिठा मुख्यमंत्री तक बनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। मगर समय आने पर बार बार खास-खास उपजातियों की उपेक्षा हुयी।
जिले के धानुक कुर्मी जो हमेशा नीतीश कुमार के साथ दिखते थे, इस दफा काफी अलग लग रहे हैं। धानुक उपजाति के कई नेता सत्तारुढ़ दल द्वारा इस उपजाति का सिर्फ राजनैतिक उपयोग करने का आरोप लगा रहे हैं। आज धानुक नेताओं को राजद के तरफ मुड़ता देखा जा सकता है।
जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह शमशमार उपजाति से आते हैं। हाल के दिनों में श्री सिंह की ज़िले में तेज गतिविधि को देखकर उनके लोकसभा उम्मीदवार बनने की हवा उड़ीं थी।
जदयू में आरसीपी सिंह को नंबर दो माना जाता था। एकाएक नीतीश कुमार के एक नये उत्तराधिकारी प्रशांत किशोर के आने से श्री सिंह अलग थलग से दिखते हैं। शमशमार कुर्मी भी अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
इधर कुछ जातिय कार्यक्रम भी हुये। एक कार्यक्रम जदयू के नरेश प्रसाद सिंह ने भी आयोजित किया, जिसे उन्होंने कुर्मी महापंचायत का नाम दिया। वहाँ मंच पर बातें तो कुर्मी एकता की हुयी, मगर बरगईयां कुर्मियों में विशेष उत्साह देखने को मिला। इस कार्यक्रम में उपजातिय ध्रुविकरण साफ था।
कोचाईसा कुर्मी ने “महतो बाबा” एवं “के के परिषद” द्वारा आंतरिक रूप से पूरी उपजाति को एक करने की मुहिम छेड़ रखी है।
केके परिषद के अध्यक्ष श्री बृजनंदन प्रसाद बताते हैं कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले कोचैसा कुर्मी का एक प्रतिनिधिमंडल नीतीश कुमार से मिला था। नीतीशजी ने उनलोगों की बातें काफी विस्तार से सुनी।
तब तक कौशलेंद्र कुमार का नाम लोकसभा उम्मीदवार के रूप में तय हो चुका था। नीतीश बाबू ने नाम तय हो जाने की मजबूरी बतायी। साथ ही अगले चुनाव में इस उपजाति के प्रतिनिधित्व का भरोसा दिलाया।
यहाँ तक कि उम्मीदवार के नाम के घोषणा के समय प्रेस के साथ वार्ता करते समय भी उन्होंने इशारे में इसका जिक्र किया। श्री प्रसाद ने आगे बताया कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस वर्ग को जब जदयू का उम्मीदवार नही बनाया गया, तो उन सबका दिल टूट गया।
हिलसा विधानसभा क्षेत्र को कोचैसा का गढ़ माना जाता है। यहाँ से इसी उपजाति की प्रो उषा सिंहा विधायिका थीं। 2015 विधान सभा चुनाव के समय जदयू महागठबंधन में शामिल हो गया था।
हिलसा में हरनौत क्षेत्र के निवासी व राजद उम्मीदवार अतरी मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव को महागठबंधन का उम्मीदवार बना दिया गया। नीतीश कुमार ने इस चुनाव में राजद उम्मीदवार के पक्ष में जम कर प्रचार किया। शक्ति सिंह यादव विजयी हुये। नीतीश द्वारा अपने गढ़ में दूसरी जाति के विधायक थोपे जाने से कोचैसा कुर्मियों में भारी रोष है।
नालन्दा के हरनौत, हिलसा, नालन्दा विधानसभा में कोचैसा कुर्मी बहुत बड़ी संख्या में हैं। अस्थावां एवं इस्लामपुर में घमैला कुर्मी का वर्चस्व है। बिहारशरीफ में सभी उपजातियाँ मिलीजुली हैं, वहीं राजगीर में कुर्मियों की संख्या कम है।
इस बार कुर्मी जाति के भीतर चल रहे उपजातियों के बवंडर से आगामी चुनाव को लेकर जदयू के नेताओं में बैचैनी देखी जा सकती है। इस अवसर पर दूसरी पार्टियों को भी इस स्थिति का लाभ उठाते देखा जा सकता है।
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