एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (जिसे आमतौर पर शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम कहा जाता है) भारत सरकार द्वारा लागू किया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा (6 से 14 वर्ष की आयु के बीच) प्रदान करना है। इस अधिनियम के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
निःशुल्क शिक्षा: 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा सुनिश्चित की गई है। इसमें शुल्क, किताबें, युनिफॉर्म और अन्य शैक्षणिक सामग्री का व्यय शामिल है।
अनिवार्य शिक्षा: इस अधिनियम के तहत, राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों को सुनिश्चित करना है कि 6 से 14 वर्ष की आयु का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।
निजी स्कूलों में 25% आरक्षण: सभी निजी स्कूलों को अनिवार्य रूप से अपनी कुल सीटों का 25% कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करना होगा। इसके लिए उन्हें सरकार से प्रतिपूर्ति मिलेगी।
मानक और नियम: अधिनियम स्कूलों के लिए न्यूनतम मानकों और नियमों को निर्धारित करता है, जिसमें शिक्षक-छात्र अनुपात, बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं और शिक्षकों की योग्यता शामिल है।
पुनः प्रवेश: किसी भी बच्चे को स्कूल से बाहर नहीं निकाला जा सकता और किसी भी स्तर पर प्रवेश के लिए कोई प्रवेश परीक्षा नहीं ली जा सकती।
मूल्यांकन प्रक्रिया: बच्चों का सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) करना होगा और किसी भी बच्चे को कक्षा 8 तक फेल नहीं किया जाएगा।
शिक्षकों का प्रशिक्षण: शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना और उनकी योग्यता को सुनिश्चित करना।
विद्यालय प्रबंधन समिति: प्रत्येक सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूल में एक विद्यालय प्रबंधन समिति (SMC) गठित की जानी चाहिए, जिसमें माता-पिता, शिक्षक और स्थानीय अधिकारी शामिल होंगे। इसका उद्देश्य स्कूल की कार्यप्रणाली और शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी करना है।
बाल अधिकारों की सुरक्षा: बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बाल अधिकार आयोग की स्थापना।
इस अधिनियम का उद्देश्य शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना और यह सुनिश्चित करना है कि हर बच्चे को एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके। यह भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में अग्रसर है।
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