एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। रांची लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा। शिबू सोरेन बीमार चल रहे है। बसंत सोरेन स्टेट लेवल के नेता बन नहीं बन पाए थे। बीच चुनाव में शिबू सोरेन परिवार को बड़ी बहू सीता सोरेन ने भाजपा ज्वाइन कर लिया। खुद कल्पना सोरेन गांडेय सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही थीं।
इन कठिन परिस्थितियों में पूरी पार्टी में एक बड़े कद के प्रचारक की अचानक कमी हो गयी। हालांकि पार्टी के पास पुराने मंझे हुए नेता और मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन थे, मगर पार्टी को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जो सोरेन परिवार से हो।
अंततः तमाम संझावतों के बीच आखिरकार पार्टी ने एक चेहरा ढूंढ लिया और न केवल पार्टी एवं परिवार ने कल्पना सोरेन को चुनावी समर में उतारा, बल्कि उन्हें पूरे राज्य में पार्टी का एक बड़ा चेहरा एवं कदवार नेता के रूप में पेश किया। कल्पना सोरेन ने भी निराश नहीं किया। सोरेन परिवार के गांव नेमरा से कल्पना की राजनीति में लांचिंग हुई।
इसके बाद कल्पना सोरेन ने न्याय उलगुलान महारैली आयोजित कर खुद के चयन को सही साबित किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। पार्टी के कई सीनियर व दिग्गज नेताओं के बीच खुद को साबित करना कल्पना सोरेन के लिए आसान नहीं था, मगर पार्टी परिवार के निर्णय पर खरी उतरी।
इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के पीछे कल्पना सोरेन रहीं फ्रंट लाइनरः पूरे चुनाव अभियान में कल्पना सोरेन बड़े-बड़े पार्टी के दिग्गज और धुरंधर यहां तक कि कांग्रेस और माले प्रत्याशी की भी खेवनहार बन कर उभरी, न केवल अपने विधानसभा सीट को खुद संभाला, पहली बार चुनावी समर में उतरी कल्पना ने अपनी नैया खुद ही पार लगाने की ठान ली।
गांडेय के साथ-साथ कल्पना पूरे इंडिया गठबंधन प्रत्याशियों के लिए भुआंधार प्रचार में जुट गयीं। पूरे चुनावी अभियान के दौरान कल्पना ने हर लोस सीट पर तीन से चार चुनावी सभा को संबोधित किया।
प्रमुख राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ मच भी शेयर किया। कल्पना के चुनावी सभा के फोटो को गौर से आकलन किया जाए तो स्पष्ट हो गया कि मंच पर कल्पना फ्रंट लाइनर रही और प्रत्याशी उनके पीछे खड़े रहे। अपने सारे सीनियर नेता और प्रत्याशियों का हाथ अपने हाथ में लेकर वोट देने की अपील की।
इस कड़ी में पूर्व मंत्री जोबा माझी, मथुरा महतो, नलिन सोरेन, प्रदीप यादव, विनोद सिंह, समीर मोहती, केएन त्रिपाठी, विजय हांसदा, सुबोधकांत सहाय आदि प्रमुख रहे, यह सारे कल्पना के आगे सीनियर नेताओं में सुमार रहे हैं। इन्हें सम्मान देने में ये सीनियर नेता भी नहीं चुके, मंच पर कल्पना को ही फ्रंट लाइनर रखने में पूरी मदद की।
विस चुनाव के लिए झामुमो का हो गया पिच तैयार, जेल से बाहर आने के बाद हेमंत की अलग भूमिका की चर्चाः लोकसभा चुनाव देश का बड़ा चुनाव होता है। मगर इस चुनाव में जिस प्रकार से कल्पना को पार्टी ने प्रोजेक्ट किया है उसमें अभी तक वह खरी उतरी। उनका स्पीच भी बहुत अक्रामक है। वे अपने स्पीच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ, पूरे भाजपा को काऊंटर करने में सफल रहीं है।
शायद भाजपा को भी इसका अनुमान नहीं होगा कि हेमत के जेल जाने के बाद झामुमो की और कोई ऐसा नेता बचा होगा जो फट लाइनर की भूमिका में हो। यही सोच कर भाजपा ने अपने रणनीति के तहत सोरेन परिवार में बड़ी संधमारी करके सीता सोरेन को अपने पाले में ले गयी।
मगर सीता सोरेन पूरे चुनावी समर में केवल दुमका तक ही सीमित रहीं। अब एक जून को चुनाव समाप्त हो जाएगा। किसे कितनी सीट मिलती है, वह भी सामने आ जाएगा। मगर एनडीए को सीटिंग 12 सीट में से चार-पांच सीट का भी नुकसान होता है तो इसका श्रेय निश्चित रूप से कल्पना सोरेन को जाना तय है।
लोस चुनाव के बाद ठीक पांच महीने बाद झारखंड विधानसभा का चुनाव है। हो सकता है कि हेमंत सोरेन जेल से बाहर भी आएं। अगर झामुमो के रणनीति के हिसाब से देखें तो विधानसभा चुनाव का पिच तैयार हो चुका है। तो सवाल अब उठने लगा है कि जेल से बाहर आने और विधानसभा चुनाव के बाद हेमंत और कल्पना किस रोल में होंगे। इस पर अब पूरे राज्य की नजरें टिक गयी है।
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