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    Saturday, July 27, 2024
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      आनंद मोहन की रिहाई को लेकर संशोधित कानून पर बोले पूर्व आईपीएस अमिताभ- ‘सीएम नीतीश का हाथ खूनी के साथ’

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़)। बिहार की सियासी हलचल के बीच बाहुबली नेता आनंद मोहन अब किसी भी समय जेल से रिहा हो सकते हैं। सीएम नीतीश कुमार कई बार लोगों से सार्वजनिक मंचों पर कह चुके हैं कि आनंद मोहन की चिंता आपलोग नहीं करिए। अब सरकार खुद उनकी रिहाई में लग गई है। बिहार की राजनीति में एक बड़ा संशोधन का फैसला सरकार ने लिया है।

      नीतीश सरकार ने कानून में एक संशोधन लाया है। इसमें राज्य सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन किया है। इस संशोधन के तहत सरकारी सेवक की हत्या के दोषी के रिहाई के मामले में अब इसे एक साधारण हत्या मानी जाएगी।

      यानी ऐसे दोषियों की रिहाई के लिए राज्य सरकार के आदेश की जरूरत नहीं होगी बल्कि सजा पूरी होने के बाद स्वतः सामान्य रिहाई के प्रावधानों के तहत रिहाई हो जाएगी। इसका बड़ा लाभ अब आनंद मोहन को मिलेगा और सजा पूरी कर चुके आनंद मोहन अब जल से रिहा हो जाएंगे।

      बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई की तैयारी के बीच एक बार फिर से पूर्व आईजी अमिताभ कुमार दास ने नीतीश कुमार पर हमला बोला है।

      उन्होंने बिहार के राज्यपाल को लिखे पत्र में आनंद मोहन की रिहाई पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।

      उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार ने एक खूनी की मदद करने के लिए बिहार का कानून ही बदल डाला है।यह दलित अधिकारी की शहादत का अपमान है।

      उन्होंने कहा कि गोपालगंज के तत्कालीन दलित जिलाधिकारी जी कृष्णया अपनी ड्यूटी निभा रहें थें लेकिन आनंद मोहन ने उनकी हत्या कर दी। जी कृष्णया एक ईमानदार अधिकारी थे। उनकी हत्या बेरहमी से की गई थी।

      उन्होंने कहा कि सरकार एक सजाप्ता को जेल से छह साल पहले ही रिहा करने के लिए पिछले दरवाजे से एक कानून में बदलाव कर दिया है। वो भी पांच दिन पहले चुपके से।

      पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने राज्यपाल को लिखे पत्र में कहा कि इस कानून संशोधन से बिहार के लोक सेवकों में दहशत का माहौल है।

      उन्होंने राज्यपाल से व्यक्तिगत रूप से इस मामले में संज्ञान लेने की मांग की है।

      गौरतलब रहे कि 5 दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की गोली मारकर हत्या हुई थी। इस मामले में आनंद मोहन को सजा हुई थी। उन्हें 2007 में इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था और फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि 2008 में हाईकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया।

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