एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ डेस्क। प्रेम की क्या कोई परिभाषा होती है? क्या इसे चंद शब्दों में बयां किया जा सकता है ? क्या प्रेम का कोई अंत है? क्या प्रेम अपनी मंजिल तक पहुँचकर पूर्ण हो जाता है? क्या प्यार सिर्फ किसी को पाना है? क्या मिलन हुए बिना भी प्रेम सदैव के लिए जीवित रहता है? क्या कोई किसी से इतना प्यार कर सकता है?
न जाने ऐसे कितने ही प्रश्न मन में उठते हैं। आज के इस दौर में जहाँ किसी को पाकर, अपना बनाकर भी हम प्रेम निभा नहीं पाते हैं वहीं सुदर्शन की रचनाओं को पढ़कर महसूस होता है कि प्यार सिर्फ पाना ही नहीं होता है, अपितु बिना मिलन हुए भी प्रेम के सुंदर एहसास को जीवित रखा जा सकता है। कल्पना हो या वास्तविक जीवन सच्चा प्रेम हमेशा निश्छल, निर्मल, पवित्र और कभी न खत्म होने वाला सफर होता है।
जिसने कभी किसी से प्रेम किया होगा, उसे तो इसकी हर रचना अपनी ही लगेगी। लेकिन जिन्होंने प्रेम नहीं भी किया होगा, वे भी इसकी खुशबू को महसूस कर पाएँगे। इस पुस्तक की हर रचना में एक प्रेमी के सुंदर एहसास, उसके अंतहीन इंतज़ार में धैर्य व प्रेम के प्रति समर्पण युवाओं के लिए उदाहरण है। हर शब्द प्रेम से लबरेज़ है।
सुदर्शन की यह पुस्तक भावनाओं से ओत-प्रोत है साथ ही सच्चे प्रेम को जीवंत करती है। उनकी इस किताब में आप अमृता-इमरोज की प्रेम की झलक जरूर पाएंगे। सुदर्शन के अंतर्मन के इस सृजन को और भी गहरे अहसास में डुबोने के लिये एक ऐसी शख्सियत का प्रभाव रहा है, जिन्हें कहीं न कहीं वे अपनी प्रेरणा मानते हैं। वो हैं “इमरोज” जिन्होंने अपने प्यार “अमृता” के लिए प्रेम की एक नई इबारत गढ़ी है। वे अपने अंदर आत्मसात कर चुके हैं। वे हमेशा खुद के अंदर इमरोज को जीते हैं। उनकी कल्पना ‘अमृता’ है।
सुदर्शन कहते हैं,वे कोई साहित्यकार या शायर नहीं है। अमृता की कल्पनाओं में डूबकर जो महसूस करता हूँ उसे ही बस कागजों पर भावनाओं की स्याही से उकेर देता हूँ। इस किताब के हर पन्ने, हर शब्दों में है वो। ये किताब उसपर शुरू होती है और उस पर ही खत्म होती है। वही मेरी रचना का प्रारंभ है वही अंत और वही पूर्णता। ऐसे अहसास जो कभी कह नहीं पाया, ऐसी कल्पनाएं जिसे जी नहीं पाया, ऐसे ख़्वाब जो बस ख़्वाब ही रह गए इन सबको कल्पनाओं को आत्मसात कर शब्दों के माध्यम से समेटा हूँ, जो एक किताब की शक्ल में आप सब के सामने है। अपनी भावनाओं की गहराई को शब्दों के माध्यम से जितना संजो पाया हूँ। उम्मीद है, आप सभी खुद को जोड़ पाएंगे।
मेरे लिए ये किताब महज किताब नहीं बल्कि किसी भी साहित्यिक मापदंड पर खरा उतने की कोशिश किये बिना मेरे जीवन की धरोहर है। जिंदगी के सफर के उतार चढ़ाव और भागदौड़ के बीच मन को जब तलाश होती है एक सुकून एक ठहराव की।
जब महफ़िल में भी दिल खुद को अकेला महसूस करते है तब सुदर्शन जागती आंखें में संजोते है एक प्यारी सी कल्पना छवि, अवचेतन मन में उभरती है एक प्यारी सी तस्वीर जो हमेशा उनमें एक ऊर्जा सा संचार प्रवाहित करती है। उनकी कल्पनाओं का सृजन है ‘उसकी खुशबू से भीगे खत’।
जिसके साथ-साथ चलते हुए उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा गुजारा है। कभी अतीत में लगाया था उसके संग चाहत का एक बीज जो धीरे-धीरे पनपकर आज यादों एक विशाल दरख़्त बन चुका है। इसे उन्होंने सींचा है बड़े शिद्दत के साथ जिसमें भरे है उनका ख़्वाब, उम्मीदें, आंसू, तड़प और इंतजार के सुलगते लम्हे।
जब भी सुदर्शन खुद से या जीवन से निढाल होते हैं तो इसी यादों के दरख़्त की छांव में खुद को सौंप देते हैं और कल्पनाओं की आगोश में सुख महसूस करते हैं ,और जन्म लेता सुदर्शन जैसे कवि। जो एक छोटे से कस्बे से निकलकर महानगरों में साहित्य के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाते हैं।
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