नई दिल्ली (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई दे रही है, जबकि इस समय चुनाव केवल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में हो रहे हैं। राजनीतिक गतिविधियां इस कदर बढ़ गई हैं। जैसे कि- बिहार में चुनाव अगले ही महीने होने वाले हों।
यह स्थिति तब है जब बिहार की आधी आबादी बाढ़ की विभीषिका झेल रही है। राजनीतिक दलों की यह सक्रियता सवाल खड़ा करती है कि क्या बिहार विधानसभा चुनावों में समय से पहले हो सकते हैं।
जदयू की तैयारीः सत्ताधारी जनता दल (यू) यानी जदयू ने अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए कार्यकर्ता समागम का आयोजन किया है। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा 27 सितंबर से कार्यकर्ताओं से संवाद कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना कर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है और राजनीतिक गलियारों में उन्हें नीतीश का संभावित उत्तराधिकारी माना जा रहा है। यह स्पष्ट है कि जदयू चुनावी मैदान में मजबूती से उतरने के लिए अपनी तैयारियों को तेज कर रही है।
भाजपा की सदस्यता अभियानः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी हाल में एक सदस्यता अभियान की शुरुआत की है, जो राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है। हालांकि, बिहार में भाजपा को इस अभियान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को इसकी चिंता है, जिसके चलते राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। भाजपा का यह कदम अन्य दलों की सक्रियता के जवाब में उठाया गया है और वे जनता के बीच अधिक से अधिक सदस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
तेजस्वी यादव की आभार यात्राः वहीं राजद के नेता और मुख्यमंत्री पद के चेहरे तेजस्वी यादव ने हाल ही में अपनी आभार यात्रा शुरू की है। इस यात्रा का मकसद महागठबंधन की 17 महीने की उपलब्धियों को जनता के सामने रखना है। तेजस्वी ने अपने कार्यकर्ताओं को आगामी चुनाव में महागठबंधन सरकार बनाने के लिए प्रेरित किया है। उनके इस कदम से यह संकेत मिलता है कि राजद भी चुनावी मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है।
एनडीए में हलचलः राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार में सक्रिय हैं। वे एनडीए को मजबूत करने का मंत्र दे रहे हैं, जबकि अन्य एनडीए सहयोगी जैसे जीतन राम मांझी और चिराग पासवान भी अपने-अपने तरीकों से जनता के बीच पहुंच रहे हैं। चिराग ने विभिन्न जिलों में सभाएं की हैं, यह दिखाते हुए कि एनडीए चुनावी रणनीतियों पर काम कर रही है।
नीतीश कुमार का दिल्ली दौराः इस सब के बीच, नीतीश कुमार का अचानक दिल्ली जाना भी चर्चा का विषय बना हुआ है। उनके इस दौरे के पीछे के कारणों पर अटकलें लगाई जा रही हैं। क्या यह राजनीतिक कारणों से है? बिहार में समय से पहले चुनाव की चर्चाएं भी चल रही हैं। पहले यह सोचा जा रहा था कि झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ चुनाव होंगे, लेकिन अब ऐसा नहीं लगता। अब संभव है कि नीतीश कुमार किसी नई राजनीतिक रणनीति के तहत दिल्ली पहुंचे हों।
बहरहाल, बिहार की राजनीतिक गतिविधियां दर्शाती हैं कि सभी दल अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए तत्पर हैं, भले ही विधानसभा चुनाव में अभी एक साल का समय हो। बाढ़ के संकट के बीच ये चुनावी सरगर्मियां यह संकेत दे रही हैं कि बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है, जो आने वाले समय में महत्वपूर्ण घटनाक्रम पैदा कर सकता है।
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