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भू जल के दोहन को रोकने के लिए शोध जरूरी : प्रो. सुनैना

“देश में जल संकट तेजी से गहराता जा रहा है पिछले 50 वर्षों में राजगीर का ग्राउंड वाटर लेवल 12 मीटर नीचे गया है। वहीं पश्चिम दक्षिण भारत में 100  मीटर वाटर लेवल नीचे गया है। भूजल के संरक्षण समस्या और निदान के लिए वैज्ञानिकों के साथ आवाम को भी मंथन करने की जरूरत है।“

nalanda news 2नालंदा  (राम विलास)। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड मध्य पूर्वी क्षेत्र पटना द्वारा राजगीर के अंतरराष्ट्रीय समागम केंद्र में  इस शिविर  का आयोजन किया गया।  नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर सुनैना सिंह ने इस कार्यक्रम का  दीप जलाकर उद्घाटन किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भूजल के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए नित्य नए नए अनुसंधान  की आवश्यकता है। उन अनुसंधानों के परिणामों को आमजनों तक उन्हीं की भाषा में पहुंचाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि भूजल संरक्षण चुनौती बन गया है इसके लिए चिंता और चिंतन दोनों करने की आवश्यकता है जल संकट केवल राजगीर पटना बिहार की ही नहीं बल्कि दुनिया की समस्या है भू जल संरक्षण के लिए जमीनी स्तर पर प्रचार-प्रसार के अलावे स्कूली बच्चों को भी बताने की जरूरत है।

कुलपति ने कहा कि गंगा की सफाई और भूजल संरक्षण दोनों बड़ी चुनौती है इसका डटकर मुकाबला होना चाहिए इस अवसर पर राजगीर केसरियो लाल ज्योति नाथ शाहदेव ने कहा कि  बैंकिंग राजगीर में जल संकट विकराल रूप ले रखा है इससे  शाम से लेकर प्रशासन तक जूझ रहे हैं।

पिछले साल राजगीर के सुप्रसिद्ध कुंडों के झरने सूख रहे थे।  इस संकट से मुख्यमंत्री भी काफी चिंतित थे। उनके निर्देश पर मुख्य सचिव और भूजल बोर्ड के द्वारा इस समस्या के निदान के लिए जारी किया गया था।

उन्होंने कहा कि राजगीर के ऐतिहासिक गर्म जल के कुंड से आम और खास के अलावे देश दुनिया के सैलानी भी जुड़े हैं। इस का अपना अलग धार्मिक महत्व उन्होंने कहा कि वाटर लेवल को मेंटेनेंस करने के लिए हर व्यक्ति को आगे आना होगा।  भूजल संरक्षण के लिए विचार और व्यवहार में परिवर्तन और सुधार लाना बहुत जरूरी है गांव की गलियों सनी नालियों और हैंड पंप के पास सोख्ता गड्ढा भी जरुरी है। राजगीर वाटर बोर्ड के लिए प्रयोगशाला से कम नहीं है।

 उन्होंने बताया कि राजगीर के व्यवहार गिरी पहाड़ी पर भेलवा डोभ है। इस तालाब का कनेक्शन कुंड से है।  इस तालाब की खुदाई के लिए डीपीआर तैयार कराया गया है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक आनंद कुमार अग्रवाल ने कहा कि दो दशक से भूजल भूजल पर निर्भरता बढती जा रही है। 

उन्होंने ग्राउंड वाटर के दोहन पर रोक लगाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी इसके लिए प्रशिक्षण लेने की जरूरत है जलपरी का हो या ट्यूबेल का सभी जगह जल संरक्षण की आवश्यकता है।

 उन्होंने कहा ग्लास में उतना ही पानी ले कितना पी सकते हैं। उसी प्रकार खेतों की सिंचाई में उतना ही पानी दे जितना जरूरत है।  कुएं  हैंड पंप नलकूप कि जल स्तर तेजी से नीचे जा रहे हैं इसे रोकने के लिए विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।

इस अवसर पर लघु सिंचाई अधीक्षण अभियंता अजय कुमार वर्मा, केंद्रीय भूजल बोर्ड के वैज्ञानिक डॉक्टर इंद्रनील राय डॉक्टर सुब्रत दास सुरेश कुमार सुदामा उपाध्याय सोमारू राम डॉक्टर फखरे आलम राजीव रंजन शुक्ला हरकेश चंद्र सौरभ आदि  अपने विचार व्यक्त किया। 

वैज्ञानिकों ने कहा कि पेयजल में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होने पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है पानी में मिनरल अधिक होने से बाल झड़ते हैं दूषित जल के सेवन से त्वचा और पेट संबंधी बीमारी होती है।

वैज्ञानिकों के ने कहा कि पानी में 12 सबसे ज्यादा टीडीएस होने पर ही आरोप का इस्तेमाल करना चाहिए टीडीएस ज्यादा होने पर पानी कठोर हो जाता है गिरियक के पानी में 680 और सिलाव में 630 टीडीएस है।  यह स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है इसके सेवन से गैस्ट्रिक की परेशानी बढ़ सकती है।

इस अवसर पर प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी रघुनंदन चौधरी डीआरजी डॉक्टर महेश सिंह गहलोत अनीता गहलोत वार्ड पार्षद श्रवण कुमार  ,वीरेन्द्र कुमार, जावेद अख्तर एवं अन्य उपस्थित थे।

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