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    Saturday, May 18, 2024
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      कौन सफेदपोश देता है गुटखा सिंडीकेट को संरक्षण, जिसे हर साल मिलते हैं 2 करोड़

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। वह कौन सफेदपोश है, जो  कैंसर फैलानेवाले और युवा पीढ़ी को इस गंदी लत की चपेट में ले जाने के गुटखा कारोबार के सिंडीकेट को संरक्षण देता है। इसकी एवज में उस सफेदपोश को गुटका सिंडीकेट सालाना दो करोड़ रुपये देता है।

      रांची के एक होटल के कमरा नंबर 114 में अकसर किन लोगों का जमावड़ा लगता है और वहां क्या डील होती है। ये कुछ सवाल हैं, जिनका जवाब बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन बताते नहीं हैं। बतायेगा भी कौन।

      करीब पांच हजार करोड़ के पान मसाला, गुटखा और तंबाकू की सालाना खपतवाले झारखंड में करीब 150 करोड़ रुपये गुटखा सिंडीकेट इसीलिए ही तो उड़ा देता है, ताकि उसकी ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देखे।

      5000 करोड़ के अवैध कारोबार पर चुप्पी क्यों : झारखंड में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी एक हजार करोड़ रुपये के खनन घोटाला के मामले की जांच कर रहा है। ईडी ने जो आरोप पत्र दायर किया है, उसके मुताबिक साहेबगंज में पत्थर के अवैध खनन औऱ बिना चालान-परमिट के ढुलाई कर करीब एक हजार करोड़ से ज्यादा का घोटाला किया गया है।

      मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक से इडी ने पूछताछ कर ली है। उनके विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा सहित कई लोग जेल में बंद हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि झारखंड में हर साल 5000 करोड़ रुपये का अवैध गुटखा, तंबाकू और पान मसाला खपा दिया जाता है।

      झारखंड में गुटखा, पान मसाला और तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध है। इसके बाद भी हर जगह इनकी धड़ल्ले से बिक्री हो रही है।

      इस कारोबार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि गुटखे का एक पाउच बनाने में सिर्फ दो-तीन रुपये की लागत आती है, लेकिन यह बिकता तीन से चार दुना ज्यादा दर पर है। जिन राज्यों में गुटखा बैन है।, वहां और महंगा बेचा जाता है। यानी करोड़ों की टैक्स चोरी के साथ ऊपर की कमाई अलग। इस धंधे का नेटवर्क झारखंड के हर जिले में फैला हुआ है।

      गुटखा, पान मसाला और तंबाकू से भरे ट्रक हर दिन उतरते हैं। दुकानों में ध़ड़ल्ले से यह प्रतिबंधित पुड़िया बिकती है, लेकिन कोई देखता नहीं। दिखावे के लिए कभी-कभार छोटे दुकानदारों के यहां छापामारी होती है, ताकि कभी कोर्ट पूछे तो उसे यह दिखाया जा सके।

      राजेश कुमार है सिंडीकेट का मुखिया, टेप से होती है पुष्टिः इस संवाददाता ने जब इस मामले की पड़ताल की, तो पता चला कि 5000 करोड़ के गुटखा सिंडीकेट की कमान राजेश कुमार नाम के व्यक्ति के हाथ में है।

      राजेश कुमार रजनीगंधा पान मसाला और तुलसी जर्दा बनानेवाली कंपनी डीएस ग्रुप के निदेशक हैं, लेकिन झारखंड में हर कंपनी का प्रोडक्ट खपाने की जिम्मेवारी उनपर ही है। यही नहीं, हर गुटखा और पान मसाला निर्माता को बचाने, केस मैनेज करने और केस होने पर कानूनी मदद दिलाने का जिम्मा भी राजेश कुमार पर ही है।

      इसकी पुष्टि शिखर गुटखा के निर्माता और बिचौलिये अमित मलिक की फोन पर बातचीत के ऑडियो टेप (हालांकि हम इस टेप की पुष्टि नहीं करता) से होती है। इस टेप में प्रदीप अग्रवाल साफ कहते सुनाई देते हैं कि जो करेंगे राजेश जी ही करेंगे।

      पिछली किस्त में हमने इसी मामले में बिचौलिये अमित मलिक और राजेश कुमार की बातचीत सुनाई थी, जिसमें पांच करोड़ रुपये की डील का जिक्र था।

      बता दें कि शिखर गुटखा के निर्माता प्रदीप अग्रवाल पर रांची के खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने 3 जुलाई 2020 को अरगोड़ा थाना में मामला दर्ज कराया था। अग्रवाल फिलहाल इस मामले में बेल पर हैं। यह बातचीत उनकी बेल पिटीशन को लेकर ही हुई थी।

      बहुत विशाल है गुटखा सिंडीकेटः गुटखा सिंडिकेट का नेटवर्क बहुत विशाल है। इसमें पान मसाला कंपनियों के बड़े अफसर, बिचौलिये औऱ दलाल, गुटखा व्यापार में लगे पूंजपति व्यापारी और डिस्ट्रीब्यूटर शामिल हैं।

      पांच रुपये से भी कम लागत में बनने वाली प्रीमियम पान मसाले की पुड़िया तंबाकू के साथ ग्राहक के मुंह में जाते-जाते 25 से 30 रुपये की हो जाती है।

      वैसे तो पान मसाले की एमआरपी में टैक्स जुड़ा होता है, लेकिन झारखंड में गुटखा, तंबाकू बैन है, सो न जीएसटी बिल कटता है न चालान। टैक्स की राशि सीधे कारोबारियों और बिचौलियों की जेब में चली जाती है। कभी कभार दिखावे के लिए खुदरा व्यापारियों के यहां छापेमारी होती है। कुछ हजार या लाख का माल जब्त होता है और बड़े खिलाड़ी बदस्तूर अपने काम में लगे रहते हैं।

      अगर गलती से कोई ईमानदार अफसर कार्रवाई कर देता हो, तो भी ये करोडों रुपया फेंक कर मामला झटपट मैनेज कर देते हैं। आपने यह तो सुना और पढ़ा होगा कि कैसे रांची में एसडीओ ने छापामारी में तीन करोड़ की जिस पान मसाला की खेप को जब्त किया था, उसकी सील 24 घंटे के अंदर खुल गयी। सुखदेव नगर और अरगोड़ा थाना में दर्ज मामलों को कमजोर करने की शिकायतें भी पुलिस मुख्यालय को मिली हैं।

      वर्ष 2012 से ही झारखंड में पान मसाला है बैनः बता दें कि झारखंड में वर्ष 2012 से ही पान पराग, रजनीगंधा, विमल समेत 11 ब्रांड के पान मसालों की बिक्री पर प्रतिबंध है। इसे हर साल एक साल के लिए बढ़ाया जा रहा है। इन पान मसालों की जांच में खतरनाक मैग्निशियम कार्बोनेट रसायन पाया गया था।

      पान मसाले का टेस्ट तीखा करने के लिए मसाले में मैग्नीशियम कार्बोनेट मिलाया गया था। य़ह कैंसरकारी तत्व है। बैन किये गये उत्पादों में पान पराग पान मसाला, शिखर, रजनीगंधा, दिलरूबा, राज निवास, मुसाफिर, मधु, विमल, बहार, सेहत, पान पराग प्रीमियम शामिल हैं। कोरोना काल की शुरुआत में 8 मई 2020 को हेमंत सोरेन की सरकार ने भी झारखंड में गुटखा को प्रतिबंधित कर दिया था।

      कोर्ट की फटकार का भी असर नहीं: 17 अक्तूबर 2020 को प्रतिबंध के बाद भी गुटखा की बिक्री पर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी।

      मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपने एक कर्मचारी को तुरंत बाहर भेज कर गुटखा मंगाया और सरकार के अधिकारियों से पूछा कि आखिर यह कैसा प्रतिबंध है।

      राज्य सरकार का आदेश भी बेअसरः झारखंड में गुटखा, पान मसाला व तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध को लागू करने के लिए स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग ने 11 नवंबर 2020 और 25 नवंबर 2020 को सभी जिलों के उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजा था।

      पत्र में विभाग ने राज्य में उपलब्ध चेक पोस्ट की सूचना उपलब्ध कराते हुए झारखंड राज्य के एंट्री प्वाइंट की सूची मांगी थी। साथ ही व्यापक छापामारी चलाने का भी निर्देश दिया गया था। लेकिन इस पत्र के आलोक में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया।

      इसके बाद दोबारा राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने 11 दिसंबर, 2020 को सभी जिलों के उपायुक्तों और वरीय पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया कि एंट्री पॉइंट पर मालवाहक वाहनों की नियमित रूप से सघन जांच कर छापामारी की जाये, ताकि एंट्री पॉइंट पर अन्य राज्यों से झारखंड में प्रतिबंधित गुटखा और पान मसाला नहीं पहुंच सके। इसके बावजूद अन्य राज्यों से गुटखा- पान मसाला की आवक थम नहीं रही है।

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