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आदिवासी चेहरों पर टिका भाजपा की झारखंड मिशन-2024

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क।  2022 बीतने को है। ठीक दो साल बाद 2024 में विधानसभा चुनाव झारखंड में होंगे। इसके लिए भाजपा नेतृत्व अब तैयारियों में दिखने लगा है। खासकर हालिया समय में पार्टी संगठन से जुड़े दिग्गज नेताओं के राज्य से लेकर जिलों तक के दौरे इसका संकेत दे रहे।

इसमें भी खूंटी, सिमडेगा सहित दूसरे आदिवासी बहुल जिलों में पार्टी नेताओं सुनील बंसल (राष्ट्रीय महामंत्री), संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह समेत अन्य का मूवमेंट कुछ संकेत देने लगा है।

अभी की स्थिति में यही माना जा रहा है कि भाजपा अगला चुनाव आदिवासी चेहरे को आगे करके ही चुनाव लड़ेगी। हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में 1932 के खतियान, नियोजन नीति, ओल्ड पेंशन स्कीम समेत अन्य विषयों पर उठाए गये स्टेप से भाजपा के लिए ऐसा करना अब स्वाभाविक माना जा रहा है।

मकर संक्रांति के बाद संभावना जतायी जा रही है कि प्रदेश नेतृत्व बदला जाये। सांसद दीपक प्रकाश की जगह पर पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी को अध्यक्ष पद मिले। इसके साथ ही अन्य पदों पर भी बदलाव दिखे।

फिलहाल बाबूलाल को ही ट्राइबल लीडरों में कई मायनों में सबसे दमदार नेतृत्व के तौर पर भाजपा देख रही है। भाजपा से अलग होने के बाद अपने दम पर झारखंड विकास मोर्चा का गठन कर कई नेताओं को विधानसभा पहुंचाने का हुनर वे साबित कर चुके हैं।

अब भाजपा में फिर से उनकी वापसी से पार्टी मान रही है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी झामुमो के मजबूत गढ़ संताल से लेकर कोल्हान तक आदिवासी वर्ग का भरोसा फिर से हासिल कर सकेगी।

पिछली दफा 2019 में हुए चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 26 पर भाजपा को नकार दिया गया था। इससे पहले 2014 के दौरान उसे 14 सीटों पर सफलता मिली थी। यहां तक हेमंत सोरेन के गढ़ दुमका में भी भाजपा जीती थी।

चूंकि बाबूलाल मरांडी अपनी नेतृत्व, संगठनात्मक, रणनीतिक क्षमता को साबित कर चुके हैं। संताल के इलाकों में राजनीतिक तौर पर भी वे एक प्रभावी चेहरा रहे हैं। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन, उनके बेटे और वर्तमान में सीएम हेमंत सोरेन के लिए सबसे कठिन राजनीतिक प्रतिद्वंदी के तौर पर भी उन्हीं को काबिल लीडर माना जाता है।

ऐसे में भाजपा में वापसी के बाद एक बार फिर से आदिवासियों के बीच खोए भरोसे को पाने को भाजपा उनकी अगुवाई में चलने को तैयार हो सकती है।

दूसरा अहम नाम केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का है। राज्य के पूर्व सीएम भी रह चुके मुंडा को केंद्रीय नेतृत्व में जनजातीय मंत्रालय का भार सौंप रखा है। संयोग से उनके लोकसभा क्षेत्र खूंटी में दो विधानसभा सीटों खूंटी (नीलकंठ मुंडा) और तोरपा (कोचे मुंडा) में पार्टी का ही कब्जा है।

हालांकि संभावना यही लग रही कि अर्जुन मुंडा केंद्रीय नेतृत्व के साथ ही जुड़े रहें। समीर उरांव को राज्यसभा भेजने के साथ साथ पार्टी के राष्ट्रीय एसटी मोर्चा का जिम्मा भी दिया गया है। इसके जरिये पार्टी ने ट्राइबल समाज का भरोसा हासिल करने की कोशिश की है।

आदिवासियों का भरोसा हासिल करने की कोशिश में पार्टी ने रांची नगर निगम की मेयर डॉ आशा लकड़ा को भी महती जिम्मेवारी सौंपी है। उन्हें पार्टी में राष्ट्रीय मंत्री का दर्जा देने के अलावे पश्चिम बंगाल के प्रभारी का भी भार दिया है।

ऐसे में कयास उनके नाम पर भी लगाये जा रहे हैं कि कहीं केंद्रीय नेतृत्व उनके नाम पर ही अंतिम समय में मुड ना बना ले। संभव है कि उनके पैतृक जिले गुमला या बिशुनपुर या फिर खिजरी (रांची), रांची विधानसभा सीट पर ही उन्हें चुनाव लड़ा दिया जाये।

भाजपा मानकर चल रही है कि झारखंड में दलित, शहरी वोटर उसके साथ है। राज्य के 9 अहम सीटों (दलित वर्ग) में से 6 पर उसे 2019 में सफलता मिली थी। 44 सामान्य सीटों में से 18 पर जबकि एसटी के 28 में से 2 सीटों पर उसे जीत मिली।

ऐसे में आदिवासी सीटों पर अगले चुनाव में दमदार प्रदर्शन दिखाना ही होगा। हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ना सिर्फ झारखंड, बल्कि देश भर में आदिवासी वर्ग का भरोसा हासिल करने को कई कदम उठाये हैं।

झारखंड के नजरिये से देखें तो यहां की पूर्व राज्यपाल रही द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद (राष्ट्रपति) पर बिठाया। धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम पर 15 जनवरी को देश भर में जनजाति गौरव दिवस मनाया जाने लगा है।

अर्जुन मुंडा को जनजातीय मंत्रालय में लाया गया। समीर उरांव को राज्यसभा भेजा है। पूर्व पुलिस अधिकारी अरुण उरांव को एसटी मोर्चा (केंद्रीय) में जगह दी है। खूंटी के पूर्व सांसद कड़िया मुंडा को लोकसभा उपाध्यक्ष बनाया गया था। लोहरदगा के सांसद सुदर्शन भगत को केंद्रीय मंत्रिमंडल में पिछले टर्म में रखा। आशा लकड़ा को पार्टी का राष्ट्रीय मंत्री बनाया है। (न्यूज विंग पर अमित झा की रिपोर्ट)

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