एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। भारत की विरासत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बिखरी पड़ी है।जिन्हें संरक्षित सहेजना चुनौतीपूर्ण है। देश के ग्रामीण अंचलों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासतों की भरमार है।
नालंदा के चंडी अंचल में ऐसे ही कई अवशेष बिखरे हुए है, विरासत और अपने इतिहास से अंजान। सिर्फ यहाँ बौद्ध कालीन सभ्यता ही नहीं मुगलिया वंश के नायाब किस्से-कहानियाँ बिखरी पड़ी हुई है। जहाँ कभी गंगा -जमुना तहजीब की धारा बहती थी।
एक ऐसी ही विरासत है, नालंदा के चंडी प्रखंड के रुखाई में। अपने इतिहास से बेखबर, गुमनाम और वीरान यह टीला हजारों वर्ष से अपने आप में एक समृद्ध विरासत और कई पीढ़ियों का इतिहास समेटे खड़ा है। जो कभी प्रलंयकारी बाढ़ से तबाह हो गई थीं।
हांलाकि छह साल पहले बनारस हिंदू विश्वविधालय के पुरात्तव विभाग की टीम ने 13 दिनों तक इस पुरास्थल की खुदाई की थी। जिसमें मौर्यकाल, कुषाण वंश, गुप्त वंश, पाल एवं सल्तनत वंश के समकालीन जीवन शैली एक ही स्थान पर पाए गये।
इस पुरास्थल की खुदाई से ज्ञात हुआ कि लगभग दो किमी के दायरे में बौद्ध काल से भी पहले यहां अपनी संस्कृति फैली हुई थी। एक समृद्ध नगरीय व्यवस्था थी।
खुदाई में कई कुएँ मिले ,जो शंग एवं कुषाण युग के संकेत देते है। रूखाई के टीले के दो हिस्से में शंग,कुषाण काल के पक्की ईटों के आठ तह तक संरचनात्मक अवशेष प्राप्त हुए है।
ऐसा माना जाता है कि रूखाई में नाग पूजा का भी प्रचलन रहा होगा। उत्खनन के दौरान टेरीकोटा निर्मित सर्प की मूर्ति भी मिली थीं। साथ ही कुत्ता, नीलगाय की छोटी मूर्तियाँ भी मिली।
इतना ही नहीं अगर सही ढंग इसकी खुदाई की गई होती यहां ताम्र पाषाण युग का भी अवशेष प्राप्त हो सकता था। इससे पूर्व कि इस टीले में दफन कई इतिहास हकीकत बनते खुदाई पर ब्रेक लग गया।
उत्खनन कार्य में लगे पुरातत्व विभाग के निदेशक गौतम लांबा ने तकनीकी कारणों से पुरास्थल की खुदाई पर सितम्बर, 2015 तक ब्रेक लगा दी। फिर उसके बाद खुदाई का मामला अधर में लटक गया।
छह साल बाद भी बनारस हिंदु विश्वविधालय की टीम रुखाई नहीं लौटी। रूखाई गांव के ही बिनोद कुमार, जो हरियाणा के फरीदाबाद में एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं, उन्होंने अपने गांव के इस विरासत को दुनिया के सामने लाने की कोशिश में चार साल से लगे हुए हैं।
उन्होंने बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर गौतम कुमार लांबा को भी पत्र लिखा। यहां तक कि सीएम नीतीश कुमार और पुरातत्व विभाग के निदेशक अतुल कुमार का भी ध्यान आकृष्ट कराया। लेकिन बात नही बनी।
इससे पहले उन्होंने आईएस उषा शर्मा, महानिदेक एएसआई, सुजाता प्रसाद निदेशक (ईई) वीएन प्रभाकर को भी पत्र लिखा। लेकिन नतीजा ठाक के तीन पात।
उन्होंने इसी महीने 4 अगस्त को पीएमओ को पत्र लिखकर रूखाईगढ़ टीले की पुन: खुदाई की मांग की है।
उन्होने अपने लिखे पत्र में जिक्र किया है कि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ,नई दिल्ली के आदेशानुसार रुखाई गढ़ गांव स्थित टीले का उत्खनन कार्य बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की टीम द्वारा डॉ गौतम लांबा के नेतृत्व में दिनांक 12 अप्रैल 2015 को प्रारंभ किया गया था एवं यह उत्खनन कार्य लगभग 13 दिनों तक चलाया गया था।
डॉ गौतम लांबा के अनुसार उत्खनन में प्राप्त हुए अवशेष मध्यकाल , गुप्त , शुंग काल तथा मौर्य कालीन सभ्यता संस्कृति के है और इनके 3000 से 3200 वर्ष पुराना होने का प्रमाण मिला है।
यही नहीं, पुरातत्वविदों की टीम को पूरा भरोसा था कि यदि सही ढंग से इस स्थल की खुदाई की जाय तो ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता के प्रमाण मिलने की पूरी पूरी संभावना है।
रुखाईगढ़ पुरातात्विक स्थल के उत्खनन के दौरान रिंग वेल , मिट्टी के वर्तन , मानव हड्डी, मिट्टी का फर्श , मिट्टी के मनके , कई कुऍ , चित्रित धूसर मृदभांड, सल्तनत काल के सिक्के, अनाज के दाने , नगरीय व्यवस्था के अवशेष, पांच कमरों का मकान, टेरिकोटा निर्मित सर्प की मूर्ति के साथ ही साथ कुत्ता , नीलगाय की छोटी मुर्तिया भी मिली थी।
इन्ही अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों की टीम यह कहने की स्थिति में थी कि रूखाई गढ़ में तीन हजार वर्ष पूर्व भी विकसित नगरीय सभ्यता एवं उन्नत कृषि पर आधारित व्यवस्था मौजूद थी।
दुर्भाग्यवश पुरातत्व की टीम द्वारा अपने बीस दिनों का पूर्व निर्धारित उत्खनन कार्य को अपर्याप्त आवंटित राशि / फण्ड की कमी के कारण लगभग तेरहवें दिन ही रोक दिया गया एवं उपस्थित ग्रामीणों से फिर से उत्खनन कार्य प्रारंभ करने का वादा कर पुरातत्वविदों की टीम लौट आयी।
इस दौरान चार साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद पुरातत्वविदों की टीम वापस रूखाई गढ़ उत्खनन कार्य प्रारंभ करने नही पहुची। अंततः भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के साथ ही साथ खुद रूखाई गढ़ का निवासी होने के कारण मेरी जिम्मेदारी भी है कि मैं इस संदर्भ को आपके संज्ञान में लाऊ।’
बिनोद कुमार ने बताया कि वह अगले सप्ताह एएसआई (भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण) कार्यालय जाकर अपनी मांग को रखेंगे। रूखाई गढ़ टीले के कई इतिहास गर्भ में दफन है। अगर राज्य सरकार की नजर इनायत हो जाए तो इस क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावना हो सकती है।
ऐसा माना जाता है कि इस टीले के सम्पूर्ण क्षेत्र की खुदाई में लगभग पाँच साल का वक्त लग सकता है।जिसके लिए 30लाख की राशि खर्च हो सकती है।
राज्य सरकार खुदाई के लिए राशि आवंटित करें तो बौद्ध काल से भी पूर्व की एक समृद्ध विरासत की खोज हो सकती है। साथ ही रूखाई नालंदा के अन्य स्थानों की तरह पर्यटक स्थल के रूप में मानचित्र पर आ सकता है।
इस प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। आप का सार्थक प्रयास अवश्य ही आशातीत सफलता प्राप्त करेगा और एक पुरातत्विक स्थान को स्वर्णिम मान्यता देगा।
हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत सधन्यवाद I
रूखाईगढ के आधे-अधूरे उत्खनन कार्य को पूर्ण एवं इसे एक मुकाम तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत हूँ ताकि रूखाईगढ के स्वर्णिम इतिहास से पूरी दुनिया परिचित हो सके एवं रूखाईगढ अपने आपको नालंदा/बिहार और भारत के पर्यटन स्थल के रूप मे स्थापित कर सके I